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सेलफोन – फ् रैंडली िपजन या ब्र
डॉ. ओ.पी.वमार
अध्य, अलसी चेतना यात्
7-बी-43, महावीर नगर तृतीय
कोटा राज.
http://flaxindia.blogspot.com
+919460816360
आज सेलफोन हमारे दैिनक जीवन का एक अिभन्न अंग बन चुका है। िबना सेलफोन क आजकल जीवन क� कल्पना करना भी
मुिश्कललगता है। िजधर देखो उधर आपको लोग हाथ में सेलफोन थामें िदखाई दे, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में श्री कृष्ण
अंगुली में सुदशर्न चक्र धारण करके घूमा करते थे।   देखते ही देखते िप15 वष� में  सेलफोन के जाल ने पूरे िव� को जकड़
िलया है। िकशोर लड़के और लड़िकयाँ तो सेलफोन के इतने दीवाने हो चुके है, सुबह से लेकर रात तक सेलफोन से ही िचपके
रहते है। भारत में सेलफोन क� क्रांित लाने में अंबानी बंध का भी बह�त बड़ा हाथ है। "कर लो दुिनया मुट्ठी " के नारे का सहारा
लेकर इन्होंने खूब मोबाइल �पी मौत का कारोबार िकया। लोग तो दुिनया को शायद अपनी मुट्ठी में नहीं कर सके लेिकन अ
बन्धु ज�र टाट, िबरला आिद सभी अमीरों को पीछे छोड़ कर भारत के सबसे अमीर आदमी बन गये
बाजार में शौक�न लोगों के िलए कई कम्पिनयाँ ह-जवाहरात जड़े िनत नये मंहगे और
नायाब सेलफोन भी बेचने मेंलगी हैं।2009 में स्टुअटर् �ूजेस कम्पनी ने दुिनया का सब
मंहगा गोल्डस्ट्राइकर आईफोन बाजार में उतारा था। इस फोन को बनान271 ग्राम सोन
और 200 हीरे काम में िलए गय है। 53 खूबसूरत रत्नों से ऐपका लोगो बनाया है और होम
बटन पर 7.1 के रेट का बड़ा हीरा जड़ा गया है। इसक� क�मत 3.2 िमिलयन डॉलर (लगभग
15 करोड़ �पये) रखी गई है। लेिकन इतना मंहगा होने पर भी यह है तो मौत का ही सामान।
आज पूरे िव� में5.6 िबिलयन सेलफोन उपभो�ा हैं। भारत िव� में दूसरे नम्बर पर आता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार आज हम
यहाँ 881,400,578 सेलफोन उपभो�ा हैं। यािन हमारे73.27% लोग सेलफोन रखते हैं। एक अनुमान के अनुसार2013 तक यह
संख्या एक अरब से अिधक हो जायेगी। लेिकन मुद्दे क� बात यह है ि सरकारी संस्थाओं नें िबना सो-समझे िनमार्ताओंको
सेलफोन बेचने क� स्वीकृित दे दी, यह नहीं सोचा िक इससे िनकलने वाली इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगे हमारे स्वास्थ्य के ि
खतरा तो नहीं बन जायेंगी। अफसोस इस बात का है िक इसक� सुर�ा को लेकर कोई शोध  ही नहीं गई और हर आदमी को यह
खतरे का झुनझुना पकड़ा िदया। चिलये आज हम सं�ेप में सेलफोन के खतरों से �ब होते है और उनसे बचने के तरीकों पर भी
स्प� और िनष्प� चचाकरते हैं
(मेघदूत जन जमदूत)
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इितहास
चल दूरभाष यािन तारयु� टेलीफोन
पहले हम फोन और सेलफोन के इितहास क� जानकारी हािसल करते है। सचमुच सन् 1876 िव� के
इितहास में बह�त अहम थ , क्योंिक इसी वष एिडनबगर, स्कॉटलै, िब्रटेन के एलेक्जेंडर ग्राह (3
माचर, 1847 – 2 अगस्, 1922) ने टेलीफोन का आिवष्कार िकया था। यह एक महान आिवष्कार थ
उनके इस क्रांितकारी आिवष्कार ने पूरे िव� को समेट कर वैि�क गांव बना िदया था। इसके एक
साल बाद ही सन् 1877 में उन्होंने बेल टेलीफोन कम्पनी बना ल । इसी वषर् उन्होंने मबेल गािडर
हबडर् से िववाह रचाया और एक साल क� लम्बी हनीमू मनाने के िलए यूरोप क� यात्रा पिनकल पड़े।
कालान्तर मेउनके दो पुित्रयां एल्सी और मै�रएन पैदा ह�ई।
28 जनवरी, 1882 का िदन भारत के इितहास में रेड लेटर डे के नाम से अंिकत ह, क्यों इस िदन भारत में पहली बार टेलीफोन
सेवाएं जो शु� ह�ई थी। कलक�ा, मद्रास और बम्बई में टेलीफोन एक्सचेंज बनाये ग93 उपभो�ाओंको टेलीफोन कनेक्शन
िदये गये थे।
अचल दूरभाष यािन सेलफोन
लगभग आधी सदी तक िजन तारों ने हमारे टेलीफोन्स ही नहीं बिल्क हम
िदलों को भी जोड़ कर रखा थ, उन्हें  मािटर्न कू(जन् - 26 िदसंबर, 1928
िशकागो, इिलनोइस, अमरीका ) ने सन् 1973 में  कुतर डाला और
इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगो पर आधा�रत दूरसंचार क� नई टेक्नोलोजी िवक
क�। इस तरह उन्हों सेलफोन का आिवष्कार िकया था। तब ये मोटोरोला
कम्पनी के उपाध्य� थे। बाद में इन्होंने ऐरे कोम नामक कम्पनी बनाई।
मोबाइल फोन का िपता भी कहा जाता है। एक दशक के बाद 1983 में जाकर
मोटोरोला कम्पनी ने अमे�रका में पहली बार सेलफोन सेवाएं शु� क� थी
लेिकन भारत में पहली मोबाइल फोन सेवाएं पि�मी बंगाल में मोदी टेलस्ट्रा मोबाइलनेट कम्प31 जुलाई, 1995 के शु� क�
और इसका िविधवत उद्टन यहाँ के मुख्य मंत्री ने िकया था
सेलफोन के खतरे
सेलफोन या मोबाइल फोन एक माइक्रोवेव ट्रांसमीटर है। माइक्रोवेव तरंगें रेिडयो वेव य-चुम्बक�य तरंगे होती ह, जो प्रका
क� गित (186 ,282 मील प्रित सैकण्ड) से चलती है। CDMA सेलफोन 869–894, GSM900 सेलफोन 935–960,
GSM1800 सेलफोन 1810–1880 और 3G सेलफोन 2110–2170 मेगाहट्र्स आवृि� पर काम करते हैं इन तरंगों क� आवृि�
(Frequency) सामान्यतः1900 Mega Hertz (MHz) होती है अथार्त य एक सैकण्ड में लाखो करोड़ों बार कंपन्न करती
सेलफोन हमारी आवाज क� तरंगों के छोट-छोटे पुिलंदे ( Packets) बना कर रेिडयो तरंगों पर लाद कर एक स्थान से दूसरे स्थ
तक भेजता है, यािन रेिडयो तरंगें वाहन के �प में कायर् करती ह आधुिनक युग में टेलीिवज , इंटरनेट, सेलफोन या टेलीफोन
संदेशों के प्रस में माइक्रोवेव तरंगों क� मदद ली जाती सेल्यूलर बायोकेिमस्ट्री के जरनल के अनुसार ये तरंगे हमार.एन.ए.
