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उपनाम: प्रेमचंद
जन्म: 31 जुलाई, 1880
ग्राम
लमही, वाराणसी, उत्तर
प्रदेश,भारत
मृत्यु: 8 अक्तूब, 1936
वाराणसी, उत्तर
प्रदेश, भारत
काययक्षेत्र: अध्यापक, लेखक,
पत्रकार
राष्ट्रीयता: भारतीय
भाषा: हहन्दी
काल: आधुनिक काल
ववधा: कहािी और उपन्यास
साहहत्त्यक
आन्दोलि:
आदशोन्मुख यथाथयवाद
प्रगनतशील लेखक
आन्दोलि
 प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के निकट लमही गााँव में
हुआ था। उिकी माता का िाम आिन्दी देवी था तथा वपता मुंशी
अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उिकी शशक्षा का आरंभ उदूय, फारसी
से हुआ और जीवियापि का अध्यापि से। पढिे का शौक उि्हें बचपि
से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उि्होंिे नतशलस्मे होशरूबा पढ
शलया और वे उदूय के मशहूर रचिाकार रतििाथ 'शरसार', शमरजा रुसबा
और मौलािा शरर के उपि्यासों से पररचय प्राप्त कर शलया। १८९८ में
मैहरक की परीक्षा उत्तीणय करिे के बाद वे एक स्थािीय ववद्यालय में
शशक्षक नियुक्त हो गए। िौकरी के साथ ही उन्होंिे पढाई जारी रखी
१९१० में उि्होंिे अंग्रेजी, दशयि, फारसी और इनतहास लेकर इंटर पास
ककया और १९१९ में बी.ए.[6] पास करिे के बाद स्कू लों के डडप्टी सब-
इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। सात वषय की अवस्था में उिकी माता तथा
चौदह वषय की अवस्था में वपता का देहान्त हो जािे के कारण उिका
प्रारंशभक जीवि संघषयमय रहा।[7] उिका पहला वववाह उि हदिों की
परंपरा के अिुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल िहीं रहा
 वे आयय समाज से प्रभाववत रहे, जो उस समय का बहुत बडा धाशमयक और
सामात्जक आंदोलि था। उन्होंिे ववधवा-वववाह का समथयि ककया और
१९०६ में दूसरा वववाह अपिी प्रगनतशील परंपरा के अिुरूप बाल-ववधवा
शशवरािी देवी से ककया। उिकी तीि संतािे हुईं- श्रीपत राय, अमृतराय
और कमला देवी श्रीवास्तव। १९१० में उिकी रचिा सोजे-वति (राष्ट्र का
ववलाप) के शलए हमीरपुर के त्जला कलेक्टर िे तलब ककया और उि पर
जिता को भडकािे का आरोप लगाया। सोजे-वति की सभी प्रनतयां
जब्त कर िष्ट्ट कर दी गई। कलेक्टर िे िवाबराय को हहदायत दी कक अब
वे कु छ भी िहीं शलखेंगे, यहद शलखा तो जेल भेज हदया जाएगा। इस समय
तक प्रेमचंद ,धिपत राय िाम से शलखते थे। उदूय में प्रकाशशत होिे वाली
ज़मािा पत्रत्रका के सम्पादक और उिके अजीज दोस्त मुंशी
दयािारायण निगम िे उन्हें प्रेमचंद िाम से शलखिे की सलाह दी। इसके
बाद वे प्रेमचन्द के िाम से शलखिे लगे। उि्होंिे आरंशभक लेखि ज़मािा
पत्रत्रका में ही ककया। जीवि के अंनतम हदिों में वे गंभीर रुप से बीमार पडे।
उिका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा िहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद ८
अक्टूबर १९३६ को उिका निधि हो गया।
प्रेमचंद की भाषा सरल और सजीव और व्यावहाररक है। उसे साधारण पढे-शलखे लोग भी समझ
लेते हैं। उसमें आवश्यकतािुसार अंग्रेज़ी, उदूय, फारसी आहद के शब्दों का भी प्रयोग है। प्रेमचंद की
भाषा भावों और ववचारों के अिुकू ल है। गंभीर भावों को व्यक्त करिे में गंभीर भाषा और सरल
