हृदय रोग और अलसी
अलसी तीन तरह से हमें हार्ट अटेक और स्ट्रोक से बचाती है। 1- कॉलेस्टेरोल को कम करती है, 2- हृदय की रक्त वाहिकाओं (कोरोनरी आर्टरीज) को स्वस्थ और सुचारु रखती है और 3- इन्फ्लेमेशन या प्रदाह को काबू में रखती है। इस कार्य में अलसी के तीनों महत्वपूर्ण तत्व अल्फा-लिनेलेनिक एसिड (ALA), फाइबर और लिगनेन (SDG) कंधे से कंधा मिला कर सहयोग करते हैं। अलसी के बीजों से हमें ये तीनों तत्व मिल जाते हैं। हालांकि इसके तेल में ALA तो प्रचुर मात्रा में होता है, लेकिन फाइबर और लिगनेन नहीं होते हैं।
हार्ट अटेक व स्ट्रोक समेत रक्त वाहिकाओं और परिवहन तंत्र के समस्त विकार हृदयरोग (CVD) की श्रेणी में आते हैं। हृदय का सबसे बड़ा दुष्मन ऐथेरोस्क्लिरोसिस (धमनियों का कड़ा और संकीर्ण हो जाना) है, जो बचपन में ही धमनियों की आंतरिक सतह (Endothelium) पर अपने पैर जमा लेता है और धीरे-धीरे आपको हार्ट अटेक से मारने की तैयारी शुरू कर देता है। आरंभ में मुक्त-मूलक क्षति (Free Radicals) के कारण एंडोथीलियम क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। धमनियां प्रदाह (Chronic Inflammation) की धीमी आग में सुलगने लगती हैं और उनकी एंडोथीलियम में कॉलेस्टेरोल व फैट जमा होने लगता है। फिर प्लेटलेट्स का जमावड़ा शुरू होता है और प्लॉक बनने लगते हैं। ये प्लॉक कभी भी टूट जाते हैं और रक्त प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं और हार्ट अटेक या स्ट्रोक के कारक बनते हैं। आहार और जीवन शैली से संबंधित कुछ पहलू जैसे धूम्रपान, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर, हाई कॉलेस्टेरोल और वनस्पति व रिफाइंड तेल का सेवन इस जलती आग में घी का काम करते हैं और हृदयरोग के जोखिम घटक माने गये हैं।
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अ
�दय रोग और अलसी
लसी तीन तरह से हमें हाट र् अटेक और स्ट्रो
बचाती है। 1- कॉलेस्टेरोल को कम करती ह, 2�दय क� र� वािहकाओं (कोरोनरी आटर्री) को
स्वस्थ औरसुचा� रखती है औ3- इन्फ्लेमेश
या प्रदाह को काबू में रखती है। इस कायर् में अलसी के
महत्वपूणर् तत्व अ-िलनेलेिनक एिसड ( ALA), फाइबर
और िलगनेन ( SDG) कं धे से कं धा िमला कर सहयोग करते हैं। अलसी के बीजों से हमें ये तीनों तत्व िमल जाते
हालांिक इसके तेल मेंALA तो प्रचुर मात्रा में हो, लेिकन फाइबर और िलगनेन नहीं होते हैं
हाटर् अटेक व स्ट्रोक समेत र� वािहकाओं और प�रवहन तंत्र के समस्त िवकार ( CVD) क� श्रेणी में
हैं। �दय का सबसे बड़ा दुष्मन ऐथेरोिस्क्लरो(धमिनयों का कड़ा और संक�णर् हो जा) है, जो बचपन में ही