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तथा उसका जीण�द्धार करने वाले तंत्र को �ितग्रस्त करती हैं
के पेसमेकर क� कायर्प्रणाली को बािधत कर सकती हैं। माइक्रोव
कु प्रभाव से हमारी कोिशकाएं जल्दी जीणर्ता को प्रा� होती है। वाि
िव�िवद्यालय के प्रध्या. हेनरी लाइ ने स्प� कहा है िक माइक्रोव
तरंगे अमे�रकन सरकार द्वारा तय मानक के काफ� कम मात्रा मे
मिस्तष्क को �ित पह�ँचाती हैं
दशकों पहले कई वै�ािनकों ने बतला िदया था िक माइक्रोवेव से क
होने क� संभावना रहती है। शायद आपको याद होगा िक शीत युद्ध क
समय �स ने मास्को िस्थत अमे�रकन दूतावास में गु� �प से माइक्र
ट्रांसमीटर लगा िदया , िजससे अमेरीका के दो राजदूत ल्यूक�िमया के िशकार बने और कई अन्य  कमर्चारी भी कैंसर से पी
ह�ए।
सामान्य िवकार
शरीर के पास मोबाइल रखने से िविकरण के ऊष्मी प्रभाव हो सकते हैऊष्मा के कारण आं, मिस्तष, �दय, उदर आिद अंगों
के आसपास का द्रव सूखने लगता है।  मोबाइल से िनकलने वाली रेिडयो तरंगो से िनम्न सामान्य िवकार हो सकते
• इसके कुछ अन्य गैर ऊष्मीय प्रभाव जैसे िसर क� त्वचा प , लािलमा, खाज-खुजली, फुं िसयां, त्वचा में अबु,
िसहरन या चक�े बन जाना प्रमुख है
• साथ ही थकान, अिनद्, चक्कर आन, कानों मेआवाज आना या घंिटयां बजना, प्रितिक्रया देने में व�, एकाग्रत
में कम, स्मृि-ह्र, िसरददर, सूंघने क� शि� कम होना, भूख न लगना, उबकाई, पाचन तंत्र में गड़, िदल क� धड़कन
बढ़ना, जोड़ों में द, मांस-पेिशयों में जकड़न और हाथ पैर मकं पकं पी इत्यािदल�ण हो सकते हैं।
• कुछ को स्नायु िवकार जैसे िसर में गुंजन हो, बैचेनी, घबराहट, अपस्मा, लकवा, स्ट्, मनोिवकृ ित आिद ल�ण हो
सकते हैं।
• �ेत र�-कणों क� संख् और कायर्�मता कम हो जाती है। मास्ट कोिशकाएँ ज्यादा िहस्टेमीन बनाने लगती हैं ि
�ासक� या अस्थमा हो जाता है।
• वै�ािनक कहते हैं िक सेलफोन गभर्वती ि�यों के पेट में पल रहे भ्रूण को नुकसान पह�ँचा स, इसिलए वे सावधान
रहें और सेलफोन का प्रयोग नहीं कर
• आँखों में मोितयािब, आँखों में कैंसर और -पटल �ितग्रस्त होता ह
कणर्�वेड या �रंग्जाइट(Tinnitus or “Ringxiety”) -
कई सेलफोन उपभो�ा को फोन क� घंटी सुनाई देती है भले फोन बजा ही नहीं हो। िदन रात सेलफोन प्रयोग करने वालों में
बड़ा सामान्य िवकार है। इसे िटनाइटस या �रंग्जाइटी कहा जाता है। क-कभी तो यह िवकार इतना बढ़ जाता है िक रोगी का
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सुनना, काम करना या सोना भी मुिश्कल हो जाता है। आगे चल कर आंत�रक कणर् क� नाजुक िक-प्रणाली बािधत होने लगती ह
और स्थाई बहरापन भी हो सकता है
मिस्तष्क और कैं
सेलफोन खोपड़ी क� नािड़यों को �ित पह�ँचाते हैं रेिडयो तरंगे मिस्तष्क को र� पह�ँचाने वाले -मागर् क� बाधाये (Blood Brain
Barrier) खोल देती हैं िजससे िवषाण, ऐल्ब्युिमऔर दूिषत तत्व मिस्तष्क में घुस जाते हैं। सेलफोन से िनकलने व.एम. तरंगे
मेलाटोिनन का स्तर भी कम करता है। मेलाटोिनन एक शि�शाली एंटीऑक्सीडे, एंटीिडप्रेसेन्ट तथा र�ाप्रणाली संवधर्क
हमारे शरीर क� जीवन-घड़ी ( Circadian Rhythm) को भी िनयंित्रत करता है यह हमे एल्झाइम, पािक� सन्स रोग और कैंसर स
बचाता है। इसका स्तर कम होने से कैं, कई िनद्-िवकार, गभर्पा, थकावट, आथ्रार्इ, डी.एन.ए. क� िवकृ ित, आँखों में तन
और अवसाद होने का जोिखम बढ़ जाता है। इसक� कमी से वृक्, �दय, प्रजनन या स्नायु तंत्र सम्बन्धी रोग भी हो स
डॉ. कोल� के अनुसार जीिवत ऊतक को रेिडयो या िवद्य-चुम्बक�य तरंगों से इतना खतरा नहीं हैं। असली दुष्मन तो ध्विन या
से बनी िद्वतीयक तरंगे , िजनक� आवृि� Hertz में होती है और िजसे हमारी कोिशकायें पहचानने में स होती हैं। हमारे ऊतक
इन तरंगों को आतंकवादी हमले के �प में लेते हैं और सुर�ा हेतु समुिचत जीवरसायिनक कदम उठाते हैं।  जैसे कोिशकायें
को चयापचय के िलए खचर् न करके सुर�ा पर खचर् करने लगती हैं। िभि�यां कड़ी हो जाती, िजससे पोषक तत्व कोिशका के बाहर
ही और अपिश� उत्पाद अंदर ही बने रहते हैं। िजससे कोिशका में -कण बनने लगते हैं और ड.एन.ए. का जीण�द्ध-तंत्र तथ
कोिशक�य िक्रयाएं बािधत होने लगती हैं। फलस्व�प कोिशकाएं मरना शु� हो जात, टूटे ह�ए डी.एन.ए. से माइक्रोन्यूिक्ल
(Micronuclei ) बाहर िनकल जाते हैं और उन्मु� होकर िवभािजत और नई कोिशकाएं बनाने लगते हैं। कोल� इसी प्रिक्
कै ंसर का कारक मानते हैं। साथ ही कोिशकाओं में प्रभी �ितग्रस्त हो जाता
िजससे अन्तरकोिशक�य संवादऔर संके तन प्रणालबंद हो जाता है, फलस्व�प
शरीर के कई कायर् बािधत हो जाते हैं
मिस्तष्क में कई तरह के कैंसर जैसे ऐकॉिस्टक न्, ग्लायोम, मेिननिजयोमा,
ब्रेन िलम्फ, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद बड़े खत नाक माने जाते हैं।
1975 के बाद अमे�रका में मिस्तष्क के कैंसर क� दर25 % का इजाफा ह�आ
है। अमे�रका में सन्2001 में185,000 लोगों को िकसी न िकसी तरह का
मिस्तष्क कैंसर ह�आ। मिस्तष्क में अंगूर के दाने बराबर कैंसर क� गाँठ म
महीने में बढ़ कर टेिनस क� गैंद के बराबर हो जाती है। मिस्तष्क कैंसर सामा
बह�त घातक होता है, तेजी से बढ़ता है और रोगी क� 6-12 महीने में मृत्यु हो जात
है।
अग्न्या, थायरॉयड, अण्डाशय और वृषण(Testes) आिद
ग्रंिथयों संबन्धी िवकार हो जाते हैं। पैंट क� जेब में मोबाइल रखने से शुक
संख्य और गितशीलता 30 % तक कम हो जाती है, शुक्रा भी �ितग्रस्त हो
लगते है और सेलफोन प्रयो�स्थाई पचअसकता को प्रा� हो जाता है।
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बच्चे और िकशोर ज्यादा संवेदनशील
बच्चों और िकशोरों के िलए सेलफोन का प्रयोग बेहद खतरनाक हो सकता है। कुछ यूरोप के देशों ने अिभभावकों को कड़े
जारी िदये हैं िक वे अपने बच्चो को सेलफोन से दूर रखें। यूटा िव�िवद्यालय के अनुसंधानकतार् मानते हैं िक बच्चा िजत
होगा, वह उतना ही ज्यादा िविकरण का अवशोषण करेगा, क्योंिक उनक� खोपड़ी क� हड्िडयां पतली होती , मिस्तष्क छो,
कोमल तथा िवकासशील होता हैं और माइिलन खोल बन रहा होता है। स्पेन के अनुसंधानकतार् बतलाते हैं िक सेलफोन बच्च
मिस्तष्क क� िवद्युत गितिविध को कुप्रभािवत क, िजससे उनमें मनोदशा( Mood) तथा व्यवहा संबन्धी िवकार होते ह,
िचढ़िचढ़ापन आता है और स्मरणशि� का ह्रास होता ह
कार में खतरा ज्यादा
बंद कार मेंटॉवर से पयार्� िसगनल न िमलने के कारणसेलफोन को टावर से समुिचत संपकर ् बनाये रखने के िलए सेलफोन को बह�त
तेज रेिडयो तरंगे छोड़नी पड़ती है। इसिलए कार में माइक्रोवेव रेिडयेशन क� मात्रा बह�त ज्यादा बढ़ जाती है। इसीिलए यूर
मशह�र और िजम्मेदार कार िनमार्ता वोल्कसवेगन अपने खरीदारों को स्प� िनद�श देता है िक कार में सेलफोन का प्रयोग बह
सािबत हो सकता है क्योंिक सेलफोन कार में बेहद खतरनाक मात्रा में इलेक्ट्रोमेगनेिटक रेिडयेशन िनका
रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे बुरी तरह प्रभाि
रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे भी बच नहीं सके हैं। सेल टॉवर के आसपास क� गाय और भैंसें कम दूध द
लगी हैं। बक�रया, कु �े, िबिल्लया, खरगोश आिद भी प्रभािवत ह�ए हैं। इन जानवरों में गभर्पात और अन्य रोग बढ़ रहे हैं। स
के आसपास के इलाकों में ितत, मधुमक्ख, कबूतर, हंस, सारस, गौरैया आिद का िदखना बन्द सा हो गया है।
भारत में .एम. रेिडयेशन क� िस्थित िचंताजनक
भारत क� िस्थितबह�त गंभीर है। जयपुर को ही लीिजये, यहाँ आिदनाथ मागर् िनवासी जैम पैलेस के संचालक दो भाइयों को तीन मा
के अंतराल में ही ब्रेन कैंसर हो गया। बड़े 55 वष�य संजय कासलीवाल लाखों �पए खचर् कर आठ माह बाद अमे�रका से लौट
ही थे िक इसी बीच उनके 52 वष�य छोटे भाई प्रमोद कासलीवाल को ब्रेन कैंसर होने का पता चला। तीन महीने पहले उनके प
कु �े के पेट में कैंसर क� गांठ हो गई थी। इसका कारण मोबाइल फोन का प्रयोग और इलाके में लगी तीन सेलफोन टावर थ
भारी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेिटक तरंगे चौबीसउगल रही हैं
