आज उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचलित शल्यक्रिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस तकनीक ने उदरदर्शी शल्य-चिकित्सा के एक नये युग की शुरूवात की है। इस तकनीक ने शल्य-विज्ञान को एक नई दिशा दी है और शोधकर्ताओं को नई राह बतलाई है। जहां किसी जमाने में पित्ताशय-उच्छेदन एक जोखिम भरी, कष्टदायक और भयभीत कर देने वाली शल्यक्रिया थी वहीं आज यह एक रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद चिकित्सकों ने पित्तपथरी के पुराने जुगाड़ू उपचार जैसे पित्त-लवण, लिथोट्रिप्सी आदि को अपने पिटारे से अलग कर दिया है। (विच्छेदन = चीर-फाड़ करना और उच्छेदन = किसी अंग को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन के फायदे
• उदरदर्शी तकनीक से की गई पित्ताशय-उच्छेदन शल्यक्रिया में रोगी को कोई वेदना या कष्ट नहीं होता है और सामान्यतः दर्द निवारक दवाओं की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रायः शल्यक्रिया के दूसरे दिन उसे घर भेज दिया जाता है और एक सप्ताह बाद वह अपने सारे कार्य सुचारु रूप से करने लगता है।
• इस विधि में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर सिर्फ चार छोटे छिद्र किये जाते हैं। जिनके घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ हफ्तों में इनके निशान भी पूरी तरह मिट जाते हैं।
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हर्निया जैसी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई निशान नहीं होने से पेट की सुन्दरता बनी रहती है और स्त्रियों को साड़ी पहनने में कोई शर्म या झिझक नहीं होती है।
1. या लेप कोली
Dr. B.L.Gochar, M.S.
Laparoscopic Surgeon
Anurag Hospital & Research Centre
7-C-34, Mahaveer Nagar III, Kota Raj.
आज उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचिलत शल्यिक्रया है
कहना अितशयोि� नहीं होगा िक इस तकनीक ने उदरदश� शल-िचिकत्सा के एक नये युग क� शु�वात क� है। इस
तकनीक ने शल्-िव�ान को एक नई िदशा दी है और शोधकतार्ओं को नई राह बतलाई है। जहां िकसी जमाने मे
िप�ाशय-उच्छेदन एक जोिखम भर, क�दायक और भयभीत कर देने वाली शल्यिक्रया थी वहीं आज यह
रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद िचिकत्सकों ने िप�पथरी के पुराने जुगाड़� उपचार जैसे ि-
लवण, िलथोिट्रप्सी आिद को अपने िपटारे से अलग कर िद
है। (िवच्छेदन= चीर-फाड़ करना और उच्छेद = िकसी अंग
को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन के फायद
• उदरदश� तकनीक से क� गई िप�ाशय-उच्छेदन शल्यिक्
में रोगी को कोई वेदना या क� नहीं होता है और सामान्य
ददर् िनवारक दवाओं क� आवश्यकता भी नहीं पड़ती ह
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने क� ज�रत नहीं होती
है। प्रायः शल्यिक्रयाके दूसरे िदन उसे घर भेज िदया
है और एक स�ाह बाद वह अपने सारे कायर् सुचा� �प से
करने लगता है।
• इस िविध में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर िसफर् चार छो
िछद्र िकये जातेहैं। िजनके घावबह�त जल्दी ठीक हो जाते
और कुछ हफ्तों में इनके िनशान भी पूरी तरह िमट जाते ह
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हिनर्या जैसी
2. तकलीफों से मुि� िमल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई िनशान नहीं होने से पेट क� सुन्दरता बनी रहती है और ि�यों को साड़ी पहनने
कोई शमर् या िझझक नहीं होती है।
िप�-पथरी रोग क� व्यापकता(Incidence of Gall Stones)
आजकल िप�पथरी रोग बह�त सामान्य और व्यापक हो गया है। वैसे तो हर आ, िलंग, धमर् और प्रदेश के मनु
को यह रोग अपना िशकार बनाता है. लेिकन यह सयानी, स्थू, संतानवती और साध्मा (Flatulent) ि�यों से
िवशेष स्नेह रखता है। अथार्त इनको िप�पथरी रोग होने क� संभावना अिधक रहती है(5 S इसका स्मृि-सूत्र )
अंग्रेजी में िचिकत्सक कहते हैं िक यह Fat, Fertile, Flatulent, Female of Forty (स्मृि-सूत्5 F) से
Flirt करना पसन्द करता है।
िपछले दो दशकों में सोनोग्राफ� का प्रचलन बढ़
आजकल िप�पथरी का िनदान बह�त आसान हो गया
है, िजसके फलस्व�प आज ल�णहीन पथरी के रोिगयो
क� संख्या में िवस्फोटक दर से वृिद्ध ह�ई है। ध्यान
योग्य बात यह है िक इन ल�णहीन रोिगयों में से प
वषर् मुिश्कल स2-3 % रोिगयों को कोई तकलीफ या
ल�ण होते हैं। अब प्र� यह है िक क्या इन स
शल्-उपचार होना चािहये। यह तो सचमुच वाद-िववाद
का िवषय है। जहाँ िचिकत्सकों का एक खेमा संक्रमण और कैंसर जैसी जिटलताओं से सुर�ा का हवाला देक
रोगी में शल्यिक्रया क� वकालत करता है। वहींएक दूसरा खेमा भी है जो कहता है िक हर ल�णहीन रोग
शल्यिक्रया करना न उिचत है और न ही हमारे पास इतने संसाधन हैं। प्रती�ा और िनगरानी रखना ही उिचत
है।
िप�ाशय-उच्छेदन का इितहा (History of Cholecystectomy)
िव� में पहली बार खुला िप�ाश-उच्छेदन1882 में कालर् लेंगरबक ने िकया था। इसके ब