भावों को व्यक्त करिे में सरल भाषा को अपिाया गया है। इस कारण भाषा में स्वाभाववक
उतार-चढाव आ गया है। प्रेमचंद जी की भाषा पात्रों के अिुकू ल है। उिके हहंदू पात्र हहंदी और
मुत्स्लम पात्र उदूय बोलते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण पात्रों की भाषा ग्रामीण है। और शशक्षक्षतों की भाषा
शुद्ध और पररष्ट्कृ त भाषा है।
प्रेमचंद िे हहंदी और उदूय दोिों की शैशलयों को शमला हदया है। उिकी शैली में जो चुलबुलापि और
निखार है वह उदूय के कारण ही है। प्रेमचंद की शैली की दूसरी ववशेषता सरलता और सजीवता है।
प्रेमचंद का हहंदी और उदूय दोिों पर अधधकार था, अतः वे भावों को व्यक्त करिे के शलए बडे सरल
और सजीव शब्द ढूाँढ लेते थे। उिकी शैली में अलंकाररकता का भी गुण ववद्यमाि है। उपमा,
रूपक, उत्प्रेक्षा आहद अलंकारों के द्वारा शैली में ववशेष लाशलत्य आ गया है। इस प्रकार की
अलंकाररक शैली का पररचय देते हुए वे शलखत हैं- 'अरब की भारी तलवार ईसाई की हल्की कटार
के सामिे शशधथल हो गई। एक सपय के भााँनत फि से चोट करती थी, दुसरी िाधगि की भााँनत उडती
थी। एक लहरों की भााँनत लपकती थी दूसरी जल की मछशलयों की भााँनत चमकती थी।
प्रेमचंद के उपि्यास ि के वल हहि्दी उपि्यास साहहत्य में बत्ल्क संपूणय भारतीय साहहत्य में मील के
पत्थर हैं। प्रेमचन्द कथा-साहहत्य में उिके उपन्याकार का आरम्भ पहले होता है। उिका पहला उदूय
उपन्यास (अपूणय) ‘असरारे मआत्रबद उर्फय देवस्थाि रहस्य’ उदूय साप्ताहहक ‘'आवाज-ए-खल़्'’ में ८
अक्तूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक धारावाहहक रूप में प्रकाशशत हुआ। उिका दूसरा उपि्यास
'हमखुमाय व हमसवाब' त्जसका हहंदी रूपांतरण 'प्रेमा' िाम से 1907 में प्रकाशशत हुआ। चूंकक प्रेमचंद मूल रूप
से उदुय के लेखक थे और उदूय से हहंदी में आए थे, इसशलए उिके सभी आरंशभक उपि्यास मूल रूप से उदूय में
शलखे गए और बाद में उिका हहि्दी तजुयमा ककया गया। उि्होंिे 'सेवासदि' (1918) उपि्यास से हहंदी
उपि्यास की दुनिया में प्रवेश ककया। यह मूल रूप से उि्होंिे 'बाजारे-हुस ्ि' िाम से पहले उदूय में शलखा
लेककि इसका हहंदी रूप 'सेवासदि' पहले प्रकाशशत कराया। 'सेवासदि' एक िारी के वेश ्या बििे की कहािी
है। डॉ रामववलास शमाय के अिुसार 'सेवासदि' में व्यक्त मुख्य समस ्या भारतीय िारी की पराधीिता है।
इसके बाद ककसाि जीवि पर उिका पहला उपि्यास 'प्रेमाश्रम' (1921) आया। इसका मसौदा भी पहले उदूय
में 'गोशाए-आकफयत' िाम से तैयार हुआ था लेककि 'सेवासदि' की भांनत इसे पहले हहंदी में प्रकाशशत
कराया। 'प्रेमाश्रम' ककसाि जीवि पर शलखा हहंदी का संभवतः पहला उपि्यास है। यह अवध के ककसाि
आंदोलिों के दौर में शलखा गया। इसके बाद 'रंगभूशम' (1925), 'कायाकल ्प' (1926), 'निमयला' (1927), 'गबि'
(1931), 'कमयभूशम' (1932) से होता हुआ यह सफर 'गोदाि' (1936) तक पूणयता को प्राप्त हुआ। रंगभूशम में
प्रेमचंद एक अंधे शभखारी सूरदास को कथा का िायक बिाकर हहंदी कथा साहहत्य में क्ांनतकारी बदलाव का
सूत्रपात कर चुके थे।
 गोदाि का हहंदी साहहत्य ही िहीं, ववश ्व साहहत्य में
महत्वपूणय स्थाि है। इसमें प्रेमचंद की साहहत्य संबंधी
ववचारधारा 'आदशोि्मुख यथाथयवाद' से 'आलोचिात्मक
यथाथयवाद' तक की पूणयता प्राप्त करती है। एक सामाि्य