प्रोफेसर िगरीश कुम, िवद्युत अिभयांित्रक� ि, आई.आई.टी. पवई, मुम्ब
सेलफोन टावसर् के खतरों पर भारत के महान अनुसंधानकत
प्रोफेसर िगरीश कुम, िवद्युत अिभयांित्रक� ि, आई.आई.टी. पवई, मुम्बई तीन दशकों से एंटीना के �ेत्र में शोध कर रह
इन्हों "ब्रॉडबैंड माइक्रोिचप एं" नामक पुस्तक िलखी है और150 शोधपत्र िविभन्न राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय
प्रकािशत िकये हैं। इन्ह1000 तरह के एंटीना िवकिसत िकये हैं। ये सेलफोन और सेलफोन टॉवसर् के खतरों पर भी दस वषर्
शोध कर रहे हैं। इन्हों27 माचर् को िदल्ली में सेलफोल और टॉवसर् के खतरों क� समी�ा हेतु आयोिजत एक गोल मेज सम्मेलन
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अपना एक प्रितवेददूरसंचार मंत्री श्री किपल िसब्बल का प्रस्तुत िकया ह ASSOCHAM के अिधकारी भी उपिस्थत थे।
अब देखना है िक सरकार क्या कदम उठाती है। इस प्रितवेदन को बनाने इनक� अपनी पुत्री नेहा कुमार ने भी मदद क� है इन्होंन
अन्ना युनीविसर्टी से इंडिस्टबायॉटेक्नोलोज मेंबी.टेक.िकया है और ये माबाइल टावर रेिडयेशन के बायोलोजीकल इफे क्ट्स
पर शोध कर रही हैं। ये नेसा रिडयेशन सोल्यूशन्स क� िनद�शक ह
प्रोफेसर . कु मार ने बताया िक भारत में टेलीकोम कम्पिनयां प्रित के�20
वाट रेिडयेशन छोड़ती हैं। एक ऑपरेटर को कई के�रयर िफ्रक्वे (2 to 6)
आवंिटत क� जाती हैं और पैसे बचाने के िलए एक ही छत या टॉवर पर3-4
ऑपरेटसर् अपने एन्टीना लगा लेते हैं। इस तरह सारे एंटीना िमला 100 से
400 वाट तक रेिडयेशन छोड़ते है, जो बह�त ज्यादा है। जबिक घने �रहायशी
इलाकों में ऑपरेटर क2 वाट से अिधक रेिडयेशन नहीं छोड़ना चािहये। इसके
अलावा ये डायरेक्शनल एंटीना भी प्रयोग करते, िजनका गेन भी 17 dB तक
बढ़ा देते है। प्रोफेसर .कु मार आइ.सी.एन.आई.आर.पी. के मौजूदा मानकों
(जी.एस.एम. 1800 के िलए 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर्) से सहमत
नहीं हैं। बायो इिनिशयेिटव �रपोटर् और उनक� शोध के अनुसार रेिडयेशन घन
0.0001 वाट प्रित वगर् मीटर से अिधक नहीं होना चािहये क्योंिक सेल
24 घंटे रेिडयेशन छोड़ते हैं और इनके समीप रहने वाले लोग आजीवन इस
रेिडयेशन को झेलते हैं। इस तरह आ.सी.एन.आई.आर.पी. के मानकों का
1/10th और 1/100th िहस्सा अथार्त .एस.एम. 1800 के िलए 9.2 और
0.92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर् मीटर भी बह�त अिधक है। उन्हें खेद है िक ज.एच.ओ. ने 31 माचर, 2011 में माबाइल फोन
को कै ंसर का कारक मान िलया ह, लेिकन सेल टॉवसर् को छोड़ िदया है जब िक यह तो24 घंटे खतरनाक रेिडयेशन उगलता रहता
है।
प्. जी. कु मार ने कहा है िक भारत में5 लाख सेलफोन टॉवसर् हैं िजनमें 2 लाख घने �रहायशी इलाकों में लगी हैं। ये भारी मात्र
सातों िदन और चौबीसों घंटे खतरनाक.एम. रेिडयेशन उगलती रहती हैं। इनके िनकट रहने वाले लोग लगातार .एम. रेिडयेशन
सोख रहे हैं और इनको कैंसर तथा कई अन्य रोगों का जोिखम बना ह�आ
यिद ऑपटर्सर् कम शि� के एंटीना या ट्रांसमीटर लगाये तो बह�त अ
सेलफोन टावसर् लगाने होंगे एक टॉवर का खचार्15 लाख �पये आता है। यिद
5 लाख नये टॉवर लगाने पड़ें तो75,000 करोड़ �पये अित�र� खचर् होंगे। यह
खचार् बचाने के िलए ऑपरेटसर् सरकार के कड़े मापदण्ड तय करने का िवर
करते हैं।
इन्होंने बतलाया है िक मुम्बई के आवासीय इलाकों में सेलफोन टॉवस
िनकलने वाला ई.एम.रेिडयेशन सुरि�त सीमा से बह�त ज्याद है। ई.एम.रेिडयेशन
क� मात्र100 माइक्रव्हाट प्रित वगर्मीटर से ज्यादा नहीं होन , जबिक
कई जगह यह 1000 माइक्रव्हाट से भी ज्यादा है और लोगों के स्वास्थ्य
बह�त बड़ा खतरा बना ह�आ है। इन इलाकों में लोगों को िचढ़िचढ़ , थकावट,
िसरददर, उबकाई, बेचैनी, िनद्-िवकार, �ि�-दोष, एकाग्रता में  , अवसाद,
स्मृि-ह्र, चक्क, नपुंसकता, कामेच्छा में क, िशशु में पैदायशी दो आिद
तकलीफे ं हो रही हैं। ि�यों को तकलीफ  दा होती है। प्रोफेसर िगरी
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इसे "धीमा और अ�श्य काित" क� सं�ा देते हैं
मुम्बई में जसलोक हॉस्पीटल के पास पेडर रोड पर िस्थत ऊषा िकरण इमारत क� पांच से दसवीं मंिजल में हाल ही छः लो
कै ंसर ह�आ ह, क्योंिक इस इमारत के ठीक सामने िवजय अपाटर्मेंट क�(जो इन मंिजलों के ठीक सामने पड़ती ह) पर कई
कम्पिनयों के सेलफोन एंटीना लगे है
प्. कु मार ने बतलाया है िक हमारे यहां कं पिनयों के दबाव में रेिडएशन मानक �स 460 गुना और आिस्ट्रया 10 लाख गुना
ज्यादा रखा है।यह कािबले गौर है िक दुिनया में सबसे खराब मानक हमारे देश ने तय कर रखे हैं। जबिक अन्य देशों के मानक हम
यहाँ से बह�त ही कम हैं। �, इटली और पोलेंड आिद देशों के मान0.1 वाट प्रित वगर् मीटर है। िस्वटजरलैंड के कई संवेद
इलाकों में रेिडयेशन मान0.042 और 0.095 वाट प्रित वगर् मीटर हैं।  भ सरकार ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर नॉन-
आयोनाइिजंग रेिडएशन प्रोटेक्शन के मानकों को अपने िहसाब से-मरोड़कर रेिडएशन मानक 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वग.
कर रखे है। ऐसे में दूर संचार िवभाग क� मोबाइल कंपिनयों पर मेहरबानी पर सवाल उठने लगे हैं िक इस नीित के पीछे भी  2-जी
स्पेक्ट्रम जैसी कोई सािजश तो नहीं िछ?
डॉ. जी. कु मार कहते हैं िक सेलफोन उद्योग उन्नीसवीं सदी में शु� ह�ए िसगरेट उद्योग का इितहास दोहरा रहा है।  पूरी एक
िसगरेट िनमार्ता िचल्-िचल्ला कर दलील देते रहे िक िसगरेट मानव के िलए नुकसान दायक नहीं , लेिकन आप जानते हैं िक
आज िसगरेट के कारण लाखों करोड़ों लोग मर रहे हैं। सेलफोन उद्योग आज येन केन प्रकारेन सेलफोन को मानव िहतैषी
करने में जुटा है। हमें सेलफोन त्रासदी से हर हाल में बचना
सेलफोन टॉवसर् के रेिडयेशन को कम करने हेतु प्रोफेसर. कु मार के सुझाव
• सेलफोन ऑपरेटसर के िलए सरकार को मानव जाित, प�रन्द, जानवर और पेड़-पौधों क� सुर�ा को प्राथिमकता देते ह
नये कठोर मानक तथा िनयम बनाने होंगे और उनक� गितिविधयों पर नजर भी रखनी होगी
• ऑपरेटसर को प्रित के�रयर रेिडयेशन क� मात(खास तौर पर घनी आबादी वाले इलाकों म) मौजूदा 20 वाट प्रित के�रय
से घटा कर 1 या 2 वाट करनी चािहये। यह करना उनके िलए किठन काम नहीं है। इसके िलए िसफर् उन्हें प
एिम्प्लफायर हटाना पड़ेगा या उसका गेन कम करना पड़ेगा। इसके उन्हें कुछ फायदे भी होगे जैसे एिम्प्लफायर का
करने के िलए एयर कं डीशनर लगाने क� ज�रत नहीं होगी और पावर क� खपत कम होने के कारण डीज़ल क� जगह सौर
ऊजार् से चलने वाले जनरेटर से काम चल सकता है। यह ह�रत टेलीकॉम पयार्वरण क� �ि� से भी यह उिचत रहेगा
लेिकन इससे एक नुकसान यह होगा िक टॉवर से दूर रहने वाले उपभो�ाओंको िसगनल कमजोर िमलेगा और ऑपरेटसर्
को ज्यादा टावसर् /या �रपीटसर् लगाने पड़ें, िजससे िलए उन्हें अिधक धनरािश भी खचर् करनी पड़ेग
• आवासीय इलाको, स्क ू, ऑिफस, अस्पताल आिद जगहों पर स-समय पर रेिडयेशन क� मात्रा को नापा जान
चािहये। यिद िफर भी रेिडयेशन अिधक है तो सेल टॉवर को अन्य जगह लगाया जाना चािहये।
• सेलफोन टॉवसर् के अलावा मोबाइल फो, कोडर्लेस फो, कम्प्यू, टी.वी.टॉवर, एफ.एम.टॉवर, माइक्रोवेव ऑवन आि
भी बड़ी मात्रा में रेिडयेशन छोड़ते हैं और हमें सबके घातक प�रणाम भुगतने पड़ते
• अब समय आ गया है जब सेलफोन कम्पिनयों को पुराना रवैया छोड़ कर खुल कर स्वीकार कर लेना चािहये िक सेलफ
रेिडयेशन मानव समेत समस्त प्र, वनस्पित जगत और पयार्वरण के िलए बह�त बड़ा खतरा है। तभी हम िमल कर इसस
बचने के तरीके ढ़�ँढ़ पायेंगे।
8 | P a g e
डॉ. काल� महान अनुसंधानकतार
डॉ. जॉजर् काल� पीए.डी., एम.एस., जे.डी.
वै�ािनक, सलाहकार, अिभव�ा, अनुसंधान और िवकास िनद�शक,
संस्थाप, साइंस एण्ड पिब्लक पॉिलसी इंिस्टट्
पूवर् अध्, सेल्यूलर टेलीफोन इंडस्ट्री ऐसोिसय(CTIA)
अध्य, वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR)
टी.वी. कायर्क्- सी.बी.एस. न्यू, सी.एन.एन., फोक्स न्य,
वल्डर् न्यूज टून, एम.एस.एन.बी.सी.