खुली तकनीक से िप�पथरी का सफल उपचार िकया जाता रहा। लगभग 100 वष� बाद
िप�पथरी के उपचार में क्रांितकारी बदलाव तब , जब 12 िसतंबर, 1985 को जमर्नी के
ए�रक मुहे ने पेट में छोटे से छेद करके उदरदश-यंत्र द्वारा प
सफल िप�ाशय-उच्छेदन िकया।1986 में जब उसने जमर्
सोसाइटी ऑफ सजर्न्स कोसूिचत िकया तो उसके इस महान काय
का अनादर करते ह�ए उसे अस्वीकार कर िदया गया। इसके बाद
1987 में फ्रांस के िफिलप मोरेट ने उदरदश� िप�-उच्छेदन
िकया और इसे प्रचिलत िकया।ड्युबॉ, पेरीसेट और उनके सहयोिगयों ने भी इस
महान तकनीक को पूरे युरोप में खूब प्रचिलत िकया। लेि1992 में जाकर नेशनल
3. इिन्स्टट्यूट ऑफ हेल्थ ने उदरदश� तकनीक को िप�पथरी के सुरि�त और प्रभावशाली उपचार के �
प्रमािणत िकया। इसके बाद उदर के कई जिटल शल्य भी उदरदश� यंत्र क� मदद से िकये जाने लगे आिखरकार
1999 में सोसाइटी ऑफ अमे�रकन गेस्ट्रोइन्टेस्टाइनल Society of American Gastrointestinal
Surgeons (SAGES) ने माना िक िव� का पहला उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन ए�रक मुहे ने िकया था।
तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे िजतना
पर उसको याद रखना, रोशन हो िजसके पीछे
िप�ाशय संरचना और कायर् प्रणा
िप�ाशय यकृत के नीचे क� सतह से
जुड़ी नाशपाती के आकार क� एक
थैली के समान संरचना है िजसका
काफ� िहस्सा उदरावर
(Peritoneum) से आच्छािदत
रहता है। यह यकृत के दािहने और
बायें खण्ड के संगम स्थल पर िस
होता है और इसक� लंबाई 7-10
से.मी. और व्यास2.5-5 से.मी. होता
है। इसके चार उपांग क्रमशः बु,
धड़, कुप्पी और गदर् (Fundus,
Body, Infundibulum & Neck)
होते हैं। इसक� भर-�मता 60
एम.एल. होती है जो िवषम प�रिस्थितयों में बढ़ 300 एम.एल. तक हो सकती है। इसक� गदर्न में ए S के
आकार का मोड़ उस जगह होता है, जहाँ यह िप�वािहनी (Cystic Duct) से िमलती है। कभी-कभी गदर्न क� िभि�
में गुब्बारे क� तरह फुलाव आ जाता है िजसे हाटर्मेन थै(Hartmann pouch )कहते हैं।
यकृत से िप� दािहनी और बांई यकृत-वािहनी (Right and Left Hepatic Duct) द्वारा िनकलता है और उनक
िवलय से बनी मुख्य यकृ-वािहनी (Common Hepatic Duct) में होता ह�आ िप�ाश-वािहनी द्वारा िप�ाशय म
आकर इकट्ठा होता रहता है। िप�ाशय में ध-धीरे िप� से जल का अवशोषण होता है और वह सांन्द्र होता रह
है। जब हम भोजन ग्रहण करते, तब आमाशय से कोलीिसस्टोकाइिनका �रसाव होता है, जो िप�ाशय को संदेश
देता है िक वह अपना संकुचन कर िप� को ग्रहण( Duodenum) में पह�ँचाये। िप� का मुख्य कायर् भोजन
िवद्यमान वसा के पाचन में मदद करना है
िप�ाशय को र� क� आपूितर् िप�ाशय धमनी द्वारा होती है जो प्रायः दािहनी-धमनी से िनकलती है, लेिकन
यह बायीं यकृ, मुख्य यकृ, जठरग्रहणी या उध्वर् आंत्रयोजनीय (left hepatic, common hepatic,
gastroduodenal, or superior mesenteric arteries) से भी िनकल सकती है। िप�ाशय-धमनी िप�ाशय-
वािहनी के पीछे और ऊपर िस्थत रहती है।
4. िप�ाशय-वािहनी (Cystic Duct) मुख्य यकृ-वािहनी (Common Hepatic Duct) में िवलय होकर मुख्
िप�वािहनी (Common Bile Duct) बनाती है। िप�ाशय उच्छेदन करते समय यह सबसे महत्वपूणर् संरचना
और इसक� सही पहचान करना बह�त ज�री कड़ी है। इसक� लंबाई 1-5 से.मी. और व्यास3-7 िम.िम. होता है,
लेिकन कभी-कभी यह बह�त छोटी (2 से.मी. से भी कम) भी हो सकती है। ऐसी िस्थित में शल्य करना और िक
लगाना बड़ा किठन होता है।
मुख्य िप�वािहनी5-9 से.मी. लंबी होती है। यह लघु-वपा (Lesser Omentum) के मु� िकनारे में प्रितहारी िश
(Portal vein ) के आगे और मुख्य यकृत धमनी (common hepatic artery) के दािहनी तरफ िस्थत होती है।
यह ग्रहणी के प्रथम खण्ड के पीछे और िनम्न मह (Inferior Vena Cava) के आगे अग्न्याश(Pancreas)
के मुण्ड के पीछे बनी िझर� में नीचे आती है और ग्र (Duodenum) के दूसरे खण्ड के बायीं तरफ होतीह�
अग्न्याशय नली में िवलय होकर ग्रहणी में खु, इस िछद्र को एम्प्युला ऑफ वेटर कहते
इस शल्यिक्रया में केलोट ित (Triangle of Calot) एक महत्वपूणर् संरचना है और िवच्छे (Dissection)
का मुख्य कैंन्द्र है। इस ित्रकोण का बायां िकनारा म ुख्य यकृत ि (Comman Hepatic Duct), ऊपर का
िकनारा िप�ाशय धमनी (Cystic Artery) और नीचे का िकनारा िप�ाशय वािहनी (Cystic Duct) से बनता है।
िप�ाशय का लिसकापवर् (Lymph node) भी इसी ित्रकोण में िस्थत होता है। िप�ाशय धमनी इसी ित्रक
दािहनी यकृत धमनी से िनकलती है।
मैं यहाँ लश्-वािहका (Ducts of Luschka) के बारे में बतला देना चाहता ह�ँ जो कुछ लोगों में िवद्यमान हो
है। यह भी एक िप�वािहका है जो यकृत से िनकल कर सीधी िप�ाशय में जाती है। यिद शल्य करते समय य
िदखाई दे तो इसे भी िक्लप लगा कर काटा जाता है।
लूट िलया माली ने उपवन, लुटी न लेिकन गंध फूल क�,
तूफ़ानों तक न छेड़ा पर, िखड़क� बन्द न ह�ई धूल क�,
नफ़रत करने वालो! सब पर धूल उड़ाने वालो!