ककसाि को पूरे उपि्यास का िायक बिािा भारतीय उपि्यास
परंपरा की हदशा बदल देिे जैसा था। सामंतवाद और पूंजीवाद
के चक् में फं सकर हुई कथािायक होरी की मृत्यु पाठकों के
जहि को झकझोर कर रख जाती है। ककसाि जीवि पर अपिे
वपछले उपि्यासों 'प्रेमाश्रम' और 'कमयभूशम' में प्रेमंचद यथाथय
की प्रस ्तुनत करते-करते उपि्यास के अंत तक आदशय का दामि
थाम लेते हैं। लेककि गोदाि का कारुणणक अंत इस बात का
गवाह है कक तब तक प्रेमचंद का आदशयवाद से मोहभंग हो चुका
था। यह उिकी आणखरी दौर की कहानियों में भी देखा जा सकता
है। 'मंगलसूत्र' प्रेमचंद का अधूरा उपि्यास है। प्रेचचंद के
उपि्यासों का मूल कथ्य भारतीय ग्रामीण जीवि था।प्रेमचंद
िे हहंदी उपि्यास को जो ऊं चाई प्रदाि की, वह परवती
उपि्यासकारों के शलए एक चुिौती बिी रही।
 उपि्यासों के साथ प्रेमचंद की कहानियों का शसलशसला भी चलता रहा।
उिकी पहली उदूय कहािी दुनिया का सबसे अिमोल रति कािपुर से
प्रकाशशत होिे वाली ज़मािा िामक पत्रत्रका में १९०८ में छपी। प्रेमंचद के कु ल
िौ कहािी संग्रेह प्रकाशशत हुए- 'सप्त सरोज', 'िवनिधध', 'प्रेमपूणणयमा', 'प्रेम-
पचीसी', 'प्रेम-प्रनतमा', 'प्रेम-द्वादशी', 'समरयात्रा', 'मािसरोवर' : भाग एक
व दो, और 'कफि'। उिकी मृत्यु के बाद उिकी कहानियां 'मािसरोवर'
शीषयक से 8 भागों में प्रकाशशत हुई। प्रेमचंद के अध्येता कमलककशोर
गोयिका व प्रेमचंद के बेटे अमृतराय िे प्रेमचंद की कई अप्रकाशशत
कहानियों को ढूंढकर प्रकाशशत कराया। प्रेमचंद साहहत्य के कॉपीराइट से
मुक्त होते होते ही ढेरों संपादकों और प्रकाशकों िे प्रेमचंद की कहानियों के
संकलि तैयार कर प्रकाशशत कराए। प्रेमचंद िे मुख ्य रूप से ग्रामीण जीवि
व मध्यवगीय जीवि पर कहानियां शलखीं। प्रेमचंद की ऐनतहाशसक
कहानियााँ तथा प्रेमचंद की प्रेम संबंधी कहानियााँ भी काफी लोकवप्रय सात्रबत
हुईं। प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ये िाम शलये जा सकते हैं- 'पंच
परमेश ्वर', 'गुल ्ली डंडा', 'दो बैलों की कथा', 'ईदगाह', 'बडे भाई साहब', 'पूस
की रात', 'कफि', 'ठाकु र का कुं आ', 'सद्गनत', 'बूढी काकी', 'तावाि',
'ववध ्वंश', 'दूध का दाम', 'मंत्र' आहद
 प्रेमचंद िे 'संग्राम' (1923), 'कबयला' (1924), और 'प्रेम की वेदी' (1933)
िाटकों की रचिा की। ये िाटक शशल्प और संवेदिा के स्तर पर अच ्छे हैं
लेककि उिकी कहानियों और उपि ्यासों िे इतिी ऊं चाई प्राप्त कर ली थी
कक िाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता िहीं शमली। ये िाटक
वस ्तुतः संवादात्मक उपि ्यास ही बि गए हैं।
 प्रेमचंद एक सफल अिुवादक भी थे। उन्होंिे दूसरी भाषाओं के त्जि
लेखकों को पढा और त्जिसे प्रभाववत हुए, उिकी कृ नतयों का
अिुवाद भी ककया। 'टॉलस्टॉय की कहानियां' (1923), गाल्सवदी के
तीि िाटकों का 'हडताल' (1930), 'चांदी की डडत्रबया' (1931) और
'न्याय' (1931) िाम से अिुवाद ककया। उिके द्वारा रतििाथ
सरशार के उदूय उपन्यास 'फसाि-ए-आजाद' का हहंदी अिुवाद
'आजाद कथा' बहुत मशहूर हुआ।
 प्रेमचंद एक संवेदिशील कथाकार ही िहीं, सजग िागररक व
संपादक भी थे। उि ्होंिे 'हंस', 'माधुरी', 'जागरण' आहद पत्र-
पत्रत्रकाओं का संपादि करते हुए व तत ्कालीि अि ्य सहगामी