धमिनयों क� आंत�रक सत (Endothelium) पर अपने पैर जमा लेता है और धीरे-धीरे आपको हाटर् अटेक से
मारने क� तैयारी शु� कर देता है। आरंभ में मु-मूलक �ित
(Free Radicals) के कारण एंडोथीिलयम �ितग्रस्त हो
लगती हैं। धमिनयां प्रद( Chronic Inflammation) क�
धीमी आग में सुलगने लगती हैं और उनक� एंडोथीिलयम म
कॉलेस्टेरोल व फैट जमा होने लगता है। िफर प्लेटले ट्स क
जमावड़ा शु� होता है और प्लॉक बनने लगते हैं। ये प्ल
कभी भी टूट जाते हैं और र� प्रवाह को अव�द्ध कर देत
और हाटर् अटेक या स्ट्रोक के कारक बनते हैं। आहा
जीवन शैली से संबंिधत कुछ पहलू जैसे धूम्रप,
डायिबटीज, हाई ब्लडप्र, हाई कॉलेस्टेरोल और वनस्पि
व �रफाइंड तेल का सेवन इस जलती आग में घी का काम
करते हैं और �दयरोग के जोिखम घटक माने गये हैं।
ओमेगा-3 फट्स
ै
�दय रोगों से बचाव हेतु जीवन और आहारशैली में बदलाव का महत्व सव�प�र माना गया है। अलसी �दय औरप�रवहन तंत्र के िलए अत्यंत िहतकारी मानी गई है िजसमें ओ-3
का मिु खया अल्फ-िलनोिलक अम्ल
(ए.एल.ए.) प्रचुर मात्रा में होता .एल.ए.
अपने चयापचय द्वारा प्रदाहरोधी संदेशवाहक अणुओ जैसे
प्रोस्टाग्ल-3, थ्रोम्बेक्स-3 और ल्यूकोट्राइन्-5 के िनमार्ण में प्रमुख भूिमका िनभात , ये प्रोस्टाग्ले
अणु कोिशकाओं के प्रदाह या ज्वलन को शांत करते ह इस तरह ए.एल.ए. र�वािहकाओं को प्रदाह से होने वाल
नुकसान से बचाते हैं। अनेक प्रयोगों से अनुसंधानकतार् इस नतीजे प पह�ँचे हैं िक आहार में अलसी लेने से श
र
ए.एल.ए. का स्तर बढ़ता ह, भले ही उसे पका कर (रोटी या ब्रेके �प मे) खाया जाये। अलसी का सेवन करने से
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शरीर में आइकोसापेंटानॉइक एिस( EPA) और डोकोसाहेग्जानॉइक एिसड( DHA) का स्तर बढ़ता है।
ये EPA और DHA भी प्रदाह को कम करते हैं। हारवडर् िव�िवद्या76 ,000 ि�यों पर ह�ई शोध में पाया गय
िक ए.एल.ए. (अलसी) का सेवन करने वाली ि�यों में �दयाघा( Heart Attack) का आघटन 50 % से अिधक
कम ह�आ। इसी शोध से एक बात यह भी सामने आई है िक ए.एल.ए. का सेवन करने से �दयाघात के बाद दूसरे दौरे
के आघटन में भी नाटक�य कमी होती है। िविदत रहे िक अब यह भी सािबत हो चुका है िक �दयरोग से बचाने मे
अल्फ-िलनोिलक अम्ल(ए.एल.ए.) भी उतना ही प्रभावशाली है िजतन EPA और DHA माने जाते रहे हैं। साथ
ही ओमेगा-3 हमें प्रसन्न रखत, तनाव और िचंता दर करता है। िविदत रहे िक तनाव और िचंता भी �दय रोग के
ू
अहम कारक हैं।
ऐथेरोिस्क्लरोिसस और सेल ए ड्हीजन मोलीक्य
ऐथेरोिस्क्लरोिसस के सिक्रय
कारक
कायर
सी-�रयेिक्टव प्रोट (CRP)
ये प्रदाह क� िस्थित में यकृत द्वारा िनिमर्त ह