1992 में फ्लो�रडा के उद्योगपित डेिवड रेनाडर33 वष�य पित्न सुज़ान ऐलेन क�
एस्ट्रोसाइटोमा नामक मिस्तष्क कैंसर से मृत्यु हो गई थी और उन्होंने सेलफोन
एन.ई.सी. और जी.टी.ए. मोबाइलनेट के िव�द्ध अदालत में दावा ठोक िदया थ21
जनवरी, 1993 को डेिवड ने लैरी िकं ग लाइव शो नामक टी.वी. कायर्क्रम में सेल
कम्पनी को जम कर कोसा और लोगों को सुजान के एक्सरे िदखाये िजसमें कान
पास कै ंसर क� गांठ साफ िदखाई दे रही थ, जहाँ फोन लगा कर सुजान रोजाना घन्टो
बात िकया करती थी। दूसरे िदन इस के स को लेकर मीिडया में काफ� हल्ला ह�आ औ
सेलफोन कम्पिनयों के शेयरों में भारी िगरभी देखी गई। बेहताश सेल्यूलर टेलीफोन
इंडस्ट्री ऐसोिसये( CTIA) ने आनन-फानन में अपने बचाव हेतु झूंठा बयान जारी
कर िदया िक सेलफोन के खतरों पर काफ� शोध ह�ई है और सेलफोन पूरी तरह
सुरि�त माने गये हैं तभी सरकार ने सेल फो को मंजूरी दी है। उस समय अमे�रका में
सेलफोन के डेढ़ करोड़ उपभो�ा थे और मीिडया शोध क� �रपोटर् सावर्िजक करने क
मांग उठा रहा था, लेिकन वास्तिवकता यह थी िक कोई शोध ह�ई ही नहीं थी। आिखरकार मीिडया के भारी दबाव के कारण
सी.टी.आई.ए. (CTIA) को सेलफोन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों और उनसे बचने के उपायों को खोजने हेतु वाय
टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) गिठत करना पड़ा और इसके िलए सेलफोन कम्पिनयों न2.85 करोड़ डॉलर क� धनरािश देने
क� बात कही। बह�चिचर्त ड. जॉजर् काल� को इस प�रयोजना का अध्य� बनाया गया
डॉ. काल� स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� जा रही शोध पर भी नजर बनाये ह�ए थे। शु� में तो-ठाक रहा लेिकन जब उन्हें ऐस
संके त िमले िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का खतरा बह�त है तो उन्होंने कई सेलफोन कम्पिनयों को पत्र िलखे और ,
लेिकन कम्पिनयां ये सब बातें दबा देना चाहती थी। कोई उनके सुझावों को मानना ही नहीं चाहता था इस कारण कम्पिनयों स
उनके �रश्ते भी खराब होने लगे। एक बार सेलफोन कम्पिनयों ने उन्हे कई महीनों तक पैसा ही नहीं िदया और उलटा उन्हे
करना शु� कर िदया िक उनके मन में कुछ पाप है तथा वे शोध को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं।  इस तरह कई पंगे ह�ए और उनके िखल
कई षड़यंत्र रचे गये। आिखरकार फरवर1999 में काल� FDA और CTIA के अिधका�रयों से िमल, उन्हे CTIA द्वारा क� ग
9 | P a g e
िनष्प� शोध  के बारे में बतलाया औCTIA के वािषर्क सम्मेलन में सेलफोन से होने वाले मिस्तष्क कैंसर और अन्य खतरों
में अपना प्रितवेदन पढ़ कर सबकों चौंका िदया। काल� ने िनम्न िबन्दुओं पर  सबका ध्यान आकिषर्
• सेलफोन को कान से लगा कर बात करने वालों में मिस्तष्क कैंसर के कारण मृत्युदर उन प्रयो�ाओं से अिधक पाई ग
सेलफोन को िसर से दूर रख कर बात करते थे यािन हेडसेट या स्पीकर फोन से बात करते थे।
• सेलफोन के एंटीना के चारों ओर7-8 इंच के दायरे में तीव्र िवद्युत चुम्बक�य तरंगें कोमल और संवेदनशील मिस
टॉिक्स, मु� कण, घातक रसायन, जीवाणु, िवषाणु आिद क� घुसपेठ को रोकने के िलए बने चुंगी नाके ( Blood Brain
Barrier) को खोल देती है, और टॉिक्सन और घातक मु-कण (Free Radicals) मिस्तष्क में प्रवेश करने लगत
• 6 वषर् या ज्यादा समय तक सेलफोन का उपभोग करने वाले व्यि�यों में एकॉिस्टक न्(श्रवण नाड़ी क� गा) का जोिखम
50% से अिधक पाया गया है।
• सेलफोन प्रयो�ाओं में मिस्तष्क के बाहरी िहस्से में दुलर्भ न्यूरोइपीथीिलयोमा ट्यूमर 50% अिधक पाया गया है।
डॉ. कोल� ने इस बात जोर देकर कहा िक सेलफोन कम्पिनयों ने आरंभ से ही उपभो�ाओं क� सुर�ा के िलए समुिचत कदम नह
उठाये है। कोल� ने बतलाया िक कम्पिनयों को सेलफोन के संभािवत खतरों के बारे में-बार आगाह करने पर भी वे उन्हें अनदेख
करती रही, राजनीित करती रही, लोगों के गुमराह करती रह, झूंटे दावे करती रही िक सेलफोन बच्चों समेत सभी उपभो�ाओं क
िलए पूणर्तया सुरि�त है और यह कहते रहे िक िफर भी लोगों क� सुर�ा हेतु वे अनुसंधान जारी रखेंगे
काल� ने मानवता के िलए अपना फजर् पूरा करते ह�ए िनभ�कतापूवर्क सच्चाई दुिनया के सामने , लेिकन इसके बदले में सेलफोन
कम्पिनयोद्वा उन्हें धमकाया ग, उन पर गुंडों द्वारा हमला करव, उन्हें बदनाम िकया गया और रहस्यमय ढंग से उनका
घर फायर-िब्रगेड द्वारा जला कर खाक कर िदया गया। ये घटनाएं उस देश में घटी जो खुद को दुिनया का सबसे बड़ा लोकता
देश बतलाता है और अपने माथे पर स्टेचू ऑफ िलबट� का टेटू िचपकाकर घूमता है। मुझ पर िव�ास न हो तो गूगल के गिलयारों मे
झांक लीिजये आपको सारे सा�य िमल जायेंगे।
इसके बाद कोल� ने “सेलफोन् इनिविजबल हेजाड्र्स ऑफ द वायरलेस ऐ ” नामक पुस्तक प्रकािशत, िजसमें उन्होंने अप
कटु अनुभवों और सेलफोन के खतरों के बारे में िलखा है। काल� ने अमरीक� सरकार को अपनी �रपोटर् भी पेश क� थी िज
उन्होंने िलखा था ि2010 में सेलफोन के कारण500,000 अमरीक� मिस्तष्
कै ंसर से पीिड़त होंगे औ2014 में25% आबादी कै ंसर क� िगरफ्त में होगी। यूरोप
कई अनुसंधानकतार् भी काल� से सहमत थे।
एल. लॉयड मोरगन अमे�रका क� बायोइलेक्ट्रोमेग्नेिटक्स सोसाइटी के सेवाि
इलेक्ट्रोिनक इंिजिनयर ह1995 में इन्हें इलेक्ट्रोमेगनेिटक रेिडयेशन के कार
ट्यूमर हो गया था। इलाज पूरा होते ही िज�ासा वश इन्होंने.एम. रेिडयेशन पर
इलेिक्ट्रक पावर �रसचर् इिन्स्टट्यूट द्वारा क� गई शोध का ध्यान से अध
और जाना िक इससे मिस्तष्क कैंसर और ल्यूक�िमया का जोिखम बह�त रहता
इसके बाद इन्होंनसेलफोन के खतरों पर अनुसंधान करना ही जीवन क� ध्येय बन
िलया और न्यूरो ओंकोलोजी सोसाइट, अमे�रकन ऐके डेमी ऑफ एनवायरमेंटल
मेडीिसन और ब्रेन ट्यूमर इपीडेिमयोलोजी कन्सोिटर्यम संस्थाओं से जुड़े रह
10 | P a g e
इन्टरफोन स्टड- पूरी दाल ही काली है
इन्टरफोन स्टडी मिस्तष्क कैंसर और सेलफोन के बारे में दुिनया का सबसे बड़ा अध, िजसमें1999 से 2004 तक सेलफोन
से ब्रेन ट्यूमर के खतरों पर शोध  ह�ई है। इसमें सेलफोन कम्पिनयों3 करोड़ डॉलर से ज्यादा खचर् ह�आ है औ48 वै�ािनकों
ने 13 देशों (Australia,Canada, Denmark, Finland, France, Germany, Israel, Italy, Japan, New Zealand,
Norway, Sweden और UK) के 14,000 व्यि�यों पर शोध क� है। आँकड़े एकित्रत करने का काम2004 में पूरा हो गया था
लेिकन इसक� �रपोटर् जारी करने में जानबूझ कर देरी क� जा रही थी और यूरोप के देशों द्वारा भारी दबाव डालने पर बड़ी मुिश्
कुछ समय पहले ही 2010 में इसक� �रपोटर् जारी क� है
�रपोटर् के नतीजों में मुख्य बात यह है िक सेलफोन हमें मि
कै ंसर से बचाता है। लेिकन यह बात िकसी के भी गले नहीं उत
रही है। सेलफोन कम्पिनयों द्वारा डेनमाकर् में करवाई गई ह
इन्टरफोन स्टडी के नतीजे भी यही कह रहे थे िक सेलफोन क
प्रयोग हमें ब्रेन कैंसर से बचाता है। इनके अलावा अन्य िज
अध्ययन सेलफोन कम्पिनयों द्वारा करवाय, उन सभी के नतीजे
यही कह रहे थे िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का कोई खतरा नहीं
क्या यह मात्र संयोग ??? यिद यह सत्य है िक सेलफोन हमें ब्
कै ंसर से बचाता है तो नोिकय, मोटोरोला और ब्लेकबैरी जैसी
कम्पिनयां अपने मेनुअल में यह क्यों िलखती हैं िक सेलफो
बात करते समय उसे िसर से 2.5 सै.मी. दूर रखें।
इसिलए एल. लॉयड मोरगन ने अपने सहयोगी अनुसंधानकतार्ओं के साथ िमल कर जब इन्टरफोन स्टडी द्वारा जारी �रपोटर् क