साहहत्त्यक पत्रत्रकाओं 'चांद', 'मयायदा', 'स्वदेश' आहद में अपिी
साहहत्त्यक व सामात्जक धचंताओं को लेखों या निबंधों के
माध ्यम से अशभव ्यक्त ककया। अमृतराय द्वारा संपाहदत
'प्रेमचंद : ववववध प्रसंग' (तीि भाग) वास ्तव में प्रेमचंद के लेखों
का ही संकलि है। प्रेमचंद के लेख प्रकाशि संस्थाि से 'कु छ
ववचार' शीषयक से भी छपे हैं। प्रेमचंद के मशहूर लेखों में निम्ि
लेख शुमार होते हैं- साहहत ्य का उद्देश ्य, पुरािा जमािा िया
जमािा, स्वराज के फायदे, कहािी कला (1,2,3), कौमी भाषा के
ववषय में कु छ ववचार, हहंदी-उदूय की एकता, महाजिी सभ ्यता,
उपि ्यास, जीवि में साहहत ्य का स्थाि आहद।
 प्रेमचंद की स्मृनत में भारतीय डाकतार ववभाग की ओर से ३१ जुलाई १९८० को
उिकी जन्मशती के अवसर पर ३० पैसे मूल्य का एक डाक हटकट जारी ककया
गया।[26] गोरखपुर के त्जस स्कू ल में वे शशक्षक थे, वहााँ प्रेमचंद साहहत्य संस्थाि
की स्थापिा की गई है। इसके बरामदे में एक शभवत्तलेख है त्जसका धचत्र दाहहिी
ओर हदया गया है। यहााँ उिसे संबंधधत वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहााँ
उिकी एक वक्षप्रनतमा भी है।[27] प्रेमचंद की १२५वीं सालधगरह पर सरकार की
ओर से घोषणा की गई कक वाराणसी से लगे इस गााँव में प्रेमचंद के िाम पर एक
स्मारक तथा शोध एवं अध्ययि संस्थाि बिाया जाएगा।[28] प्रेमचंद की पत्िी
शशवरािी देवी िे प्रेमचंद घर में िाम से उिकी जीविी शलखी और उिके व्यत्क्तत्व
के उस हहस्से को उजागर ककया है, त्जससे लोग अिशभज्ञ थे। यह पुस्तक १९४४ में
पहली बार प्रकाशशत हुई थी, लेककि साहहत्य के क्षेत्र में इसके महत्व का अंदाजा
इसी बात से लगाया जा सकता है कक इसे दुबारा २००५ में संशोधधत करके प्रकाशशत
की गई, इस काम को उिके ही िाती प्रबोध कु मार िे अंजाम हदया। इसका
अाँग्रेज़ी[29] व हसि मंज़र का ककया हुआ उदूय[30] अिुवाद भी प्रकाशशत हुआ।
उिके ही बेटे अमृत राय िे कलम का शसपाही िाम से वपता की जीविी शलखी है।
उिकी सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उदूय रूपांतर तो हुए ही हैं, चीिी, रूसी आहद अिेक
ववदेशी भाषाओं में उिकी कहानियााँ लोकवप्रय हुई हैं।[31]
 सादा एवं सरल जीवि के माशलक प्रेमचन्द सदा मस्त
रहते थे। उिके जीवि में ववषमताओं और कटुताओं से
वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंिे बाजी
माि शलया त्जसको हमेशा जीतिा चाहते थे।जहां उिके
हृदय में शमत्रों के शलए उदार भाव था वहीं उिके हृदय
में गरीबों एवं पीडडतों के शलए सहािुभूनत का अथाह
सागर था। जैसा कक उिकी पत्िी कहती हैं "कक जाडे
के हदिों में चालीस - चालीस रुपये दो बार हदए गए
दोिों बार उन्होंिे वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे
हदये। मेरे िाराज होिे पर उन्होंिे कहा कक यह कहां
का इंसाफ है कक हमारे प्रेस में काम करिे वाले मजदूर
भूखे हों और हम गरम सूट पहिें।"
मृत्यू के कु छ घंटे पहले भी उन्होंिे जैिेन्द्रजी से कहा
था - "जैिेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते
हैं मुझे भी याद हदलाई जाती है। पर मुझे अभी तक
ईश्वर को कष्ट्ट देिे की आवश्यकता महसूस िहीं हुई।"
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  • 1.