और र� प्रवाह में छोड़ िदये जाते हैं। इस
CRP का बढ़ना शरीर में प्रदाह या संक्रम
उपिस्थित को दशार्ता है
ये इम्यून सेल्स द्वारा िनिमर्त होते हैं। ये प्र
िक्रयाओं का प्रारंभ करते हैं और उन्हें बढ़ा
साइटोकाइन्स
ट् यूमर नेक्रोिसस फेक α (TNF α),
इंटरल्यूिक-1β (IL-1β),
इंटरल्यूिक-6 (IL-6)
सेल एड् हीजन मोिलक्यूल्
ई-सेलेिक्ट
वेस्कुलर सेल एड्हीजन मोलीक्यूल्स ट-1 (VCAM-1)
इंटरसेल्युलर एड्हीजन मोलीक्यूल्स ट-1 (ICAM-1)
साइटोकाइंन्स से आदेश िमलने पर ये सिक्
होकर ल्यूकोसाइट्स को धमिनयों क� आंत�र
सतह (the endothelium) पर िचपकाते हैं और
हाटर् अटेक व स्ट्रोक का जोिखम बढ़ाते
जैसा िक हमने ऊपर देखा िक ऐथेरोिस्क्लरािसस क�शु�आत प्रायः बचपन में ही हो जा, और धमिनयों मे
चब� जमा होना शु� हो जाती है। इस अवस्था में सबसे पहले र� धमनी क� आंत�रक सत( endothelium) पर
�ेत र� कण ( leukocytes) िचपकते हैं। दरअसल प्रदाह के कारण कुछ-इन्फ्लेमेट्री तत्व जै-�रयेिक्टव
प्रोटी( CRP) और साइटोकाइन्स जैसे ट्यूमर नेक्रोिसस फेक α (TNF α), इंटरल्यूिक-1 β (IL-1β), और
इंटरल्यूिक-6 (IL-6) सिक्रय होते हैं और कुछ खास तरह के तत्वों को आदेश देते हैं िक वे धमनी क� आ
सतह पर ल्युकोसाइट्स को िचपकाना शु� करें। इन तत्वों को सेल एड्हीजन मोलीक्यूल्स कहते हैं। ये गौंद
काम करते हैं। इस तरह ये सेल एड्हीजन मोलीक्यूल्स धमनी में चब� जमा होने और प्लॉक बनने में सहयोग
हैं।
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र� में ये घुलनशील अवस्था में भी िवद्यमान रहते हैं। कई प्रदाहकारी िवकारों से ग्रिसत रोिगयों क
एड् हीजन मोलीक्यूल्स का स्तर बह�त ज्यादा पाया जाता है। जैसे हाटर् अटेक और स्टेबल व अनस्टेबल एंजा
रोिगयों में VCAM-1 और ICAM-1 (हालांिक ई-सेलेिक्टन सामान्य ) का स्तर बह�त बढ़ा ह�आ पाया गय,
जबिक सामान्य लोगों में इन सेल एड्हीजन मोलीक्यूल्स क� मात्रा काफ� कम पाई गई। �मेटॉयड आथ्रा
रोिगयों में भ VCAM-1 और ICAM-1 क� मात्रा बह�त अिधक पाई गई। इससे यह िसद्ध हो जाता है िक ये
एड् हीजन मोलीक्यूल्स प्रदाह और ऐथेरोिस्क्लरोिसस के िक्लिनकल बायोमाकर्सर् माने जा
कनाडा में ह�ई एक शोध मेंपु�ष और ि�यों (िजनका
कॉलेस्टेराल ज्यादा ) क्रमवार सामान्य अमे�र
आहार, अलसी के तेल और अखरोट (अल्फिलनोलेिनक एिसड) य� आहार और िलनोिलक एिसड
ु
(सोयाबीन तेल) य� आहार िदया गया। इस शोध में
ु
देखा गया िक अलसी के तेल और अखरोट य� आहार
ु
लेने वाले लोगों में-सेलेिक्ट, VCAM-1 और ICAM1 का स्तर आ�यर्जनक �प से कम ह�आ और �दयरो
का जोिखम भी कम ह�आ।
इस तरह के कई प्रयोग ह�ए और सभी से यही संकेत िमल