कुछ मुखड़ों क� नाराज़ी से दपर् नही मरा करता है!
नीरज
कारण
आइये हम इस रोग के प्रमुख कारणों को भी जान, जो िनम्न हैं
संक्रमण औरकैं- कई बार िप�पथरी का उद्गम जीवाणुओं से होता है िजनके ऊपर केिल्शयम और अन्य त
क� परतें जमती जाती हैं और कालान्तर में पथ�रयां बन जाती हैं। शोधकतार् िप�पथरी को इन जीिवत य
जीवाणुओंक� कब्र पर बनी मजार के पत्थर क� सं�ा देते हैं। ऐसी पथ�रयों के कारण कई अन्य िवकार
िप�ाशयशोथ, अग्न्याशयश, पीिलया और िप�वािहनीशोथ ( Cholecystitis, Pacreatitis, Jaundice &
5. Choledococystitis) भी हो सकते हैं। यिद िप�पथरी का समय रहते शल-उपचार नहीं िकया जाये तो ये
िप�ाशय के घातक कैंसर का कारण भी बन सकती है।
िप�प्रवाह में अवर– िप� के प्रवाह में िकसी कारण �कावट या ठहराव आ जाने से िप� के ठोस तत्व अव
(Precipitate) हो जाते हैं और पथरी का कारक बनते हैं। िनम्न िस्थितयों में भी पथरी बनने क� संभावना
रहती है।
• वे र�-िवकार िजनमें हीमोग्लोिबन का िवघटन होता है और फलस्व�प पीिलया हो जाता है जैसे मले�र
• लंबे समय से बीमार चल रहे और िबस्तर पकड़ चुके व्यि� िजन्हें मुँह द्वारा आहार भी नहीं िदया जा रह
• िजनका कोई अंग-प्रत्यारोपण ह�आ ह
• स्थूलता
• जो लोग िनयिमत नाश्ता नहीं करते या ज्यादा वृत और उपवास करते है
िजगर में ददर् मुहब्बत का ही हो ये ज�री तो नही
तबीब-ए-बतन को िदखलाओ कहीं ये ददर् पथरी का तो नह
िप�ाशय-उच्छेदन क संकेत (Indications of Lap Chole)
प्रारंिभक दौर में उदरदश� िप�-उच्छेदन दुबले पतले और युवा रोिगयों में ही क� जाती थी। लेिकन आज स
बदल गया है, तकनीक में बह�त सुधार ह�आ है और उदरदश� िप�ाश-उच्छेदन के संकेतों का दायरा बढ़ा है। आ
कु शल और अनुभवी शल्-िचिकत्सक धड़ल्ले से स्थूल और वृद्ध रोिगयों के -उच्छेदन भी उदरदश�(Lap
Chole) तकनीक से कर रहे हैं। इसके वतर्मान संकेत नीचे स्प� कर रहा ह�
ल�णहीन िप�पथरी रोग
हर ल�णहीन रोगी को शल्यिक्रया क� आवश्कता नहीं होती है लेिकन िनम्न प�रिस्थितयों में ल�णहीन रो
शल्-िचिकत्सा होनी चािहये।
• तीन से.मी. से बड़ी पथ�रयां
• िचरकारी िप�वािहका अवरोध (Chronic obliterated Cystic duct)
• िनिष्क्रय िप�ा(Nonfunctioning Gallbladder))
• अिस्थकृत िप�ाशय(Calcified or Porcelain Gallbladder)
• 10 से.मी. से बड़ा या तेजी से बढ़ता पुवँगक( Polyp)
• िप�ाशय आघात (Gallbladder Trauma)
• अग्न्याशय और िप�वािहका के संगम क� िवकृितय (Anomalous junction of the Pancreatic and
Biliary ducts)
6. िप�शूल (Biliary colic) - हमारे देश में िप�पथरी रोग क� व्यापकता लगभ10 प्रितशत तक आंक� गई है
लेिकन अिधकांश रोिगयों में इस रोग के कोई ल�ण नहीं िमलते हैं। इसका सबसे प्रमुख ल�ण उध्वर् उदर मे
तरफ तेज ददर् होना ह, िजसे िप�शूल कहते हैं। यह ददर् सामान्यतः भारी और वसामय भोजन के बाद होता, साथ
में डका, िमचली, अपच व बदहजमी जैसे ल�ण हो सकते हैं और ददर् दािहने कंधे तक भी फैल सकता है। सामान
उपचार से ददर् ठीक हो जाता ह, लेिकन यह ददर् दोबारा कभी भी हो सकता है।
तीव्र िप�ाशयशो(Acute cholecystitis)
यिद तीव्र िप�ाशयशोथ का िनदान ल�ण होने क72 घन्टे के भीतर हो जाये तो िप�ाशय उच्छेदन कर देन
चािहये। लेिकन 72 घन्टे गुजर जाने के बाद िप�ाशय और उसके िनकट क� संरचनाओं में आये प्रदाहक
प�रवतर्नो(Inflammatory changes) के कारण दूरदश� से शल्य करना किठन हो जाता है। एसी िस्थित म4-6
स�ाह बाद शल्य करना ही श्रेयस्कर ह
जिटल िप�ाशय िवकार (Complex gallbladder disease)
िप�पथरीजिनत अग्न्याशयशो(Gallstone pancreatitis)
यिद िप�पथरी जिनत अग्न्याशयशोथ का रोगी िचिकत्सालय
भरती होता है तो उसके ल�ण ठीक होने पर िप�ाशय उच्छेदन
िकया जा सकता है। लेिकन शल्य से पहले यह मालूम करना
ज�री होता है िक उसक� मुख्य िप�वािहका में कोई पथरी त
नहीं फंसी है इसके िलए ए.आर.सी.पी., ई.आर.सी.पी.,
एन्डोस्कोिपक अल्ट्राडाउन्ड या शल्य के दौरान कॉलेंि
क� जाती है।
मुख्य िप�वािहका में पथ
के िलए हमारे पास िनम्न िवकल्प होतेहै
• शल्यपूवर्.आर.सी.पी. और संकोिचनी-छेदन (Preoperative ERCP with sphincterotomy)
• शल्योपरांत .आर.सी.पी. और संकोिचनी-छेदन (Postoperative ERCP with sphincterotomy)
• दूरदश� शल्यिक्रया के दौरान कॉलेंिजयोग्राम और मुख्य िप�वािहका (Laparoscopic intra-