  • 2. उपनाम: प्रेमचंद जन्म: 31 जुलाई, 1880 ग्राम लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश,भारत मृत्यु: 8 अक्तूब, 1936 वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत काययक्षेत्र: अध्यापक, लेखक, पत्रकार राष्ट्रीयता: भारतीय भाषा: हहन्दी काल: आधुनिक काल ववधा: कहािी और उपन्यास साहहत्त्यक आन्दोलि: आदशोन्मुख यथाथयवाद प्रगनतशील लेखक आन्दोलि
  • 3.  प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के निकट लमही गााँव में हुआ था। उिकी माता का िाम आिन्दी देवी था तथा वपता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उिकी शशक्षा का आरंभ उदूय, फारसी से हुआ और जीवियापि का अध्यापि से। पढिे का शौक उि्हें बचपि से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उि्होंिे नतशलस्मे होशरूबा पढ शलया और वे उदूय के मशहूर रचिाकार रतििाथ 'शरसार', शमरजा रुसबा और मौलािा शरर के उपि्यासों से पररचय प्राप्त कर शलया। १८९८ में मैहरक की परीक्षा उत्तीणय करिे के बाद वे एक स्थािीय ववद्यालय में शशक्षक नियुक्त हो गए। िौकरी के साथ ही उन्होंिे पढाई जारी रखी १९१० में उि्होंिे अंग्रेजी, दशयि, फारसी और इनतहास लेकर इंटर पास ककया और १९१९ में बी.ए.[6] पास करिे के बाद स्कू लों के डडप्टी सब- इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। सात वषय की अवस्था में उिकी माता तथा चौदह वषय की अवस्था में वपता का देहान्त हो जािे के कारण उिका प्रारंशभक जीवि संघषयमय रहा।[7] उिका पहला वववाह उि हदिों की परंपरा के अिुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल िहीं रहा
  • 4.  वे आयय समाज से प्रभाववत रहे, जो उस समय का बहुत बडा धाशमयक और सामात्जक आंदोलि था। उन्होंिे ववधवा-वववाह का समथयि ककया और १९०६ में दूसरा वववाह अपिी प्रगनतशील परंपरा के अिुरूप बाल-ववधवा शशवरािी देवी से ककया। उिकी तीि संतािे हुईं- श्रीपत राय, अमृतराय और कमला देवी श्रीवास्तव। १९१० में उिकी रचिा सोजे-वति (राष्ट्र का ववलाप) के शलए हमीरपुर के त्जला कलेक्टर िे तलब ककया और उि पर जिता को भडकािे का आरोप लगाया। सोजे-वति की सभी प्रनतयां जब्त कर िष्ट्ट कर दी गई। कलेक्टर िे िवाबराय को हहदायत दी कक अब वे कु छ भी िहीं शलखेंगे, यहद शलखा तो जेल भेज हदया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद ,धिपत राय िाम से शलखते थे। उदूय में प्रकाशशत होिे वाली ज़मािा पत्रत्रका के सम्पादक और उिके अजीज दोस्त मुंशी दयािारायण निगम िे उन्हें प्रेमचंद िाम से शलखिे की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचन्द के िाम से शलखिे लगे। उि्होंिे आरंशभक लेखि ज़मािा पत्रत्रका में ही ककया। जीवि के अंनतम हदिों में वे गंभीर रुप से बीमार पडे। उिका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा िहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद ८ अक्टूबर १९३६ को उिका निधि हो गया।