िक अलसी के सेवन से सेल एड् हीजन मोलीक्यूल्स का स्तर कम होता है। इनके बढ़ने से हाटर् अटेक और स्ट्
जोिखम बढ़ता है और अलसी हमें हाट र् अटेक से बचाती है और ऐथेरोिस्क्लरोिसस में प्रदाह को शांत कर
िलगनेन
अलसी के िलगनेन , सीको-आइसोले�रिसरेजीनॉल आदशर् एंटीऑक्सीडेंट माने गये हैं और इन िदनों पूरा िव
पर अनसंधान करने में जुटा ह�आ है। अलसी कुछ एंटीऑक्सीडेंट खिनज तत्व सेले, मेग्नीिशय, मेंगनी,
ु
िजंक और िलगनेन समेत कई पॉलीफे नोल्स का बड़ा �ोत है। ये सब तत् र�वािहकाओं क� म�-मूलक �ित
ु
(Free Radical Damage) से सर�ा प्रदान करते हैं। र20 से 50 ग्राम अलसी का सेवन करने से र� में ु
मूलक जैसे िलिपड परऑक्सीडेशन और सिक्रय ऑक्सीजन स्पीस Reactive Oxygen Species (ROS)
में कमी होने लगती है
िलगनेन प्रदाहरोधी और उपचारक है। शोधकतार्ओं केअनुसार िलगनेन र� में कॉलेस्टेरोल का स्तर कम क,
िलगनेन एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल को ऑक्सीडाइज होने में व्यवधान पैदा करत, र�-वािहकाओं में जमा होने
(प्लॉक बनन) से रोकते हैं और इस तरह कोरोनरी आटर्री रोग और एथेरोिस्क्लरोिसस का जोिखम कम करते
एक अध्ययन में खरगोशों 500 िमिल ग्रा SDG िलगनेन िदया गया और देखा गया उनका टोटल कॉलेस्टेरोल
20%, एल.डी.एल कॉलेस्टेरोल14% कम ह�आ और एच.डी.एल. कॉलेस्टेरोल30% बढ़ा।
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हमारी र�-वािहकाओं को प्रदाह से होने वालेनुकसान से बचाने में िलगनेन क� भागीदारी भी उल्लेखनीय मानी
है। िलगनेन िबंबाणु प्रेरक घट( Platelet Activating Factor) के िनमार्ण में व्यवधान पैदा करते , िजनका
िनमार्ण बढ़ने से िबंबाणुओं का िचपिचपापन और प्रदाह का जोिखम बढ़ जाता है। शोधकतार्ओं ने अपनी शोध से
भी िसद्ध िकया है िक भोजन में अलसी का सेवन करने से र� मे-�रयेिक्टव प्रोट( CRP) का स्तर10-15%
कम होता है। यह सी-�रयेिक्टव प्रोटीन शरीर में प्रदाह का माकर्र माना जाता है। इस तरह यह शिलनोिलक अम्ल और िलगनेन के प्रदाहरोधी गुणों का एक बार िफर सत्यापन करती
प्राकृितक एिस्प
आमतौर पर हाटर् अटे या स्ट्रोक का दौरा ग
समय और गलत जगह पर खून के थक्के जमने
के कारण पड़ता है। हम कई दशकों से यह जानते
हैं िक ओमेग-3 फै ट्स से भरपूर अलसी अलसी
िबंबाणु (platelets) का िचपिचपापन कम करती
है, खून को पतला बनाये रखती है और जमने
नहीं देते हैं। या यूँ कहें िक अलसी प्राक
एिस्प�रन क� तरह कायर् करती है। इसिल
िनयिमत अलसी लेने वाले लोगों को एिस्प�र
नहीं लेना चािहये। इस तरह अलसी हाट र् अटे
के कारण पर अटेक करती है।
कॉलेस्टेरो
शोधकतार् मानते हैं िक र� में बुरे कॉलेस्टेरो.डी.एल.