बारीक� से अध्ययन िकया तो उन्हें लगा िक इस शोध में ज�र कोई भारी गड़बड़ है। इन्होंने अपने कुछ सहयोिगयों के साथ
पूरा अनुसंधान करके सेलफोन और मिस्तष्क कैंसर के संबन्ध में एक महत्वपूणर् प्रितवेदन जारी िकया है। इसम15 अहम
िचंताजनक पहलुओंको उजागर िकया है, िजन्हें सरक, मीिडया तथा आम जनता को समझना चािहये और समुिचत कदम उठाने
चािहये। इसमें इन्होंने दूरसंचार उद्योग और स्वतंत्रसंस्थाओं द्वारा क� गई शोध के प�रणामों क� भी व्याख्या क� है। 
मुख्य उद्देश्य पत्रकारों और सरकार को स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� गई शोध से सामने आये सेलफोन के खतरों और
के प्रा�प में स्वाथर्वश जानबूझ कर रखी गई खािमयों के बारे में आगाह, िजससे मिस्तष्क कैंसर के जोिखम का स
आंकलन नहीं हो सका।
स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� ग
दूसरी तरफ स्वतंत्र और िनष्प� संस्थाओं द्वारा िजतनी भी शोध ह�ई है सबके नतीजे कुछ और कहानी कह रहे हैं। जै
• सेलफोन का कु ल प्रयोग िजतने अिधक घन्टे िकया जाता है  कैंसर का खतरा उतना ही अिधक रहता
• सेलफोन िजतने ज्यादा वष� तक प्रयोग में िलया जाता है खतरा उतना ही ज्यादा होता
• सेलफोन से िनकलने वाले िविकरण क� मात्रा िजतनी अिधक होती है खतरा उतना ही ज्यादा होता ह
• सेलफोन का प्रयोग िजतनी कम उम्र में शु� होगा खतरा उतना ही ज्यादा होता है। जो िकशोरावस्था या उससे प
सेलफोन प्रयोग करना शु� कर देते हैं उन्हें कैंसर का420% तक बढ़ जाता है।
11 | P a g e
इन्टरफोन स्टडी के मूल प्रा�प में ही थी अनेक खा
आिखर कुछ सोच-समझ कर ही सेलफोन कम्पिनयों ने इन्टरफोन स्टडी के िलए इतनी अपा-रािश उपलब्ध करवाई थी। वे
चाहती थी िक शोध के नतीजे ऐसे हों िक उनके दाग भी धुल जायें और उनके व्यवसाय पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़े। उ
शोध का मूल प्रा�(Protocol) में जान बूझ कर बड़ी चतुराई से ऐसी खािमयां रखी िक शोध के नतीजे वैसे ही हो जैसे वे चाहते हैं
कुछ मुख्य खािमयां िनम्न है
• लॉयड मोरगन ने अपने प्रितवेदन में स्प� िलखा है िक इन्टरफोन स्टडी में िसफर् तीन तरह के ब्रेन कैंसर ऐकॉि,
ग्लायोमा और मेिनिन्जयोमा शािमल िकये गये जबिक अन्य कैंसर जैसे ब्रेन ि, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद को शोध
के दायरे से बाहर रखा गया।
• वे लोग भी अध्ययन से बाहर रखे गये जो ब्रेन कैंसर से मर गये थे या बह�त बीमार होने के कारण सा�ातकार में शािमल नह
सकते थे। बच्च, िकशोरों और बूढ़ों को इस शोध से बाहर रखा गया था जब िक इन्हें कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा रहत
• इस अध्ययन में ग्रामीण �े त्र के लोगों को भी शािमल नहीं िकया गया जबिक कमजोर िसगनल होने के कारण वहाँ
ज्यादा तेज रेिडयेशन छोड़ते हैं
• जो लोग 6 महीने या ज्यादा अविध तक स�ाह में िसफर् एक बार सेलफोन सेलफोन करते हैं उन्हे सेलफोन प्रयो�ा के
प�रभािषत िकया गया जबिक सेलफोन प्रयोग नहीं करने वाले व्यि� अनएक्सपोज्ड माने गये भले वे कोडर्लेस फोन प्
करते हो, िविदत रहे िक कोडर्लेस भी सेलफोन क� तरह ही .एम. रेिडयेशन के द्वारा  कायर् करता ह
• शोध में रेिडयेशन एक्सपोजर क� अिधकतम अवि10 वषर् रखी गई है जब िक ब्रेन कैंसर होने में अक्सर इससे भी
समय लगता है।
शोध के प्रा�प में रखी गई किमयों को पढ़ कर आप कम्पिनयों क� नीयत समझ गये आिखर मोबाइल का यह मैला व्यवयाय
आिखर चालीस खरब डॉलर (4 Trillion Dollars) का है। क्या करेगंदा है पर धंधा है ये।
सेलफोन के खतरों से बचने के उपा
यहाँ मैं आपको सेलफोन रेिडयेशन से बचने के कुछ उपाय बतलाता ह�ँ।
• जब आप सेलफोन पर बात करें तो तारयु� हैडसेट का प्रयोग करें या स-
फोन मोड पर बात करें। जहाँ संभव हो लघु संदेश सेवा( SMS) से काम चलायें।
बेतार हैडसेट जैसे ब्ल-टूथ भी खतरे से भरा है। कई अनुसंधानकतार् तो ता-यु�
हैडसेट को भी सही महीं मानते हैं। वे कहते हैं िक एयरट्यूब वाला हैडसेट प्
करे, इसमें तारयु� हैडफोन से स्टेथोस्कोप जैसी ट्यूब्स जुड़ी रहती है
रेिडयेशन का खतरा बह�त कम हो जाता है।
• जब काम में नहीं आ रहा हो तो सेलफोन को शरीर से दूर रखें जैसे शटर् क�,
पसर् में या बैल्ट में लगा कर रखें। पैंट क� जेब में कभी , शरीर का िनचले
िहस्सा ज्यादा संवेदनशील होता है।
12 | P a g e
• कार, बस, ट्र, बड़ी इमारतों या ग्रामीण �ेत्र में जहाँ िसगनल कमजोर हों सेलफोन का प्रयोग नहीं करे
प�रिस्थितयों में सेलफोन बह�त तेज रेिडयेशन छोड़ता ह
• जब भी संभव हो या आप घर पर हों तो लैंडलाइन फोन का प्रयोग करें। अपने कम्प्यूटर या लेपटॉप में इन्टरने
वाई-फाई क� जगह तारयु� ब्रॉडबैंड कनेक्शन लें। कोडर्लेस फ
प्रयोग नहीं करें।-फाई और कोडर्लेस फोन भी रेिडयो तरंगो द्वारा
काम करता है। व्यवसाय  या प्यार क� लम्बी बातें तो लैंडलाइन
पर करने का आनंद ही कुछ और है। आपको टेलीफोन पर गाया गया
“मेरे िपया गये रंगून िकया है वहाँ से टेलीफोन तुम्हारी याद सताती है
िजया में आग लगाती ह ” या िदलीप कु मार और वैजंती माला पर
िफल्माया गया लीडर िफल्म के इस मधुर गीत ”आजकल शौक-ए-
दीदार है क्या क�ँ आपसे प्यार  ” को सुनने में आज भी िकतना
आनंद आता है।
• बच्चो और िकशोरों को तिकये के नीचे या िबस्तर में सेलफोन रख कर सोने से मना करें। वनार् रात भर सेलफोन
िवद्य-प्रदूष(Electro-Polution) देता रहेगा। सेलफोन का प्रयोग गाने सुन, मूवी देखने या गेम्स खेलने के िलए नही
करना चािहये।
• 18 वषर् से छोटे लड़कों को िसफर् आपातकालीन प�रिस्थितयों में ही सेलफोन प्रयोग क
• मोबाइल में रेिडएशन रोधी कवर लगवाएं
• मोबाइल खरीदते समय इस बात का िवशेष ख्याल रखें िक  का S.A.R. (स्पेिसिफक एब्सॉप्शन ) कम हो तािक
आपका मोबाइल कम रेिडयेशन छोड़े। एस.ए.आर. एक िकलो ऊतक द्वारा अवशोिषत क� जाने वाले रेिडयन क� मात्रा ,
बशत� आप मोबाइस को रोज िसफर ्6 िमनट ही काम में लेते है भारत में ए.ए.आर. क� अिधकतम सीमा 2 वाट /िकलो
रखी गई है। अमे�रका में यह1.6 वाट/िकलो है। यिद हम 3-4 वाट/िकलो S.A.R. को भी सुरि�त मान लें तो भी हमे
मोबाइल का प्रयोग रोजान18-24 िमनट से अिधक नहीं करना चािहये। लेिकन यह बात उपभो�ा को नहीं बतलाई जात
है।
सरकार के िलए लॉयड मोरगन और सहयोिगयों द्वारा जारी िदशािन
• सेलफोन िनमार्ताओं को कड़े िनद�श देना चािहये िक वे सेलफोन में स्पी
और माइक लगायें ही नहीं और उपभो�ाओं  को एक बिढ़या और सुरि�
हैडसेट (संभवतः एयर ट्यूब वाला) दे दें। इससे सेलफोन क�मत पर भी फकर
नहीं पड़ेगा
13 | P a g e
• लोगो को सेलफोन के रेिडयेशन से बचने हेतु जाग�कता अिभयान कायर्क्रमों के िलए धन मुहैया करना चािह
• सेलफोन कम्पिनयों को सेलफोन बेचने क� अनुमित देने के पहले उपभा�ाओं क� सुर�ा हेतु बीमा करवाना और उसक
सा�य प्रस्तुत  करना  अिनवायर् होना चाि
• सेलफोन पर संवैधािनक चेतावनी िलखी होनी चािहये िक इसके प्रयोग स
ब्रेन कैंसर हो सकता ह
• रेिडयेशन मानक नये िसरे से िनधार्�रत करने चािहये।
• सेलफोन रेिडयेशन के दूरगामी खतरों पर अनुसंधान हेतु िनष्प� औ
स्वतंत्र संस्थाएं गिठत करना चािहये और पयार्� धन उपलब्ध क
चािहये।
• सरकार को िवद्युत चुम्बक�य िविकरण क� मात्रा और िस् बारे मे हर
साल प्रितवेदन जारी करना चािहये
• प्रदेश में उच्च वोल्टेज िबजली क� , सेलफोन टॉवर, टेलीफोन और
रेिडयो के एंटीना से िनकलने वाले रेिडयेशन को दशार्ने वाले नक्शे जार
करने चािहये। ।
• बच्चों को सेलफोन बेचने हेतु बने लुभावने िव�ापन तुरन्त प्रितबंिधत