operative cholangiogram with laparoscopic common bile duct (CBD) exploration)
• खुली शल्यिक्रया और-निलका डालना(Open CBD exploration and T-tube placement)
यिद रोगी को िप�ाशय और मुख्य िप�वािहका दोनों में पथरी हो तो एक ही दूरदश� -सत्र में दोनों
िनकालना सस्ता और सफल तरीका ह, यिद अनुभवी शल्यिचिकत्सक द्वारा िकया जा
अन्य- िप�ाशय-उच्छेदन के अन्य संकेत, पथरी-रिहत िप�ाशयशोथ (Acalculous cholecystitis),
िप�ाशय-ग्रहणी भगं (Open CBD exploration and T-tube placement), अंग प्रत्यार (Organ
Transplant) से पहले यिद रोगी को िप�पथरी हो आिद।
7. न िदल में कोई ग़म रहे न मेरी आँख नम रहे हर एक ददर् को िमटा शराब ला शराब
बह�त हसीन रात है तेरा हसीन साथ है नशे में कुछ नशा िमला शराब ला शराब द
िप�ाशय-उच्छेदन क� वजर्नाए(Contraindications of Lap Chole)
स्प (Absolute)
यिद रोगी सामान्य िन�ेतन के िलए अयोग्य हो या उसे कोई अिनयंित्रत र�स्राव िव, तो िप�ाशय-उच्छेदन
नहीं िकया जाता है। �ासक� रोग या �द्पात (Obstructive Pulmonary disease or Congestive Heart
Failure) के रोिगयों के िलए CO2 वायुउदरावरण (Carbon dioxide Pneumoperitoneum) असहनीय होता
है, इसिलए उनक� खुली शल्यिक्रया करना ही उिचत रहता है। िप�ाशय कैंसर के रोगी क� भी शल्यिक्रया
जानी चािहये। यिद उदरदश� तकनीक से शल्यिक्रया करने के दौरान लगे िक रोगी को कैंसर है तो उदर खोल द
चािहये। ऐसी जिटल प�रिस्थित में उदरछेद (Laparotomy) कर देना ही उिचत रहता है और लिसका-ग्रंिथय
(Lymph nodes) के नमूने भी सरलता से ले िलये जा सकते हैं।
उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन के प्रारंिभक दौर के स्प� िनषेध जैसे अितस्थ (Obesity), गभार्वस्थ
(Pregnancy), िप�ाशय का िवगलन (Gangrenous Gallbladder), िप�ाशय क� अतःपूयता (Empyema of
the Gallbladder), िप�-आंत्र भगंद( Bilio-enteric fistulae), पूवर् में उध्वर् उदर क� शल्य( previous
upper abdominal procedures), यकृत िसरोिसस, र�-स्राव िवका( Coagulopathy) आिद आज िनषेध
नहीं रहे हैं। कुशल और अनुभवी श-िचिकत्सक िवशेष सतकर्ता रखतेह�ए शल्य कर देते है
8. िप�ाशय-उच्छेदन क जिटलताएं
आज उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन अत्यंत िनरापद शल्यिक्रया है। इसक� मृत0.22 से 0.4 % के बीच है और
5% से ज्यादा रोिगयों में कोई जिटलता नहीं होती हैं। शल्यिक्रया क� सामान्यजिटलताओं के अलावा
प्रमुख जिटलतायें िनम्न िलिखत
ट्रोकार और वेरीज सुई से चोट
उदर में हसन ट्रोकार या वेरीज सुई घुस, आसंजन ( Adhesions) तोड़ते या िवच्छेदन करते समय आंतों क
चोट पह�ँच सकती है या सुराख हो सकता है। यिद आंत में सुराख हो जाये तो उसे परत दर परत िसल िदया जाता
है।
र�स्र (Hemorrhage)
उदर में पहला िछ (Port) बनाते समय िकसी बड़ी र�वािहका में सुराख हो सकता है। र�स्राव के का
उदरावरण के पीछे र�जमाव (Retroperitoneal Hematoma) तथा िनम्नर�चाप (Hypotension) भी हो
सकता है। यह गंभीर प्राणलेवा आपातकालीन िस्थित होती है। ऐसी िस्थित में र�स्राव रोकने के िलए तुर
खोल देना चािहये।
केलोट ित्रकोण �ेत्र में र�स्राव होने पर उसे रोकने के िलए उदरदश� द्व-दहन या िक्लप cauterizing or
clipping) लगाने क� कौिशश भूल कर भी नहीं क� जाती ह, क्योंिक इसमें र�स्राव के बढ़ने और अन्य वाि
को �ित पह�ँचने का खतरा रहता है। िसफर ् और िसफर् यिद र� के �रसाव क� जगह स्प� तौर पर िचिन्हत हो ज
और यकृत-धमनी तथा मुख्य िप�वािहका क� िस्थित स्प� िदखाई दे रही हो तभी िक्लप या ि-दहन द्वार
र�स्राव को रोकने के बारे में सोचना चािहय
िप�ाशय के र�स्राव को सामान्यतः िव-दहन से रोका जाता है, लेिकन यिद िफर भी र�स्राव बंद न हो त
र�स्तंभक(Haemostatic)दवा जैसे अरगोन प्लाज्मा कोएगुलेटर का प्रयोग िकया जा सकता
िप�ाशय उच्छेदनोपरांत संल�ण(Postcholecystectomy syndrome)
िप�ाशय-उच्छेदन के बाद बह�त से रोगी(40 % तक) अपच, उदरवायु, पेट में फुलाव और उध्वर् उदर में
(dyspepsia, flatulence, bloating, right upper quadrant pain, and Epigastric pain) क� िशकायत
करते हैं। इस िवकार का कारण भारी तथा वसामय आहा, मुख्य िप�वािहका में पथरी फंस जा, िप�वािहका में
संक्रमण और ओडाइ संकोिचनी क� िनिष्क्(sphincter of Oddi dysfunction) हैं।