(Low-Density Lipoprotein) का स्तर बढ़ने और अच्छ
कॉलेस्टेरोल ए.डी.एल. ( High-Density Lipoprotein) का
स्तर कम होने से �दय रोग का जोिखम बढ़ जाता है। एक िवशेष
बात यह है िक एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल ऑक्सीडाइज होने क
बाद ही एथेरोिस्क्लरोिसस का कारक बनता है
ट्राइग्लीसराइड्स उन फैट्स को कहते हैं िजनका सेवन
अमूमन रोज करते हैं और जो शरीर में चब� के �प में जमा हो
हैं। मोटापे से इनका घिन� संबंध देखा गया है। भोजन मे
प�रष्कृत(Refined) काब�हाइड्रेट और स्ट ाचर् के सेवन से
में इनका स्तर बढ़ता है। ट्राइग्लीसराइड्स का स्तर बढ़ना भी �दय रोग का आघटन बढ़ा
अलसी के कॉलेस्टेरोल संबंधी फायदों प्रमुख कार ओमेगा-3 फै टी एिसड, घुलनशील फाइबर म्युसीलेज और
िलगनेन है, जो हमें20 से 50 ग्राम अलसी से पयार्� मात्रा में िमल जाते हैं। अनुसंधानकतार्ओं ने यह अपन
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में यह देखा है िक अलसी के सेवन से र� में टोटल कॉलेस्टेर6-9% तथा बरे एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल का स्त
ु
14-18% कम होता है और अच्छे ए.डी.एल. कॉलेस्टेरोल का स्तर बढ़ता है। इससे .डी.एल. और एच.डी.एल.
कॉलेस्टेरोल का अनुपात कम होने लगता है। अलसी से एपोलाइपोप्रो A1 का स्तर भी बढ़ता ह , जो अच्छे
एच.डी.एल. कॉलेस्टेरोल में पाया जाने वाला प्रमुख प्रोटीन है। साथ ही अलसी प्रमुख र� वािह
एथेरोिस्क्लरोि (Atherosclerosis) के िवकास में अवरोध पैदा करती है।
म्युसीलेज का र� में अवशोषण नहीं होता और यह आहार पथ में रह कर ही कायर् करता है यह पानी सोख कर
गाढ़ा तथा िचपिचपा हो जाता है और जेल क� तरह फूल जाता है। फूला ह�आ म्युसीलेज देर तक आंतो में पड़ा रहत
है और शरीर से टॉिक्सन्स औ बरे कॉलेस्टेरो को खींच लेता है। साथ ही म्युसीलेज यकृत में .डी.एल. के
ु
िनमार्ण और �वणमे भी कमी लाता है।
एच.डी.एल. कॉलेस्टेरोल हमारे िलए िहतकारी माना जाता है क्योंिक यह तला भोजन या मांस खाने से धमिनयों
जमा ह�ए टॉिक्सन, फै ट या अन्य कचरे को स्वीपर क� तरह साफ करके लीवर में पह�ँचाता है। लीवर इन दूि
पदाथ� का उत्सजर्न करता है। लेिकन यिद शरीर में.डी.एल. कॉलेस्टेरोल अिधक है या ओमेग-3 फै ट बह�त कम
हैं तो ए.डी.एल. कॉलेस्टेरोल कुछ नहीं कर पाता है
एल.डी.एल. को बरा कॉलेस्टेरोल माना जाता है क्योंिक यह धमिनयों और �दय को अव�द्ध करता है। वै
ु
इतना बरा भी नहीं है और शरीर के िलए ज�री तत्व है। लेिकन शरीर में इसका स्तर बह�त बढ़ जाने या
ु
संतिु लत रखने वाले िहतकारी कॉलेस्टेरोल कम हो जाने िदक्कतें बढ़ती हैं और यह र� के बहाव में �कावट
करता है।
वेंट्रीकुलर ए�रदि
िदल का दौरा पड़ने पर मत्यु का प्रमुख कारण वेंट्र
ृ
ए�रदिमया माना जाता है। अके ले अमे�रका में हर वषर 335,000
लोग हाटर् अटेक होने के एक घंटे के भीतर वेंट्रीकुलर ए�रदि