  • 5. प्रेमचंद की भाषा सरल और सजीव और व्यावहाररक है। उसे साधारण पढे-शलखे लोग भी समझ लेते हैं। उसमें आवश्यकतािुसार अंग्रेज़ी, उदूय, फारसी आहद के शब्दों का भी प्रयोग है। प्रेमचंद की भाषा भावों और ववचारों के अिुकू ल है। गंभीर भावों को व्यक्त करिे में गंभीर भाषा और सरल भावों को व्यक्त करिे में सरल भाषा को अपिाया गया है। इस कारण भाषा में स्वाभाववक उतार-चढाव आ गया है। प्रेमचंद जी की भाषा पात्रों के अिुकू ल है। उिके हहंदू पात्र हहंदी और मुत्स्लम पात्र उदूय बोलते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण पात्रों की भाषा ग्रामीण है। और शशक्षक्षतों की भाषा शुद्ध और पररष्ट्कृ त भाषा है। प्रेमचंद िे हहंदी और उदूय दोिों की शैशलयों को शमला हदया है। उिकी शैली में जो चुलबुलापि और निखार है वह उदूय के कारण ही है। प्रेमचंद की शैली की दूसरी ववशेषता सरलता और सजीवता है। प्रेमचंद का हहंदी और उदूय दोिों पर अधधकार था, अतः वे भावों को व्यक्त करिे के शलए बडे सरल और सजीव शब्द ढूाँढ लेते थे। उिकी शैली में अलंकाररकता का भी गुण ववद्यमाि है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आहद अलंकारों के द्वारा शैली में ववशेष लाशलत्य आ गया है। इस प्रकार की अलंकाररक शैली का पररचय देते हुए वे शलखत हैं- 'अरब की भारी तलवार ईसाई की हल्की कटार के सामिे शशधथल हो गई। एक सपय के भााँनत फि से चोट करती थी, दुसरी िाधगि की भााँनत उडती थी। एक लहरों की भााँनत लपकती थी दूसरी जल की मछशलयों की भााँनत चमकती थी।
  • 6. प्रेमचंद के उपि्यास ि के वल हहि्दी उपि्यास साहहत्य में बत्ल्क संपूणय भारतीय साहहत्य में मील के पत्थर हैं। प्रेमचन्द कथा-साहहत्य में उिके उपन्याकार का आरम्भ पहले होता है। उिका पहला उदूय उपन्यास (अपूणय) ‘असरारे मआत्रबद उर्फय देवस्थाि रहस्य’ उदूय साप्ताहहक ‘'आवाज-ए-खल़्'’ में ८ अक्तूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक धारावाहहक रूप में प्रकाशशत हुआ। उिका दूसरा उपि्यास 'हमखुमाय व हमसवाब' त्जसका हहंदी रूपांतरण 'प्रेमा' िाम से 1907 में प्रकाशशत हुआ। चूंकक प्रेमचंद मूल रूप से उदुय के लेखक थे और उदूय से हहंदी में आए थे, इसशलए उिके सभी आरंशभक उपि्यास मूल रूप से उदूय में शलखे गए और बाद में उिका हहि्दी तजुयमा ककया गया। उि्होंिे 'सेवासदि' (1918) उपि्यास से हहंदी उपि्यास की दुनिया में प्रवेश ककया। यह मूल रूप से उि्होंिे 'बाजारे-हुस ्ि' िाम से पहले उदूय में शलखा लेककि इसका हहंदी रूप 'सेवासदि' पहले प्रकाशशत कराया। 'सेवासदि' एक िारी के वेश ्या बििे की कहािी है। डॉ रामववलास शमाय के अिुसार 'सेवासदि' में व्यक्त मुख्य समस ्या भारतीय िारी की पराधीिता है। इसके बाद ककसाि जीवि पर उिका पहला उपि्यास 'प्रेमाश्रम' (1921) आया। इसका मसौदा भी पहले उदूय में 'गोशाए-आकफयत' िाम से तैयार हुआ था लेककि 'सेवासदि' की भांनत इसे पहले हहंदी में प्रकाशशत कराया। 'प्रेमाश्रम' ककसाि जीवि पर शलखा हहंदी का संभवतः पहला उपि्यास है। यह अवध के ककसाि आंदोलिों के दौर में शलखा गया। इसके बाद 'रंगभूशम' (1925), 'कायाकल ्प' (1926), 'निमयला' (1927), 'गबि' (1931), 'कमयभूशम' (1932) से होता हुआ यह सफर 'गोदाि' (1936) तक पूणयता को प्राप्त हुआ। रंगभूशम में प्रेमचंद एक अंधे शभखारी सूरदास को कथा का िायक बिाकर हहंदी कथा साहहत्य में क्ांनतकारी बदलाव का सूत्रपात कर चुके थे।