मुख्य िप� वािहका आघात या आकषर(Comman Bile Duct Injury or Spasm)
मुख्य िप� वािहका के �ितग्रस्त या जख्मी हो जाने से उदरगुहा में िप� का �रसाव या िप�पथ में पूणर् य
�कावट हो सकती है। यह सबसे खतरनाक जिटलता है। इसका प्रस्तुितकरण कई तरह से हो सकता ह
• शल्य करते समय ही मुख्य िप� वािहका क� �ित या आघात को िचिन्हत कर िलया जाये। इस सूरत में
वािहका के इन जख्मों को उसमें-ट्यूब डाल कर तुरन्त दु�स्त कर िदया जाता है
• शल्यिक्रया 3-7 िदन बाद रोगी ज्व, पेट ददर, िमतली, पीिलया, जलोदर (ascites), �ुधालोप (anorexia)
या घाती आन्त्रावर(Ileus) क� तकलीफ बतलाये।
• िप�वािहका में आकषर (spasm) होने पर रोगी कई महीनों बाद पेट ददर् और पीिलया क� िशकायत लेक
प्रस्तुत होता ह
9. इस िवकार का उपचार आघात के समय और गंभीरता पर िनभर्र करता है। मुख्य िप� वािहका क� छो-मोटी �ित
का उपचार सीटी स्केन क� मदद से िप� को िनकाल कर िकया जाता है और .आर.सी.पी. द्वारा िप�वािहका क
ओडाइ संकोिचनी-छेदन (Preoperative ERCP with sphincterotomy) कर निलका डाल दी जाती है। लेिकन
यिद जख्म गंभीर हों तो शल्य द्वारा िप�वािहका का पुनिनर (Surgical Biliary reconstruction ) िकया
जाता है।
अन्य जिटलताएं
उदरदश� िप�ाशय-उच्छेदन के बाद कुछ अन्य जिटलताओं जैसे घावों में संक्रमण या, पथ�रयों का पेट मे
िबखर जाना या गहन िशरा घना�ता (Deep Vein Thrombosis) क� संभावना भी रहती है।
दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।
रोम-रोम में िखले चमेल साँस-साँस में महके बेल,
पोर-पोर से झरे मालती अँग-अँग जुड़े जुही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर, डगर-डगर छाया कदम्ब क
तुम जब से िमल गए उमर का खँडहर राजभवन लगता है।
नीरज
शल्यिक्रया के पूवर् क� औपचा�रकत(Pre-Operative Clinical Checkup & Investigations)
शल्यपूवर् िचिकत्सक�य परी(Clinical Checkup)
रोगी क� शल्यिक्रया करने के पहले िनम्न पूछताछ और पर
कर िलये जाते हैं।
• इितहास - रोगी से वतर्मान ल�, िचिकत्सक�य इितहास
(र�चाप, मधुमेह, �ासदमा, सी.ओ.पी.डी., �दयरोग,
थायरॉयड िवकार, औषिध प्रत्यूजर( Drug Allergy),
मिस्तष-घात (Stroke) आिद, व्यि�गत इितहास(धूम्रप,
तम्बाखू या गुटक, मिदरापान आिद) और पा�रवा�रक
इितहास के बारे में िवस्तृतपूछताछ क� जाती है
• संपूणर् शारी�रक परी�ण - नाड़ी, र�चाप, �सनगित,
तापमान और एसपीओ2 क� जांच क� जाती है। �दय, फु फ्फु (Lungs), यकृत, प्लीह (Spleen) इत्यािद
महत्वपूणर् अवयवों का िवस्तृत परी�ण िकया जाता
• प्रयोगशाला परी� - शल्यिक्रया पूवर् रोगी के िविभन्न परी�ण जैसे हीमोग, टी.एल.सी., डी.एल.सी.,
प्लेटलेट काउं, बी.टी., सी.टी., र� शुगर, यू�रया, िक्रयेिटि, िबिल�िबन, एस.जी.पी.टी, ऐल्केलाइन
फॉस्फेटे, ऑस्ट्रेिलया एिन, एच.आई.वी., संपूणर् मूत्र पर, छाती का एक्सर, ई.सी.जी. और
अल्ट्रासाउंड करवाये जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर प�रिस्थित अनुसार अन्य परी�ण जैसे सी, 2 डी
इको, एम.आर.आई., ई.आर.सी.पी. आिद भी करवाई जा सकती हैं।
10. • िविभन्न प्रयोगशाला परी�णों क� िववेचना क� जाती है और उनके अनु�प िनणर्य िलये जाते
• रोगी को 4 िमनट तक चलने को कहा जाता है। िबना िकसी परेशानी के 4 िमनट चल पाने का सीधा मतलब यह
है िक रोगी को कोई गंभीर �दय या फु फ्फुस िवकार नहीं है।
सभी पहलुओंका िव�ेषण करके यह सुिनि�त कर िलया जाता है िक रोगी िकस शल्यिक्रया और िकस प्रका
िन�ेतन के योग्य है। इस शल्यिक्रया के िलए वायुउदरावरण ज�री होत, इसिलए सामान्य िन�ेतन ही श्रेयस
है। लेिकन आजकल दुबले और स्वस्थ युवा रोिगयों में मे�दण्डीय िन (Spinal Anesthesia) भी िदया जाने
लगा है।
सामान्य तैयारी
• रोगी को शल्यिक्, उससे होने वाले लाभ, संभािवत खतरे और जोिखम के बारे में िवस्तार से बतला िदया
जाता है। शल्यिक्, िन�ेतन और अंग उच्छेदन के िलए रोगी या प�रजनों से िलिखत स्वीकृित ली जाती ह
• रोगी को शल्य िक्रया 6 घन्टे पहले मुंह द्वारा -जल बंद कर देते हैं।
• शल्यिक्रया से पहले रोगी को स्नान करने और शरीर को स्वच्छ करने के िनद�श िदये जात
• रोगी के पेट के बाल साफ िकये जाते है, उसे अपने आभूषण उतार कर अपने प�रजनों को देने के िलए कहा
जाता हैं।
• रोगी को शल्यक� में भेजने के पहले उसे िवशेष व� पहनाये जातेहै
मरीज़-ए-इश्क़ का क्या , िजया ना िजया, है एक सांस का झगड़ा, िलया ना िलया ॥