चािहये।
• स्क ूल में पढ़ने वाले बच्चों को सेलफोन के खतरों से बचाने हेतु कड़ें िनद�श जारी करने चािहये िक बच्चे स्कूल मे
लेकर नहीं आय । सेलफोन, वाई-फाई, माइक्रोवेव ओवन आ के खतरों के बारे में उन्हें पढ़ाया जाना चािहये
जाग�कता हेतु स्क ूल में बेनर लगावाने  चािहये। सेलफोन टॉवर भी स्कूल से दूर लगाये जाने के िनद�श िदयें जा
• वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) को िनद�श देना चािहये िक वे इंटरसेलफोन स्टडी में रही किमयों को दूर,
एकित्रत आंकड़ों का नये िसरे से िव�ेषण करें और िनष्प� प्रितवेदन जारी
http://nehawilcom.blogspot.in/2012/01/blogpost.html?showComment=1339433566847#c1091
752892557178834
http://mtgf.blogspot.in/2010/02/biological-effects-of-electromagnetic.html
14 | P a g e
रेिडयेशन से होने वाले रोग में बह�त कारगर है अलस
2002 में ऐडीले, दि�णी आस्ट्रेिलया क� सुश्री ऐलेक्स सीले अपनी इमारत क� छत पर अक्स
करती थी जहाँ मोबाइल क� टावर लगी ह�ई थी। बस वहीं वह रेिडयेशन क� चपेट में  आ गई। इससे उस
हमेशा िसर में ददर् और जलन रहने लगा। उसे ऐसा लगता था जैस िकसी ने उसके िसर में िकसी ने जलती
ह�ई वेिल्डंग क� रोडघुसा दी हो। यिद वह दो िमनट भी मोबाइल पर बात करती या माइक्रोवेव ऑवन  के पा
जाती तो तकलीफ और बढ़ जाती थी। आस्ट्रेिलया के डाक्टर उसका उपचार नहीं कर पा रहे थे। लगत
उनके पास इस रोग का कोई उपचार था ही नहीं। िफर िकसी ने उसे बतलाया क� अलसी के तेल का प्रय
करने से उनके ठीक हो सकती है। अलसी के तेल को शु� के दो स�ाह में तो उसक� तकलीफ बढ़ी लेिकन
िफर धीरे – धीरे आराम आने लगा। साथ में उसने ऐलोवेरा ज्यूस भी लेना शु� कर िदया था। यह प्रिति
स्वयं ऐलेक्(सेंड़) ने यूट्यूब पर मेरे वीिडयो पर दी है, िजसक� िलंक है।
।
http://www.youtube.com/watch?v=4uDd_dh90tA&feature=g-all-u ऐसी चमत्कारी है
अलसी मां।

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Cell phones and brain cancer

  • 1. 1 | P a g e सेलफोन – फ् रैंडली िपजन या ब्र डॉ. ओ.पी.वमार अध्य, अलसी चेतना यात् 7-बी-43, महावीर नगर तृतीय कोटा राज. http://flaxindia.blogspot.com +919460816360 आज सेलफोन हमारे दैिनक जीवन का एक अिभन्न अंग बन चुका है। िबना सेलफोन क आजकल जीवन क� कल्पना करना भी मुिश्कललगता है। िजधर देखो उधर आपको लोग हाथ में सेलफोन थामें िदखाई दे, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में श्री कृष्ण अंगुली में सुदशर्न चक्र धारण करके घूमा करते थे। देखते ही देखते िप15 वष� में सेलफोन के जाल ने पूरे िव� को जकड़ िलया है। िकशोर लड़के और लड़िकयाँ तो सेलफोन के इतने दीवाने हो चुके है, सुबह से लेकर रात तक सेलफोन से ही िचपके रहते है। भारत में सेलफोन क� क्रांित लाने में अंबानी बंध का भी बह�त बड़ा हाथ है। "कर लो दुिनया मुट्ठी " के नारे का सहारा लेकर इन्होंने खूब मोबाइल �पी मौत का कारोबार िकया। लोग तो दुिनया को शायद अपनी मुट्ठी में नहीं कर सके लेिकन अ बन्धु ज�र टाट, िबरला आिद सभी अमीरों को पीछे छोड़ कर भारत के सबसे अमीर आदमी बन गये बाजार में शौक�न लोगों के िलए कई कम्पिनयाँ ह-जवाहरात जड़े िनत नये मंहगे और नायाब सेलफोन भी बेचने मेंलगी हैं।2009 में स्टुअटर् �ूजेस कम्पनी ने दुिनया का सब मंहगा गोल्डस्ट्राइकर आईफोन बाजार में उतारा था। इस फोन को बनान271 ग्राम सोन और 200 हीरे काम में िलए गय है। 53 खूबसूरत रत्नों से ऐपका लोगो बनाया है और होम बटन पर 7.1 के रेट का बड़ा हीरा जड़ा गया है। इसक� क�मत 3.2 िमिलयन डॉलर (लगभग 15 करोड़ �पये) रखी गई है। लेिकन इतना मंहगा होने पर भी यह है तो मौत का ही सामान। आज पूरे िव� में5.6 िबिलयन सेलफोन उपभो�ा हैं। भारत िव� में दूसरे नम्बर पर आता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार आज हम यहाँ 881,400,578 सेलफोन उपभो�ा हैं। यािन हमारे73.27% लोग सेलफोन रखते हैं। एक अनुमान के अनुसार2013 तक यह संख्या एक अरब से अिधक हो जायेगी। लेिकन मुद्दे क� बात यह है ि सरकारी संस्थाओं नें िबना सो-समझे िनमार्ताओंको सेलफोन बेचने क� स्वीकृित दे दी, यह नहीं सोचा िक इससे िनकलने वाली इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगे हमारे स्वास्थ्य के ि खतरा तो नहीं बन जायेंगी। अफसोस इस बात का है िक इसक� सुर�ा को लेकर कोई शोध ही नहीं गई और हर आदमी को यह खतरे का झुनझुना पकड़ा िदया। चिलये आज हम सं�ेप में सेलफोन के खतरों से �ब होते है और उनसे बचने के तरीकों पर भी स्प� और िनष्प� चचाकरते हैं (मेघदूत जन जमदूत)
  • 2. 2 | P a g e इितहास चल दूरभाष यािन तारयु� टेलीफोन पहले हम फोन और सेलफोन के इितहास क� जानकारी हािसल करते है। सचमुच सन् 1876 िव� के इितहास में बह�त अहम थ , क्योंिक इसी वष एिडनबगर, स्कॉटलै, िब्रटेन के एलेक्जेंडर ग्राह (3 माचर, 1847 – 2 अगस्, 1922) ने टेलीफोन का आिवष्कार िकया था। यह एक महान आिवष्कार थ उनके इस क्रांितकारी आिवष्कार ने पूरे िव� को समेट कर वैि�क गांव बना िदया था। इसके एक साल बाद ही सन् 1877 में उन्होंने बेल टेलीफोन कम्पनी बना ल । इसी वषर् उन्होंने मबेल गािडर हबडर् से िववाह रचाया और एक साल क� लम्बी हनीमू मनाने के िलए यूरोप क� यात्रा पिनकल पड़े। कालान्तर मेउनके दो पुित्रयां एल्सी और मै�रएन पैदा ह�ई। 28 जनवरी, 1882 का िदन भारत के इितहास में रेड लेटर डे के नाम से अंिकत ह, क्यों इस िदन भारत में पहली बार टेलीफोन सेवाएं जो शु� ह�ई थी। कलक�ा, मद्रास और बम्बई में टेलीफोन एक्सचेंज बनाये ग93 उपभो�ाओंको टेलीफोन कनेक्शन िदये गये थे। अचल दूरभाष यािन सेलफोन लगभग आधी सदी तक िजन तारों ने हमारे टेलीफोन्स ही नहीं बिल्क हम िदलों को भी जोड़ कर रखा थ, उन्हें मािटर्न कू(जन् - 26 िदसंबर, 1928 िशकागो, इिलनोइस, अमरीका ) ने सन् 1973 में कुतर डाला और इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगो पर आधा�रत दूरसंचार क� नई टेक्नोलोजी िवक क�। इस तरह उन्हों सेलफोन का आिवष्कार िकया था। तब ये मोटोरोला कम्पनी के उपाध्य� थे। बाद में इन्होंने ऐरे कोम नामक कम्पनी बनाई। मोबाइल फोन का िपता भी कहा जाता है। एक दशक के बाद 1983 में जाकर मोटोरोला कम्पनी ने अमे�रका में पहली बार सेलफोन सेवाएं शु� क� थी लेिकन भारत में पहली मोबाइल फोन सेवाएं पि�मी बंगाल में मोदी टेलस्ट्रा मोबाइलनेट कम्प31 जुलाई, 1995 के शु� क� और इसका िविधवत उद्टन यहाँ के मुख्य मंत्री ने िकया था सेलफोन के खतरे सेलफोन या मोबाइल फोन एक माइक्रोवेव ट्रांसमीटर है। माइक्रोवेव तरंगें रेिडयो वेव य-चुम्बक�य तरंगे होती ह, जो प्रका क� गित (186 ,282 मील प्रित सैकण्ड) से चलती है। CDMA सेलफोन 869–894, GSM900 सेलफोन 935–960, GSM1800 सेलफोन 1810–1880 और 3G सेलफोन 2110–2170 मेगाहट्र्स आवृि� पर काम करते हैं इन तरंगों क� आवृि� (Frequency) सामान्यतः1900 Mega Hertz (MHz) होती है अथार्त य एक सैकण्ड में लाखो करोड़ों बार कंपन्न करती सेलफोन हमारी आवाज क� तरंगों के छोट-छोटे पुिलंदे ( Packets) बना कर रेिडयो तरंगों पर लाद कर एक स्थान से दूसरे स्थ तक भेजता है, यािन रेिडयो तरंगें वाहन के �प में कायर् करती ह आधुिनक युग में टेलीिवज , इंटरनेट, सेलफोन या टेलीफोन संदेशों के प्रस में माइक्रोवेव तरंगों क� मदद ली जाती सेल्यूलर बायोकेिमस्ट्री के जरनल के अनुसार ये तरंगे हमार.एन.ए.
