1. - सूर्यक ांत त्रिप ठी ‘त्रिर ल ’
1. उत्साह
2. अट नहीं रही है
कविता-
2. सूर्यक ांत त्रिप ठी ‘त्रिर ल ’
सूर्यक ांत त्रिप ठी 'त्रिर ल '
क जन्म बांग ल के मत्रिष दल
में सि् 1899 में िुआ । वे मूलत:
गढ कोल , उत्तर प्रदेश के
त्रिव सी थे। त्रिर ल की
औपच ररक त्रशक्ष िौवीं तक
मत्रिष दल में िी िुई। त्रिर ल
क प ररव ररक जीवि दुखों से
भर थ । सि् 1961 में उिक
देि ांत िो गर् ।
6. उत्साह
बादल निराला का निय निषय है।
कनिता में बादल एक तरफ़ पीनित जि की
आकाांश्रा को पूरा करिेिाला है, तो दूसरी
तरफ़ िही बादल ियी कल्पिा और िए अांकु र
के नलए क्ाांनत चेतिा को सांभि करिेिाला है।
7. ब दल, गरजो!-
घेर घेर घोर गगि, ध र धर ओ
लत्रलत लत्रलत, क ले घुँघर ले,
ब ल कल्पि के -से प ले,
त्रवद्युत-छत्रब उर में,कत्रव,िवजीवि व ले!
वज्र त्रछप , िूति कत्रवत
त्रिर भर दो-
ब दल, गरजो!
8. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्ि के वनदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात वदशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से विर
शीतल कर दो-
बादल, गरजो!
9. प्रस्तुत कविता एक आह्वाहन गीत है। इसमें कवि बादल से घनघोर गजजन के
साथ बरसने की अपील कर रहे हैं। बादल बच्चों के काले घुंघराले बालों जैसे हैं।
कवि बादल से बरसकर सबकी प्यास बुझाने और गरज कर सुखी बनाने का
आग्रह कर रहे हैं। कवि बादल में निजीिन प्रदान करने िाला बाररश तथा
सबकु छ तहस-नहस कर देने िाला िज्रपात दोनों देखते हैं इसवलए िे बादल से
अनुरोध करते हैं वक िह अपने कठोर िज्रशवि को अपने भीतर छु पाकर सब
में नई स्िू वतज और नया जीिन डालने के वलए मूसलाधार बाररश करे।
आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल को देखकर कवि को लगता है की िे बेचैन
से हैं तभी उन्हें याद आता है वक समस्त धरती भीषण गमी से परेशान है
इसवलए आकाश की अनजान वदशा से आकर काले-काले बादल पूरी तपती हुई
धरती को शीतलता प्रदान करने के वलए बेचैन हो रहे हैं। कवि आग्रह करते हैं
की बादल खूब गरजे और बरसे और सारे धरती को तृप्त करे।
भािार्थ
10. अट नहीं रही है कविता िागुन की मादकता को
प्रकट करती है। कवि िागुन की सिजव्यापक
सुंदरता को अनेक संदभों में देखता है। जब मन
प्रसन्न हो तो हर तरि िागुन का ही सौंदयज
वदखाई पड़ता है। सुंदर शब्दों के चयन एिं लय ने
कविता को भी िागुन की ही तरह सुदंर एिं लवलत
बना वदया है।
11. अट ििीं रिी िै
आभ ि गुि की ति
सट ििीं रिी िै।
किीं स ँस लेते िो,
घर-घर भर देते िो,
उड़िे को िभ मे तुम
पर-पर कर देते िो,
12. आँख हटाता हँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
13. प्रस्तुत कविता में कवि ने िागुन का मानिीकरण वचत्र प्रस्तुत वकया है।
िागुन यानी फ़रिरी-माचज के महीने में िसंत ऋतू का आगमन होता है। इस
ऋतू में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आते हैं। रंग-वबरंगे िू लों की बहार
छा जाती है और उनकी सुगंध से सारा िातािरण महक उठता है। कवि को
ऐसा प्रतीत होता है मानो िागुन के सांस लेने पर सब जगह सुगंध िै ल गयी
हो। िे चाहकर भी अपनी आँखे इस प्राकृ वतक सुंदरता से हटा नही सकते।
इस मौसम में बाग़-बगीचों, िन-उपिनों के सभी पेड़-पौधे नए-नए पत्तों से
लद गए हैं, कहीं यहीं लाल रंग के हैं तो कहीं हरे और डावलयाँ अनवगनत
िू लों से लद गए हैं वजससे कवि को ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृ वत देिी ने
अपने गले रंग वबरंगे और सुगवन्धत िू लों की माला पहन रखी हो। इस
सिजव्यापी सुंदरता का कवि को कहीं ओऱ-छोर नजर नही आ रहा है इसवलए
कवि कहते हैं की िागुन की सुंदरता अट नही रही है।
भािार्थ
15. शीतल - ठंडा
छवि - सौंदयज
उर - हृदय
विकल - बैचैन
अट - समाना
पाट-पाट - जगह-जगह
शोभा श्री - सौंदयज से भरपूर
पट - समा नही रही
16. प्रश्न अभ्यास
1. कवि बादल से फुहार, ररमविम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के वलए कहता
है, क्यों?