  • 7.  गोदाि का हहंदी साहहत्य ही िहीं, ववश ्व साहहत्य में महत्वपूणय स्थाि है। इसमें प्रेमचंद की साहहत्य संबंधी ववचारधारा 'आदशोि्मुख यथाथयवाद' से 'आलोचिात्मक यथाथयवाद' तक की पूणयता प्राप्त करती है। एक सामाि्य ककसाि को पूरे उपि्यास का िायक बिािा भारतीय उपि्यास परंपरा की हदशा बदल देिे जैसा था। सामंतवाद और पूंजीवाद के चक् में फं सकर हुई कथािायक होरी की मृत्यु पाठकों के जहि को झकझोर कर रख जाती है। ककसाि जीवि पर अपिे वपछले उपि्यासों 'प्रेमाश्रम' और 'कमयभूशम' में प्रेमंचद यथाथय की प्रस ्तुनत करते-करते उपि्यास के अंत तक आदशय का दामि थाम लेते हैं। लेककि गोदाि का कारुणणक अंत इस बात का गवाह है कक तब तक प्रेमचंद का आदशयवाद से मोहभंग हो चुका था। यह उिकी आणखरी दौर की कहानियों में भी देखा जा सकता है। 'मंगलसूत्र' प्रेमचंद का अधूरा उपि्यास है। प्रेचचंद के उपि्यासों का मूल कथ्य भारतीय ग्रामीण जीवि था।प्रेमचंद िे हहंदी उपि्यास को जो ऊं चाई प्रदाि की, वह परवती उपि्यासकारों के शलए एक चुिौती बिी रही।
  • 8.  उपि्यासों के साथ प्रेमचंद की कहानियों का शसलशसला भी चलता रहा। उिकी पहली उदूय कहािी दुनिया का सबसे अिमोल रति कािपुर से प्रकाशशत होिे वाली ज़मािा िामक पत्रत्रका में १९०८ में छपी। प्रेमंचद के कु ल िौ कहािी संग्रेह प्रकाशशत हुए- 'सप्त सरोज', 'िवनिधध', 'प्रेमपूणणयमा', 'प्रेम- पचीसी', 'प्रेम-प्रनतमा', 'प्रेम-द्वादशी', 'समरयात्रा', 'मािसरोवर' : भाग एक व दो, और 'कफि'। उिकी मृत्यु के बाद उिकी कहानियां 'मािसरोवर' शीषयक से 8 भागों में प्रकाशशत हुई। प्रेमचंद के अध्येता कमलककशोर गोयिका व प्रेमचंद के बेटे अमृतराय िे प्रेमचंद की कई अप्रकाशशत कहानियों को ढूंढकर प्रकाशशत कराया। प्रेमचंद साहहत्य के कॉपीराइट से मुक्त होते होते ही ढेरों संपादकों और प्रकाशकों िे प्रेमचंद की कहानियों के संकलि तैयार कर प्रकाशशत कराए। प्रेमचंद िे मुख ्य रूप से ग्रामीण जीवि व मध्यवगीय जीवि पर कहानियां शलखीं। प्रेमचंद की ऐनतहाशसक कहानियााँ तथा प्रेमचंद की प्रेम संबंधी कहानियााँ भी काफी लोकवप्रय सात्रबत हुईं। प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ये िाम शलये जा सकते हैं- 'पंच परमेश ्वर', 'गुल ्ली डंडा', 'दो बैलों की कथा', 'ईदगाह', 'बडे भाई साहब', 'पूस की रात', 'कफि', 'ठाकु र का कुं आ', 'सद्गनत', 'बूढी काकी', 'तावाि', 'ववध ्वंश', 'दूध का दाम', 'मंत्र' आहद
  • 9.  प्रेमचंद िे 'संग्राम' (1923), 'कबयला' (1924), और 'प्रेम की वेदी' (1933) िाटकों की रचिा की। ये िाटक शशल्प और संवेदिा के स्तर पर अच ्छे हैं लेककि उिकी कहानियों और उपि ्यासों िे इतिी ऊं चाई प्राप्त कर ली थी कक िाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता िहीं शमली। ये िाटक वस ्तुतः संवादात्मक उपि ्यास ही बि गए हैं।  प्रेमचंद एक सफल अिुवादक भी थे। उन्होंिे दूसरी भाषाओं के त्जि लेखकों को पढा और त्जिसे प्रभाववत हुए, उिकी कृ नतयों का अिुवाद भी ककया। 'टॉलस्टॉय की कहानियां' (1923), गाल्सवदी के तीि िाटकों का 'हडताल' (1930), 'चांदी की डडत्रबया' (1931) और 'न्याय' (1931) िाम से अिुवाद ककया। उिके द्वारा रतििाथ सरशार के उदूय उपन्यास 'फसाि-ए-आजाद' का हहंदी अिुवाद 'आजाद कथा' बहुत मशहूर हुआ।