  • 3. 3 | P a g e तथा उसका जीण�द्धार करने वाले तंत्र को �ितग्रस्त करती हैं के पेसमेकर क� कायर्प्रणाली को बािधत कर सकती हैं। माइक्रोव कु प्रभाव से हमारी कोिशकाएं जल्दी जीणर्ता को प्रा� होती है। वाि िव�िवद्यालय के प्रध्या. हेनरी लाइ ने स्प� कहा है िक माइक्रोव तरंगे अमे�रकन सरकार द्वारा तय मानक के काफ� कम मात्रा मे मिस्तष्क को �ित पह�ँचाती हैं दशकों पहले कई वै�ािनकों ने बतला िदया था िक माइक्रोवेव से क होने क� संभावना रहती है। शायद आपको याद होगा िक शीत युद्ध क समय �स ने मास्को िस्थत अमे�रकन दूतावास में गु� �प से माइक्र ट्रांसमीटर लगा िदया , िजससे अमेरीका के दो राजदूत ल्यूक�िमया के िशकार बने और कई अन्य कमर्चारी भी कैंसर से पी ह�ए। सामान्य िवकार शरीर के पास मोबाइल रखने से िविकरण के ऊष्मी प्रभाव हो सकते हैऊष्मा के कारण आं, मिस्तष, �दय, उदर आिद अंगों के आसपास का द्रव सूखने लगता है। मोबाइल से िनकलने वाली रेिडयो तरंगो से िनम्न सामान्य िवकार हो सकते • इसके कुछ अन्य गैर ऊष्मीय प्रभाव जैसे िसर क� त्वचा प , लािलमा, खाज-खुजली, फुं िसयां, त्वचा में अबु, िसहरन या चक�े बन जाना प्रमुख है • साथ ही थकान, अिनद्, चक्कर आन, कानों मेआवाज आना या घंिटयां बजना, प्रितिक्रया देने में व�, एकाग्रत में कम, स्मृि-ह्र, िसरददर, सूंघने क� शि� कम होना, भूख न लगना, उबकाई, पाचन तंत्र में गड़, िदल क� धड़कन बढ़ना, जोड़ों में द, मांस-पेिशयों में जकड़न और हाथ पैर मकं पकं पी इत्यािदल�ण हो सकते हैं। • कुछ को स्नायु िवकार जैसे िसर में गुंजन हो, बैचेनी, घबराहट, अपस्मा, लकवा, स्ट्, मनोिवकृ ित आिद ल�ण हो सकते हैं। • �ेत र�-कणों क� संख् और कायर्�मता कम हो जाती है। मास्ट कोिशकाएँ ज्यादा िहस्टेमीन बनाने लगती हैं ि �ासक� या अस्थमा हो जाता है। • वै�ािनक कहते हैं िक सेलफोन गभर्वती ि�यों के पेट में पल रहे भ्रूण को नुकसान पह�ँचा स, इसिलए वे सावधान रहें और सेलफोन का प्रयोग नहीं कर • आँखों में मोितयािब, आँखों में कैंसर और -पटल �ितग्रस्त होता ह कणर्�वेड या �रंग्जाइट(Tinnitus or “Ringxiety”) - कई सेलफोन उपभो�ा को फोन क� घंटी सुनाई देती है भले फोन बजा ही नहीं हो। िदन रात सेलफोन प्रयोग करने वालों में बड़ा सामान्य िवकार है। इसे िटनाइटस या �रंग्जाइटी कहा जाता है। क-कभी तो यह िवकार इतना बढ़ जाता है िक रोगी का
  • 4. 4 | P a g e सुनना, काम करना या सोना भी मुिश्कल हो जाता है। आगे चल कर आंत�रक कणर् क� नाजुक िक-प्रणाली बािधत होने लगती ह और स्थाई बहरापन भी हो सकता है मिस्तष्क और कैं सेलफोन खोपड़ी क� नािड़यों को �ित पह�ँचाते हैं रेिडयो तरंगे मिस्तष्क को र� पह�ँचाने वाले -मागर् क� बाधाये (Blood Brain Barrier) खोल देती हैं िजससे िवषाण, ऐल्ब्युिमऔर दूिषत तत्व मिस्तष्क में घुस जाते हैं। सेलफोन से िनकलने व.एम. तरंगे मेलाटोिनन का स्तर भी कम करता है। मेलाटोिनन एक शि�शाली एंटीऑक्सीडे, एंटीिडप्रेसेन्ट तथा र�ाप्रणाली संवधर्क हमारे शरीर क� जीवन-घड़ी ( Circadian Rhythm) को भी िनयंित्रत करता है यह हमे एल्झाइम, पािक� सन्स रोग और कैंसर स बचाता है। इसका स्तर कम होने से कैं, कई िनद्-िवकार, गभर्पा, थकावट, आथ्रार्इ, डी.एन.ए. क� िवकृ ित, आँखों में तन और अवसाद होने का जोिखम बढ़ जाता है। इसक� कमी से वृक्, �दय, प्रजनन या स्नायु तंत्र सम्बन्धी रोग भी हो स डॉ. कोल� के अनुसार जीिवत ऊतक को रेिडयो या िवद्य-चुम्बक�य तरंगों से इतना खतरा नहीं हैं। असली दुष्मन तो ध्विन या से बनी िद्वतीयक तरंगे , िजनक� आवृि� Hertz में होती है और िजसे हमारी कोिशकायें पहचानने में स होती हैं। हमारे ऊतक इन तरंगों को आतंकवादी हमले के �प में लेते हैं और सुर�ा हेतु समुिचत जीवरसायिनक कदम उठाते हैं। जैसे कोिशकायें को चयापचय के िलए खचर् न करके सुर�ा पर खचर् करने लगती हैं। िभि�यां कड़ी हो जाती, िजससे पोषक तत्व कोिशका के बाहर ही और अपिश� उत्पाद अंदर ही बने रहते हैं। िजससे कोिशका में -कण बनने लगते हैं और ड.एन.ए. का जीण�द्ध-तंत्र तथ कोिशक�य िक्रयाएं बािधत होने लगती हैं। फलस्व�प कोिशकाएं मरना शु� हो जात, टूटे ह�ए डी.एन.ए. से माइक्रोन्यूिक्ल (Micronuclei ) बाहर िनकल जाते हैं और उन्मु� होकर िवभािजत और नई कोिशकाएं बनाने लगते हैं। कोल� इसी प्रिक् कै ंसर का कारक मानते हैं। साथ ही कोिशकाओं में प्रभी �ितग्रस्त हो जाता िजससे अन्तरकोिशक�य संवादऔर संके तन प्रणालबंद हो जाता है, फलस्व�प शरीर के कई कायर् बािधत हो जाते हैं मिस्तष्क में कई तरह के कैंसर जैसे ऐकॉिस्टक न्, ग्लायोम, मेिननिजयोमा, ब्रेन िलम्फ, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद बड़े खत नाक माने जाते हैं। 1975 के बाद अमे�रका में मिस्तष्क के कैंसर क� दर25 % का इजाफा ह�आ है। अमे�रका में सन्2001 में185,000 लोगों को िकसी न िकसी तरह का मिस्तष्क कैंसर ह�आ। मिस्तष्क में अंगूर के दाने बराबर कैंसर क� गाँठ म महीने में बढ़ कर टेिनस क� गैंद के बराबर हो जाती है। मिस्तष्क कैंसर सामा बह�त घातक होता है, तेजी से बढ़ता है और रोगी क� 6-12 महीने में मृत्यु हो जात है। अग्न्या, थायरॉयड, अण्डाशय और वृषण(Testes) आिद ग्रंिथयों संबन्धी िवकार हो जाते हैं। पैंट क� जेब में मोबाइल रखने से शुक संख्य और गितशीलता 30 % तक कम हो जाती है, शुक्रा भी �ितग्रस्त हो लगते है और सेलफोन प्रयो�स्थाई पचअसकता को प्रा� हो जाता है।
  • 5. 5 | P a g e बच्चे और िकशोर ज्यादा संवेदनशील बच्चों और िकशोरों के िलए सेलफोन का प्रयोग बेहद खतरनाक हो सकता है। कुछ यूरोप के देशों ने अिभभावकों को कड़े जारी िदये हैं िक वे अपने बच्चो को सेलफोन से दूर रखें। यूटा िव�िवद्यालय के अनुसंधानकतार् मानते हैं िक बच्चा िजत होगा, वह उतना ही ज्यादा िविकरण का अवशोषण करेगा, क्योंिक उनक� खोपड़ी क� हड्िडयां पतली होती , मिस्तष्क छो, कोमल तथा िवकासशील होता हैं और माइिलन खोल बन रहा होता है। स्पेन के अनुसंधानकतार् बतलाते हैं िक सेलफोन बच्च मिस्तष्क क� िवद्युत गितिविध को कुप्रभािवत क, िजससे उनमें मनोदशा( Mood) तथा व्यवहा संबन्धी िवकार होते ह, िचढ़िचढ़ापन आता है और स्मरणशि� का ह्रास होता ह कार में खतरा ज्यादा बंद कार मेंटॉवर से पयार्� िसगनल न िमलने के कारणसेलफोन को टावर से समुिचत संपकर ् बनाये रखने के िलए सेलफोन को बह�त तेज रेिडयो तरंगे छोड़नी पड़ती है। इसिलए कार में माइक्रोवेव रेिडयेशन क� मात्रा बह�त ज्यादा बढ़ जाती है। इसीिलए यूर मशह�र और िजम्मेदार कार िनमार्ता वोल्कसवेगन अपने खरीदारों को स्प� िनद�श देता है िक कार में सेलफोन का प्रयोग बह सािबत हो सकता है क्योंिक सेलफोन कार में बेहद खतरनाक मात्रा में इलेक्ट्रोमेगनेिटक रेिडयेशन िनका रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे बुरी तरह प्रभाि रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे भी बच नहीं सके हैं। सेल टॉवर के आसपास क� गाय और भैंसें कम दूध द लगी हैं। बक�रया, कु �े, िबिल्लया, खरगोश आिद भी प्रभािवत ह�ए हैं। इन जानवरों में गभर्पात और अन्य रोग बढ़ रहे हैं। स के आसपास के इलाकों में ितत, मधुमक्ख, कबूतर, हंस, सारस, गौरैया आिद का िदखना बन्द सा हो गया है। भारत में .एम. रेिडयेशन क� िस्थित िचंताजनक भारत क� िस्थितबह�त गंभीर है। जयपुर को ही लीिजये, यहाँ आिदनाथ मागर् िनवासी जैम पैलेस के संचालक दो भाइयों को तीन मा के अंतराल में ही ब्रेन कैंसर हो गया। बड़े 55 वष�य संजय कासलीवाल लाखों �पए खचर् कर आठ माह बाद अमे�रका से लौट ही थे िक इसी बीच उनके 52 वष�य छोटे भाई प्रमोद कासलीवाल को ब्रेन कैंसर होने का पता चला। तीन महीने पहले उनके प कु �े के पेट में कैंसर क� गांठ हो गई थी। इसका कारण मोबाइल फोन का प्रयोग और इलाके में लगी तीन सेलफोन टावर थ भारी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेिटक तरंगे चौबीसउगल रही हैं प्रोफेसर िगरीश कुम, िवद्युत अिभयांित्रक� ि, आई.आई.टी. पवई, मुम्ब सेलफोन टावसर् के खतरों पर भारत के महान अनुसंधानकत प्रोफेसर िगरीश कुम, िवद्युत अिभयांित्रक� ि, आई.आई.टी. पवई, मुम्बई तीन दशकों से एंटीना के �ेत्र में शोध कर रह इन्हों "ब्रॉडबैंड माइक्रोिचप एं" नामक पुस्तक िलखी है और150 शोधपत्र िविभन्न राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय प्रकािशत िकये हैं। इन्ह1000 तरह के एंटीना िवकिसत िकये हैं। ये सेलफोन और सेलफोन टॉवसर् के खतरों पर भी दस वषर् शोध कर रहे हैं। इन्हों27 माचर् को िदल्ली में सेलफोल और टॉवसर् के खतरों क� समी�ा हेतु आयोिजत एक गोल मेज सम्मेलन
