1. पावस ऋतु थी, पववत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तवत प्रकृ र्त-वेश।
मेखलाकि पववत अपाि
अपने सहस्तर दृग-सुमन फाड़,
अवलोक िहा है बाि-बाि
नीचे जल में र्नज महाकाि,
-जजसके चिणों में पला ताल
दपवण सा फै ला है ववशाल!
गगरि का गौिव गाकि झि-झि
मद में लनस-नस उत्तेजजत कि
मोती की लडि़यों सी सुन्दि
झिते हैं झाग भिे र्नझवि!
2. गगरिवि के उि से उठ-उठ कि
उच्चाकाांक्षायों से तरूवि
है झ ांक िहे नीिव नभ पि
अर्नमेष, अटल, कु छ गचांता पि।
उड़ गया, अचानक लो, भूधि
फड़का अपाि वारिद के पि!
िव-शेष िह गए हैं र्नझवि!
है टूट पड़ा भू पि अांबि!
धँस गए धिा में सभय शाल!
उठ िहा धुऑ ां, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में ववचि-ववचि
था इांद्र खेलता इांद्रजाल
3.
4. पावस ऋतु ………………………………………………..दपवण-सा फै ला
है ववशाल!
व्याख्या - पांत जी कहते हैं कक पहाड़ों पि वषाव ऋतु की छवव
बड़ी अनुपम होती है। इस ऋतु के कािण प्रकृ र्त में पल-पल
बदलाव आ िहा है जजसके कािण िांग-बबिांगे दृश्य ददखाई दे
िहे हैं। पववतों में वषाव ऋतु के कािण फू लों की बहाि आई हुई
है। पववत की तलहटी में एक बड़ा-सा तालाब है जो दपवण के
समान प्रतीत हो िहा है। फू लों से युक्त पववत ऐसे लग िहा
है मानों कोई अपनी ववशाल फू ल रूपी बड़ी-बड़ी आँखों से
तालाब रूपी दपवण में अपनी छवव र्नहाि िहा हो।
5. गगरि का गौिव
……………………………………………………….अपाि पािद के
पि!
व्याख्या -पांत जी पववतों में झिनों की शोभा का वणवन
किते हुए कहते हैं कक पहाड़ों में गगिते हुए झिने ऐसे
प्रतीत हो िहे हैं मानों पहाड़ों से तीव्र वेग से झाग
बनाती हुई मोर्तयों की लडड़यों-सी सुन्दि पानी की
धािा झि-झि किती हुई बह िही है। पववतों पि उगे
हुए ऊँ चे-ऊँ चे पेड़ ऐसे प्रतीत हो िहे हैं मानो आकाश
को छू ने की इच्छा किते हुए शाांत आकाश की ओि
कु छ गचांर्तत पिन्तु दृढ़ भाव से र्नहाि िहे हैं। आकाश
में बादल छाने के कािण ऐसा प्रतीत हो िहा है मानो
पववत गायब हो गया है। ऐसा लगता है मानों पववत
पक्षी की भाांर्त अपने सफ़े द पांख फड़फड़ता हुआ दूि
कहीां उड़ गया हो।
6. िव-शेष िह
…………………………………………………………………… इांद्रजाल।
व्याख्या -पांत जी कहते हैं कक ऐसा लगता है बादल
पक्षी की भाांर्त पांख लगाकि उड़ गया हो औि ससफव
झिनों की आवाज ही शेष सुनाई दे िही है। दूि
क्षक्षर्तज पि ऐसा प्रतीत हो िहा है मानों अांबि पृथ्वी
पि गगि पड़ा हो अथावत धिती व अांबि समलते हुए
ददखाई दे िहे हैं। वाताविण में चािों तिफ़ धुँआ छाया
हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है मानों तालाब में आग
लगी हो औि जलने के ि़ि से सािे पेड़ धिती के भीति
धँस गए हैं। इस तिह बादल रूपी यान पि बैठकि इांद्र
देवता अपना इांद्रजाल फै लाकि प्रकृ र्त की जादूगिी
ददखा िहे हैं।