के कारण मर जाते हैं। यिद हम लोगों को इन जानलेवा ए�रदिमय
से बचाने में कामयाब हो जाते हैं �दय रोगों से मरने वालों क
संख्या में भारी कमी आ सकती ह
इसके िलए सबसे पहले हम �दय क� कायर्प्रणाली को थो
समझने क� कौिशश करते हैं। �दय को शरीर में -संचार करने के िलए धौंकनी क� तरह अपनी माँ-पेिशयों का
लयबद्ध आकुंचन और िवस्ता (Contraction and relaxation) करना पड़ता है। िविदत रहे िक िकसी भी पेशी
का आकुंचन तभी होता है जब उसे कोई िवद्य-आवेश ( Electric Signal) प्रेरणा या आदेश दे। इसके िलए �द
का अपना खुद का िवद्युत उत्पादक और प्रसारण तंत्र , जो इसक� पेिशयों के आकुंचन के िलये िवद्-आवेश
पैदा करता है। �दय क� पेिशयों का िवद्युत िवभवअमुक सी( Threshold Potential ) तक पह�ँचना ज�री है ,
तभी उनका आकुंचन ( Contraction) संभव हो सकता है। इस प्रिक्रया में-पेिशयों क� िभि�यो का जिटल
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िवध्रुवीकरण औरपुनध्रुर्व( Depolarization and Repolarization) होता है जो िभि�यों क� पारगम्यत
(Permeability ) और सोिडयम पोटेिशयम एटीपेज पंप ( Na+–K+ ATPase pump) आिद कई पहलओ ं पर
ु
िनभर्र करता है। िभि�यों में िस्थत ये पंप पेशी में पोटेिशयम ऑयन का प्रवेश और सोिडयम ऑयन का िनका
हैं
जब हाटर् अटेक होता है तो सोिडयम पोटेिशयम एटीपेज पंप में खराबी आ जाने के कारण �दय क� पेशी क� िभि�य
में थोड़ा िवध्रुवीक( Depolarization) हो जाता है। िभि�यों के िवद्युत िवभव में ह�ए प�रवतर्न के कारण पे
क� उ�ेजना बढ़ जाती है और आदेश िमलने से पहले ही आकुंचन करने लगती है। इससे �दय लयबद्ध धड़कने क
जगह फड़फड़ाना शु� कर देता है और वेंट्रीकुलर ए�रदिमया का कारक बनता
एक शोध में कु�ों को अल-िलनोनेिनक एिसड , EPA और DHA िशरा द्वारा िदये गय इन कु�ों म वेंट्रीकु
फ्लट-िफब्रीलेशन क� व्यापकता में आ�यर्जनक कमी देखी गई। जबिक कंट्रोल ग्रुप के कु�ों में ए
व्यापकता में कोई बदलाव नहीं , िजन्हें सोयाबीन का तेल िदया गया थ
अनसंधानकतार् मानते हैं िक आहार में अल(ओमेगा-3 फै ट्स) को शािमल करके इस जानलेवा रोग से बचा जा
ु
सकता है। ओमेगा-3 फै ट्स �दय क� पेिशयों क� िवद्युत ि को िस्थर रखते ह, पेिशयों में अनावश्यक कैिल्
नहीं जाने देते िजससे पेिशयां अितउ�ेिजत नहीं हो पाती। इस तरह ओमे-3 फै ट हमें घातकवेंट्रीकुलर ए�रदि
से बचाक� है। अब यह बात भी िसद्ध होचुक� है िक अलसी में िवद्यमान-िलनोनेिनक एिसड और मछली में
पाये जाने वाले EPA और DHA इस रोग में भी समान �प से कायर् करते हैं। इसीिलए जो समझदार और दूरद
लोग समय रहते अलसी का सेवन शु� कर देते है , उन्हें हाटर् अटेक होने क� संभावना बह�त कम रहती, तथा यिद
िकसी को अटेक आ भी जाये तो उसे ये घातक वेंट्रीकुलर िफब्रीलेशन रोग नहीं होता और वह एंिजयोप्लास्
कर आई.सी.यू. से सरि�त घर लौट आता है।
ु