  • 10.  प्रेमचंद एक संवेदिशील कथाकार ही िहीं, सजग िागररक व संपादक भी थे। उि ्होंिे 'हंस', 'माधुरी', 'जागरण' आहद पत्र- पत्रत्रकाओं का संपादि करते हुए व तत ्कालीि अि ्य सहगामी साहहत्त्यक पत्रत्रकाओं 'चांद', 'मयायदा', 'स्वदेश' आहद में अपिी साहहत्त्यक व सामात्जक धचंताओं को लेखों या निबंधों के माध ्यम से अशभव ्यक्त ककया। अमृतराय द्वारा संपाहदत 'प्रेमचंद : ववववध प्रसंग' (तीि भाग) वास ्तव में प्रेमचंद के लेखों का ही संकलि है। प्रेमचंद के लेख प्रकाशि संस्थाि से 'कु छ ववचार' शीषयक से भी छपे हैं। प्रेमचंद के मशहूर लेखों में निम्ि लेख शुमार होते हैं- साहहत ्य का उद्देश ्य, पुरािा जमािा िया जमािा, स्वराज के फायदे, कहािी कला (1,2,3), कौमी भाषा के ववषय में कु छ ववचार, हहंदी-उदूय की एकता, महाजिी सभ ्यता, उपि ्यास, जीवि में साहहत ्य का स्थाि आहद।
  • 11.  प्रेमचंद की स्मृनत में भारतीय डाकतार ववभाग की ओर से ३१ जुलाई १९८० को उिकी जन्मशती के अवसर पर ३० पैसे मूल्य का एक डाक हटकट जारी ककया गया।[26] गोरखपुर के त्जस स्कू ल में वे शशक्षक थे, वहााँ प्रेमचंद साहहत्य संस्थाि की स्थापिा की गई है। इसके बरामदे में एक शभवत्तलेख है त्जसका धचत्र दाहहिी ओर हदया गया है। यहााँ उिसे संबंधधत वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहााँ उिकी एक वक्षप्रनतमा भी है।[27] प्रेमचंद की १२५वीं सालधगरह पर सरकार की ओर से घोषणा की गई कक वाराणसी से लगे इस गााँव में प्रेमचंद के िाम पर एक स्मारक तथा शोध एवं अध्ययि संस्थाि बिाया जाएगा।[28] प्रेमचंद की पत्िी शशवरािी देवी िे प्रेमचंद घर में िाम से उिकी जीविी शलखी और उिके व्यत्क्तत्व के उस हहस्से को उजागर ककया है, त्जससे लोग अिशभज्ञ थे। यह पुस्तक १९४४ में पहली बार प्रकाशशत हुई थी, लेककि साहहत्य के क्षेत्र में इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कक इसे दुबारा २००५ में संशोधधत करके प्रकाशशत की गई, इस काम को उिके ही िाती प्रबोध कु मार िे अंजाम हदया। इसका अाँग्रेज़ी[29] व हसि मंज़र का ककया हुआ उदूय[30] अिुवाद भी प्रकाशशत हुआ। उिके ही बेटे अमृत राय िे कलम का शसपाही िाम से वपता की जीविी शलखी है। उिकी सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उदूय रूपांतर तो हुए ही हैं, चीिी, रूसी आहद अिेक ववदेशी भाषाओं में उिकी कहानियााँ लोकवप्रय हुई हैं।[31]
  • 12.
  • 13.  सादा एवं सरल जीवि के माशलक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उिके जीवि में ववषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंिे बाजी माि शलया त्जसको हमेशा जीतिा चाहते थे।जहां उिके हृदय में शमत्रों के शलए उदार भाव था वहीं उिके हृदय में गरीबों एवं पीडडतों के शलए सहािुभूनत का अथाह सागर था। जैसा कक उिकी पत्िी कहती हैं "कक जाडे के हदिों में चालीस - चालीस रुपये दो बार हदए गए दोिों बार उन्होंिे वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे हदये। मेरे िाराज होिे पर उन्होंिे कहा कक यह कहां का इंसाफ है कक हमारे प्रेस में काम करिे वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहिें।" मृत्यू के कु छ घंटे पहले भी उन्होंिे जैिेन्द्रजी से कहा था - "जैिेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद हदलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट्ट देिे की आवश्यकता महसूस िहीं हुई।"