मेरे ही नाम पे आया है जाम महिफ़ल मे, ये और बात के मैने, िपया ना िपया ॥
मुख्य शल्यिक
प्रारंिभक औपचा�रकता
1. रोगी को शल्-शैय्या पर पीठ के बल लेटा कर िस्थर कर िदया जाता ह
और आवश्यकता होने पर बंधनो से भी बांध िदया जाता है। िन�ेतन
औषिधयों तथा द्रव्यों को छोड़ने के िलए कै, पल्-ऑक्सीमीट,
र�चाप यंत्र का कफ और.सी.जी. के तार लगा िदये जाते हैं।
2. सबसे पहले स्तन रेखा (Nipple line) से जांघ (Mid Thigh) तक
और पाष्वर् में अग्र ऊध्वर् श्र (Anterior superior iliac
spine) तक पेट पर जीवाणुरोधक दवा का लेप िकया जाता हैं और
शल्-�ेत्र को छोड़ कर शरीर के शेष िहस्से को जीवाणुहीन कपड़े
ढक कर िक्लप लगा िदये जाते हैं। रोगी का भली भांितभूिमकरण क
िदया जाता है तािक िवद्युत प्र ( Electric Cautery) प्रयोग करन
पर उसे कोई �ित नहीं पह�ँचे।
11. 3. िन�ेतन-िवशेष� सामान्य िन�ेतन देता है और कंठनली (EndoTrachial Tube) डाल देता है। दोनों हाथ
फैला कर आरामदायक िस्थित में बांध िदये जातेहैं
4. खुली और उदरदश� शल्यिक्रया में म
अन्तर यही है िक इस तकनीक में बड़
चीरा न लगा कर छोटे –छोटे चार िछद्
(Ports) बनाये जाते है, िजनमें िवशेष तरह
के ट्रोकार और कैन्युला डाले जाते ह
ट्रोकार िनकाल कर कैन्युला में कैमरा
प्रकाश स्रोत के संग उदर
(Laparocsope with Light Source & Camera) तथा अन्य िवशेष हिथयार अन्दर डाले जातेहैं। अन
के �ष्य रोगी के दो तस्व-पटलों(Monitors) पर स्प� िदखाई देते रहते हैं। इन तस्-पटलों को िनहारते ह�ए
कु शल और अनुभवी िवशेष�ों क� टोली शल्यिक्रया को अंजाम देती
5. दोनों तस्व-पटल रोगी के िसर क� तरफ रखे जाते हैं। मुख्य शल्यकम� रोगी के बाईं तरफ खड़ा होता ह
दूसरा शल्यकम� दािहनी तरफ होता है। तीसरा उदरदश� को पकड़ कर उसे वांिछत िदशा में इंिगत करता है
दीपक तो जलता यहाँ िसफर ् एक ही बार िदल लेिकन वो चीज़ है जले हज़ारों ब
काग़ज़ क� एक नाव पर मैं ह�ँ आज सवा और इसी से है मुझे करना सागर पार
वायुउदरावरण और ट्रोकार डाल
उदरगुहा में काबर-डाईऑक्साइड गैस भर कर फुलाने क� प्रिक्रय वायुउदरावरण कहते हैं। पेट को फुलाने से
आंत, अन्य अवय, वपा (Omentum) इत्यािद के ऊपरCO2 गैस होने से नीचे चले जाते हैं और िचिकत्सक क
शल्यिक्रया करने के िलए पयार्� स्थान िमल जाता है। इसके CO2 गैस
सबसे सुरि�त मानी गई है। यह उ�को में आसानी से अवशोिषत हो जाती है
और अंतःशल्यता (Embolus) बनने का जोिखम भी नहीं रहता है। पेट म
CO2 का दबाव 15 िम मी से कम रखा जाता है।
वायुउदरावरण अथार्त उदर का फुलाने क� दो प्रचिलत िविधयां , वेरीज सुई
या बंद तकनीक और खुली या हसन ट्रोका तकनीक।
वेरीज सुई या बंद तकनीक
उदर में सुई घुसाने के िलए सबसे सुरि�त और आसान स्थान नािभ के ठी
नीचे वाली जगह मानी जाती है। यहां पेट क� िभि�यां सबसे पतली होती है और
12. यहां से शल्-�ेत्र अच्छा िदखाई देता है। वेरीज सुई डालने के पहले रोगीशैया के िसर वाले िहस्से को नीचे ि
जाता है। सबसे पहले शल्यकम� नािभ के नीचे उदर क� अ-िभि� को हाथ से पकड़ कर ऊपर खींचता है और
नािभ के ठीक नीचे एक छोटा सा 1 िम.िम. का चीरा लगाता है, िजसमें वेरीज सुई को इस िछद्र में धीरे धीरे श
(Pelvis) क� िदशा में घुसाया जाता है। पूरी सतकर्ता रखी जाती है िक सुई उदर के अवयवों और वािहकाओं
�ित नहीं पह�ँचाये। यह देखने के िलए एक सी�रंज मे3-4 एम.एल. नमक-जल (Saline) भर कर उसे वेरीज सुई में
लगा कर उदर में छोड़ते हैं और पुनः खींचते हैं। यिद सी�रंज में हवा आये तो इसका मतलब हैं िक सुई सही
पर है अथार्त उदरगुहा (Abdominal Cavity) में ही है। लेिकन यिद सी�रंज में , द्रव या -द्रव्य, तो
इसका स्प� तात्पयर् है िक सुई गलत ज(जैसे िकसी र� वािहका, आंत या अन्य संरचन) घुस गई है और ऐसी
िस्थित में सुई को िनकाल कर सावधानीपूवर्क दोबारा प्रयास करना चािहये। अब सुई के द्वारा उदरगुहा म2
से 3 लीटर के बीच CO2 गैस भर दी जाती है। िफर इस िछद्र क1.2 से.मी. बड़ा करके 11 िम.िम. का पहला
ट्रोकार और कैन्युला इसी िछद्र से घुसाते हैं। -यंत्र को इस िछद्र द्वारा उदरगुहा म-धीरे डालते है, िजसमें
कैमरा और प्रकाश स्रोत जुड़ा रहता हैCO2 स्रोत क� निलका भी जोड़ देतेहै
हसन ट्रोकार िव
वायुउदरावरण क� दूसरी िविध में हसन ट्रोकार औ
कैन्युला का प्रयोग होता है। इसके िलए भी नािभ