उत्तर :- कवि ने बादल से फुहार, ररमविम या बरसने के वलए नहीं कहता बवकक
'गरजने' के वलए कहा है; क्योंवक 'गरजना' विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के
गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान वकया है।
17. 2. कविता का शीषजक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर :- यह एक आह्वान गीत है। कवि क्ांवत लाने के वलए
लोगों को उत्सावहत करना चाहते हैं। बादल का गरजना लोगों
के मन में उत्साह भर देता है। इसवलए कविता का
शीषजकउत्साहरखा गया है।
3. कविता में बादल वकन-वकन अथों की ओर संके त करता है ?
उत्तर :- कविता में बादल वनम्नवलवखत अथों की ओर संके त करता है -
1. जल बरसाने िाली शवि है।
2. बादल पीवड़त-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने िाला है।
3. बादल कवि में उत्साह और संघषज भर कविता में नया जीिन लाने में
सवक्य है।
18. 4. शब्दों का ऐसा प्रयोग वजससे कविता के वकसी खास भाि
या दृश्य में ध्िन्यात्मक प्रभाि पैदा हो, नाद-सौंदयज कहलाता
है।उत्साहकविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं वजनमें नाद-सौंदयज
मौजूद है, छाँटकर वलखें।
उत्तर :- कविता की इन पंवियों में नाद-सौंदयज मौजूद है - 1.
"घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
2. लवलत लवलत, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के -से पाले
3. "विद्युत-छवि उर में"
19. 1. छायािाद की एक खास विशेषता है अन्तमजन के भािों का बाहर की दुवनया से सामंजस्य
वबठाना। कविता की वकन पंवियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है?वलवखए।
उत्तर :- कविता के वनम्नवलवखत पंवियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है वक प्रस्तुत
कविता में अन्तमजन के भािों का बाहर की दुवनया से सामंजस्य वबठाया गया है :
कहीं साँस लेते हो,
घर घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम,
पर पर कर देते हो।
2. कवि की आँख िागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर :- िागुन का मौसम तथा दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों तरि का दृश्य अत्यंत
स्िच्छ तथा हरा-भरा वदखाई दे रहा है। पेड़ों पर कहीं हरी तो कही लाल पवत्तयाँ हैं, िू लों की
मंद-मंद खुश्बू हृदय को मुग्ध कर लेती है। इसीवलए कवि की आँख िागुन की सुंदरता से
हट नहीं रही है।
20. 3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृवत की व्यापकता का िर्णन वकन रूपों में वकया है?
उत्तर :- प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूयणकान्त विपाठी ‘वनराला’ जी ने फागुन के
सिणव्यापक सौन्दयण और मादक रूप के प्रभाि को दर्ाणया है।पेड़-पौधे नए-नए पत्तों,फल और
फूलों से अटे पड़े हैं,हिा सुगवन्धत हो उठी है,प्रकृवत के कर्-कर् में सौन्दयण भर गया है। खेत-
खवलहानों, बाग़-बगीचों, जीि-जन्तुओं, पर्ु-पवियों एिं चौक-चौबारों में फ़ागुन का उकलास
सहज ही वदखता है।
4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से वभन्न होता है ?
उत्तर :- फागुन में सिणि मादकता मादकता छाई रहती है। प्राकृवतक र्ोभा अपने पूर्ण यौिन पर
होती है। पेड़-पौधें नए पत्तों, फल और फूलों से लद जाते हैं, हिा सुगवन्धत हो उठती है। आकार्
साफ-स्िच्छ होता है। पवियों के समूह आकार् में विहार करते वदखाई देते हैं। बाग-बगीचों और
पवियों में उकलास भर जाता हैं। इस तरह फागुन का सौंदयण बाकी ऋतुओं से वभन्न है।
21. 5. इन कविताओं के आधार पर वनराला के काव्य-वर्कप की विर्ेषताएँ बताएँ।
उत्तर :- महाकवि सूयणकान्त विपाठी ‘वनराला’ जी छायािाद के प्रमुख कवि माने जाते
हैं। छायािाद की प्रमुख विर्ेषताएँ हैं- प्रकृवत वचिर् और प्राकृवतक उपादानों का
मानिीकरर्।‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ दोनों ही कविताओं में प्राकृवतक
उपादानों का वचिर् और मानिीकरर् हुआ है। काव्य के दो पि हुआ करते हैं-
अनुभूवत पि और अवभव्यवि पि अथाणत् भाि पि और वर्कप पि ।इस दृवि से
दोनों कविताएँ सराह्य हैं। छायािाद की अन्य विर्ेषताएँ जैसे गेयता , प्रिाहमयता ,
अलंकार योजना और संगीतात्मकता आवद भी विद्यमान है।‘वनराला’ जी की भाषा
एक ओर जहाँ संस्कृतवनष्ठ, सामावसक और आलंकाररक है तो िहीं दूसरी ओर ठेठ
ग्रामीर् र्ब्द का प्रयोग भी पठनीय है। अतुकांत र्ैली में रवचत कविताओं में क्ाँवत
का स्िर , मादकता एिम् मोहकता भरी है। भाषा सरल, सहज, सुबोध और
प्रिाहमयी है।