ठीक नीचे डेढ़ से.मी. का चीरा लगाया जाता है। िफर
अवत्वचीय वसा को चीर कर संदंिशका से उदर मध्
रेखा को पकड़ कर खींचा जाता है। अब उदर मध्
रेखा में15 नम्बर के नश्तर से1.2 से.मी. का
अनुदैध्य चीरा (Longitudinal incision) लगाया
जाता है और चीरे के दोनों तरफ0 नं. के िविक्रल धाग
से U के आकार का टांका लगाया जाता है। अब दो
संदंिशकाओं (Forceps) से उदरावरण
(Peritoneum) को पकड़ कर छोटा सा छेंद कर देते
हैं और11 िम.ली. के हेसोन ट्रोकार को पेट में घुसा कर -गुहा में काबर-डाईऑक्साइड गैस भर दी जाती हैं
CO2 का अिधकतम दबाव पारे के 15 िम.िम. तक रखा जाता है। पेट में गैस भरने से िचिकत्सक को शल्यिक
करने के िलए पयार्� स्थान िमल जाता है। प्रायः शल्30 िडग्री का उदरद-यंत् (Laparoscope) पसंद
करते हैं क्योंिक इस कोंण से िप�ाशय और अन्य संरचनाएं ज्यादा अच्छी िदखाईदेत
बाक� ट्रोकार डाल
अब हमें उदरगुहा में तीन ट्रोकार और कैन्युला और डालने हैं िजन्हें हम उदरदश� सेदेखते ह�ए ही घुसायेंग
िछद्र करने से पहले शैया का िसर वाला िहस्सा ऊपर उठाया जाता है। इस िछद्र के िलए खड (xiphoid
process ) से तीन अंगुल नीचे 1.2 से.मी. का चीरा लगा कर उदरदश� से प्रत्य� दीदार करते ह11 एम.एम. का
13. ट्रोकार और कैन्युला िप�ाशय क� िदशा में इस तरह घुसाया जाता है िक यह उदरगुहा में दात्राक
(falciform ligament) के ठीक दािहनी तरफ से िनकले। तत्प�ात ट्रोकार िनकाल 11 िम.िम. के खड्गाभ
िछद्(Port) में से 5 िम.िम. क� संदंिशका डाल कर उससे िप�ाशय के आधार को पकड़ कर ऊपर क� ओर
खींचते हैं और दांई तरफ के दोन5 िम.िम. के छ्द्रों के िलए सही स्थान का चुनाव करते
सही स्थान का चुनाव कर बाहर त्वचा पर चीरा लगा कर द5 िम.िम. का ट्रोकार और कैन्युला डालते, िजसमें5
िम.िम क� संदंिशका डाली जाती हैं। चौथा िछद्र करने के पहले -शैया को घुमा कर उदर के दािहने िहस्से को
ऊपर िकया जाता है। प्रायः यह िछद्र उस जगह करते हैं जहां नािभ रेखा -क� रेखा िमलती है। इस िछद्र म
भी 5 िम.िम. का ट्रोकार और कैन्युला डालते हैं। इस िछद्र से िप�ाशय को पकड़ने वाली संद( Grasping
Forceps) डाली जाती है और िनकािसका (Drain) भी इसी से डालते हैं।
दूसरा शल्यकम चौथे िछद द्वा िप�ाशय के बुध् को संदंिशका से पकड़ कर ऊपर यकृत के अग-िकनारे क� तरफ
खींच रखता है। तीसरा शल्यकम� नािभ िछद्र के द्वारा कैमरा और-स्रोत लगे उदरदश� को थामे रहता है औ
मुख्य शल्यकम� के आदेशानुसार घुमाता रहता है। मुख्य शल्यकम� दूसरे और तीसरे िछद्र द्वारा शल्य ि
है।
मुख्य शल्यकम
अब शल्यकम� पूरे उदर का भल-भांित अवलोकन करता है और सुिनि�त करता है िक उदर का कोई अन्य अंग
रोग-ग्रस्त तो नही, कैंस, संक्रमण या �य रोग ने उदर में अपना जाल तो नहीं फैला रखा। कई बार िप�
आंत या वपा से ऊतकों द्वारा िचपका रहता है। शल्यकम� िप�ाशय को इन बंधनों से पृथक करने के िलए मुड़े
या आंकड़े के आकार के िवद्य-प्रदाहक से सावधानीपूवर्क िवच्छेदन करता है। इस प्रारंिभक िवच्छेदन के
शल्यकम� को िहमालय के लुभावने पवर्त और मनोरम घािटयों जैसे भूरे यकृत खंडों और यकृतघाटी के दु
नज़ारों का दीदार होता है। िप� और र� लाती ले जाती वािहकायें वािदयों में बहती धाराओं जैसी लगती हैं।
और घाटी में जमी वसा बफर् जैसी िदखती है। लेिकन इस घाटी में प
िनिष्क, उदास, त्र, व्याकुल और �ग्ण िप�ाशय को देख कर शल्यक
का �दय क�णा और दया से भर उठता है। ऐसा लगता है जैसे िप�ाशय
कह रहा हो िक हे शल्यदेव हे क� िनवारक मेरा उच्छेदन कर मुझे इ
पाषाणों के बोझ और वेदना से मु� करो। िप�ाशय क� िवनती सुन कर वह
िप�ाशय वािहका और िप�ाशय धमनी क� पहचान करता हैं और िवच्छेद
के कायर् को आगे बढ़ाता है।
मुख्य शल्यकम� तीसरे िछद्र में संदं (Grasper) घुसा कर िप�ाशय
क� क�प या हाटर्मेन थैली को पकड़ कर ऊपर क� तरफ खींचे रखता है। इ
िस्थित में िप�ाशय वािह, धमनी और मुख्य िप�वािहका स्प� िद
जाती है। इस िस्थित में िवच्छेदन करने से मुख्य िप�वािहका को
16. अब रोगी को उलटी ट्रेन्डेलेनबगर् िस (Reverse Trendelenburg Position) में ले आता है और उसे बांई
करवट िदला देता है। इसके बाद कुप्पी को पकड़ कर बाहर क� तरफ खीचता ह, िजससे िप�ाशय वािहका और
धमनी क� िस्थित और स्प� हो जाती है। अब वहदूसरे िछद्र से िवच्छेदन औजार घुसा कर और िप�वािहक
पहचान कर िप�ाशय क� कुप्पी के पास उदरावरण को अलग करता है। यिद रोगी को तीव्र संक्रमण होता हैतो
ह�ए ऊतकों को अलग करने पर ही िप�वािहका िदखाई दे पाती है। अब वह सावधानी पूवर्क िवच्छेदन करता ह
िप�वािहका क� तरफ बढ़ता है। शल्य करते समय पूरा ध्यान रखा जाता है िक कोई महत्वपूणर् संरचना जैसे दाि
यकृत-धमनी, मुख्य िप�वािहका या ग्रहणी जख्मी न हों। जैसे ही वह िप�ाशय क� गदर्नतक पह�ं, धमनी को
बचाते ह�ए शल्-उपकरण गदर्न के पीछे घुसाता है और शल्य करतेह�ए उसे सब तरफ से मु� कर लेता है। प्र
िप�ाशय-धमनी िप�ाशय-वािहका के ठीक पीछे और ऊपर क� तरफ होती है। िप�ाशय-वािहका के िवच्छेदन के
बाद वह िप�ाशय-धमनी का शल्य करता है और उसे भी सब तरफ से मु� कर लेता है। क्योंिक दािहनी य-
धमनी िप�ाशय-धमनी के पास से ही गुजरती है इसिलए वह उसको हर हाल में बचाते ह�ए शल्य करता है। यिद को
र� या िप� वािहका यकृत से सीधी िप�ाशय में जा रही हो तो उसे भी िक्लप लगा कर ही काटतेहै
िप�ाशय वािहका (Cystic duct) और र�वािहका (Cystic Artery) का िवच्छेदन(Dissection) होने के बाद
उनमें एक िक्लप िप�ाशय क� तर(दूरस् Distal) और दो िक्लप समीपस्थ िसर (Proximal End) पर लगा
कर कैंची से काट देता है। जहां तक संभव हो िक्लप िप�ाशय के समीप लगाये जातेहैं
र� और िप�वािहका के िवच्छेदन के बाद मुख्य शल्यकम� िप�ाशय के कटे डं (Stump) को पकड़ कर ऊपर
क� तरफ खींचता है और यकृत घाटी(Liver Bed) का अवलोकन करता है िक कोई र�वािहका स्राव तो नहीं
रही है। कई बार सह-िप�ाशय धमनी िवद्यमान होतीहैं िजसे भी सावधानी पूवर्क िक्लप लगा कर काटना पड़ता
इसके बाद वह िप�ाशय को यकृत क� घाटी से पृथक करने हेतु शल्य करता है। िप�ाशय का काफ� िहस्स
उदरावरण से आच्छािदत रहता है। िप�ाशय को चारों तरफ उदरावरण से पृथक करने के िलए िवद-प्रदाहक य
कैंची से शल्य करता है। अब उसे िप�ाशय को यकृत से िचपकेह�ए िहस्से से अलग करना है। इसके िलए
प्रदाहक का प्रयोग करता है। यिद उदरगुहा में ऊतकों के प्रज्वलन से िनकला धुंआ भर जाये और शल्
बनने लगे तो दािहने िछद्र से धुंआं िनकाल सकतेहैं। िप�ाशय को यकृत से पूरी तरह अलग करने से पहले घा
को एक बार पुनः देखता है और यिद कहीं र� या िप� का �रसाव हो रहा हो तो उसे बंद करता है। इसके बाद ही
वह िप�ाशय को पूरी तरह अलग करता है।
िप�ाशय के आकार और िस्थित के आधार पर वह िनणर्य लेता है िक िप�ाशय को बाहर िनकालने के िलए टोक
(Basket) का प्रयोग करना है या नहीं। िप�ाशय को प्रायः दूसरे िछद्र से िनकाला जाता है। लेिकन -
िवशेष� नािभ िछद्(Umbilicus Port) से िनकालना पसन्द करते हैं। इसे िनकालने के िलए एक बड़ी संदंिशका स
इसके डण्ठल को पकड़ कर ट्रोकार के अन्दर तक खींचते हैं और िफर ट्रोकार समेत आिहस्ता से बा
लेते हैं। यिद िप�ाशय बड़ा या फूला ह�आ हो या पथ�रयां बह�त बड़ी हो तो िछद्र बड़ा भी करना पड़ता है। -
कभी िप�ाशय को काट कर भी बड़ी पथ�रयां िनकाली जाती हैं। िप�ाशय िनकालने के बाद िचिकत्सक ट्रोकार
पुनः उदर में डालता है और उदरगुहा को शुद्ध -जल से अच्छी तरह नहलाता है और गंदे नम-जल को चूषण
(Suction) द्वारा िनकाल लेता है। इसके बाद वह अिन्तम बार पुनः यकृत के आ, िक्लप और संपूणर् उदरगुहा का
17. अवलोकन करता है। यिद उदरगुहा में कुछ पथ�रयां िबखर गई हों तो उन्हे भी संदंिशका से पकड़ कर िनकाल ले
है। अन्त मे
सारे ट्रोकार उदरदश� से देखतेह�ए िनकलता है औCO2 गैस िनकाल कर चारों िछद्रों में सफाई -एक टांका
लगा देता है। इस तरह शल्य संपन्न होता है
आज क� रात बड़ी शोख बड़ी नटखट है आज तो तेरे िबना न�द नह� आयेगी
आज तो तेरे ही आने का यहाँ मौसम है आज तिबयत न ख़याल� से बहल पायेगी।
यह लगभग 1999 क� बात है जब भारत में उदरदश� शल्यिक्रया का प्रचलन बढ़ रहा था। मेरी भी इसमें बह
थी और मैं इस तकनीक को सीखना चाहता था। मैंने िदल्ली के एक िवख्यात संस्थान में रह कर िविधवत उ
शल्यिक्रया सीखी। मैं-िवदेश में आयोिजत उदरदश� शल्यिक्रया के सम्मेलनों में जाने का कोई मौका नही
था। शु�-शु� में कहीं पे िनगाहें कहीं पे िनशाना क� तजर् पर उदर को मॉनीटर में देखना और शल्य पेट म
बड़ा किठन लगता था। पर धीरे-धीरे मैं पारंगत होता गया।12000 खुली शल्-िक्रयाओं का अनुभव मेरे बह�त का
आया। आज मैं उदर के अिधकांश शल्य उदरदश� द्वारा ही करता ह�
डॉ. बी.एल.गोचर, M.S.