  • 6. 6 | P a g e अपना एक प्रितवेददूरसंचार मंत्री श्री किपल िसब्बल का प्रस्तुत िकया ह ASSOCHAM के अिधकारी भी उपिस्थत थे। अब देखना है िक सरकार क्या कदम उठाती है। इस प्रितवेदन को बनाने इनक� अपनी पुत्री नेहा कुमार ने भी मदद क� है इन्होंन अन्ना युनीविसर्टी से इंडिस्टबायॉटेक्नोलोज मेंबी.टेक.िकया है और ये माबाइल टावर रेिडयेशन के बायोलोजीकल इफे क्ट्स पर शोध कर रही हैं। ये नेसा रिडयेशन सोल्यूशन्स क� िनद�शक ह प्रोफेसर . कु मार ने बताया िक भारत में टेलीकोम कम्पिनयां प्रित के�20 वाट रेिडयेशन छोड़ती हैं। एक ऑपरेटर को कई के�रयर िफ्रक्वे (2 to 6) आवंिटत क� जाती हैं और पैसे बचाने के िलए एक ही छत या टॉवर पर3-4 ऑपरेटसर् अपने एन्टीना लगा लेते हैं। इस तरह सारे एंटीना िमला 100 से 400 वाट तक रेिडयेशन छोड़ते है, जो बह�त ज्यादा है। जबिक घने �रहायशी इलाकों में ऑपरेटर क2 वाट से अिधक रेिडयेशन नहीं छोड़ना चािहये। इसके अलावा ये डायरेक्शनल एंटीना भी प्रयोग करते, िजनका गेन भी 17 dB तक बढ़ा देते है। प्रोफेसर .कु मार आइ.सी.एन.आई.आर.पी. के मौजूदा मानकों (जी.एस.एम. 1800 के िलए 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर्) से सहमत नहीं हैं। बायो इिनिशयेिटव �रपोटर् और उनक� शोध के अनुसार रेिडयेशन घन 0.0001 वाट प्रित वगर् मीटर से अिधक नहीं होना चािहये क्योंिक सेल 24 घंटे रेिडयेशन छोड़ते हैं और इनके समीप रहने वाले लोग आजीवन इस रेिडयेशन को झेलते हैं। इस तरह आ.सी.एन.आई.आर.पी. के मानकों का 1/10th और 1/100th िहस्सा अथार्त .एस.एम. 1800 के िलए 9.2 और 0.92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर् मीटर भी बह�त अिधक है। उन्हें खेद है िक ज.एच.ओ. ने 31 माचर, 2011 में माबाइल फोन को कै ंसर का कारक मान िलया ह, लेिकन सेल टॉवसर् को छोड़ िदया है जब िक यह तो24 घंटे खतरनाक रेिडयेशन उगलता रहता है। प्. जी. कु मार ने कहा है िक भारत में5 लाख सेलफोन टॉवसर् हैं िजनमें 2 लाख घने �रहायशी इलाकों में लगी हैं। ये भारी मात्र सातों िदन और चौबीसों घंटे खतरनाक.एम. रेिडयेशन उगलती रहती हैं। इनके िनकट रहने वाले लोग लगातार .एम. रेिडयेशन सोख रहे हैं और इनको कैंसर तथा कई अन्य रोगों का जोिखम बना ह�आ यिद ऑपटर्सर् कम शि� के एंटीना या ट्रांसमीटर लगाये तो बह�त अ सेलफोन टावसर् लगाने होंगे एक टॉवर का खचार्15 लाख �पये आता है। यिद 5 लाख नये टॉवर लगाने पड़ें तो75,000 करोड़ �पये अित�र� खचर् होंगे। यह खचार् बचाने के िलए ऑपरेटसर् सरकार के कड़े मापदण्ड तय करने का िवर करते हैं। इन्होंने बतलाया है िक मुम्बई के आवासीय इलाकों में सेलफोन टॉवस िनकलने वाला ई.एम.रेिडयेशन सुरि�त सीमा से बह�त ज्याद है। ई.एम.रेिडयेशन क� मात्र100 माइक्रव्हाट प्रित वगर्मीटर से ज्यादा नहीं होन , जबिक कई जगह यह 1000 माइक्रव्हाट से भी ज्यादा है और लोगों के स्वास्थ्य बह�त बड़ा खतरा बना ह�आ है। इन इलाकों में लोगों को िचढ़िचढ़ , थकावट, िसरददर, उबकाई, बेचैनी, िनद्-िवकार, �ि�-दोष, एकाग्रता में , अवसाद, स्मृि-ह्र, चक्क, नपुंसकता, कामेच्छा में क, िशशु में पैदायशी दो आिद तकलीफे ं हो रही हैं। ि�यों को तकलीफ दा होती है। प्रोफेसर िगरी
  • 7. 7 | P a g e इसे "धीमा और अ�श्य काित" क� सं�ा देते हैं मुम्बई में जसलोक हॉस्पीटल के पास पेडर रोड पर िस्थत ऊषा िकरण इमारत क� पांच से दसवीं मंिजल में हाल ही छः लो कै ंसर ह�आ ह, क्योंिक इस इमारत के ठीक सामने िवजय अपाटर्मेंट क�(जो इन मंिजलों के ठीक सामने पड़ती ह) पर कई कम्पिनयों के सेलफोन एंटीना लगे है प्. कु मार ने बतलाया है िक हमारे यहां कं पिनयों के दबाव में रेिडएशन मानक �स 460 गुना और आिस्ट्रया 10 लाख गुना ज्यादा रखा है।यह कािबले गौर है िक दुिनया में सबसे खराब मानक हमारे देश ने तय कर रखे हैं। जबिक अन्य देशों के मानक हम यहाँ से बह�त ही कम हैं। �, इटली और पोलेंड आिद देशों के मान0.1 वाट प्रित वगर् मीटर है। िस्वटजरलैंड के कई संवेद इलाकों में रेिडयेशन मान0.042 और 0.095 वाट प्रित वगर् मीटर हैं। भ सरकार ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर नॉन- आयोनाइिजंग रेिडएशन प्रोटेक्शन के मानकों को अपने िहसाब से-मरोड़कर रेिडएशन मानक 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वग. कर रखे है। ऐसे में दूर संचार िवभाग क� मोबाइल कंपिनयों पर मेहरबानी पर सवाल उठने लगे हैं िक इस नीित के पीछे भी 2-जी स्पेक्ट्रम जैसी कोई सािजश तो नहीं िछ? डॉ. जी. कु मार कहते हैं िक सेलफोन उद्योग उन्नीसवीं सदी में शु� ह�ए िसगरेट उद्योग का इितहास दोहरा रहा है। पूरी एक िसगरेट िनमार्ता िचल्-िचल्ला कर दलील देते रहे िक िसगरेट मानव के िलए नुकसान दायक नहीं , लेिकन आप जानते हैं िक आज िसगरेट के कारण लाखों करोड़ों लोग मर रहे हैं। सेलफोन उद्योग आज येन केन प्रकारेन सेलफोन को मानव िहतैषी करने में जुटा है। हमें सेलफोन त्रासदी से हर हाल में बचना सेलफोन टॉवसर् के रेिडयेशन को कम करने हेतु प्रोफेसर. कु मार के सुझाव • सेलफोन ऑपरेटसर के िलए सरकार को मानव जाित, प�रन्द, जानवर और पेड़-पौधों क� सुर�ा को प्राथिमकता देते ह नये कठोर मानक तथा िनयम बनाने होंगे और उनक� गितिविधयों पर नजर भी रखनी होगी • ऑपरेटसर को प्रित के�रयर रेिडयेशन क� मात(खास तौर पर घनी आबादी वाले इलाकों म) मौजूदा 20 वाट प्रित के�रय से घटा कर 1 या 2 वाट करनी चािहये। यह करना उनके िलए किठन काम नहीं है। इसके िलए िसफर् उन्हें प एिम्प्लफायर हटाना पड़ेगा या उसका गेन कम करना पड़ेगा। इसके उन्हें कुछ फायदे भी होगे जैसे एिम्प्लफायर का करने के िलए एयर कं डीशनर लगाने क� ज�रत नहीं होगी और पावर क� खपत कम होने के कारण डीज़ल क� जगह सौर ऊजार् से चलने वाले जनरेटर से काम चल सकता है। यह ह�रत टेलीकॉम पयार्वरण क� �ि� से भी यह उिचत रहेगा लेिकन इससे एक नुकसान यह होगा िक टॉवर से दूर रहने वाले उपभो�ाओंको िसगनल कमजोर िमलेगा और ऑपरेटसर् को ज्यादा टावसर् /या �रपीटसर् लगाने पड़ें, िजससे िलए उन्हें अिधक धनरािश भी खचर् करनी पड़ेग • आवासीय इलाको, स्क ू, ऑिफस, अस्पताल आिद जगहों पर स-समय पर रेिडयेशन क� मात्रा को नापा जान चािहये। यिद िफर भी रेिडयेशन अिधक है तो सेल टॉवर को अन्य जगह लगाया जाना चािहये। • सेलफोन टॉवसर् के अलावा मोबाइल फो, कोडर्लेस फो, कम्प्यू, टी.वी.टॉवर, एफ.एम.टॉवर, माइक्रोवेव ऑवन आि भी बड़ी मात्रा में रेिडयेशन छोड़ते हैं और हमें सबके घातक प�रणाम भुगतने पड़ते • अब समय आ गया है जब सेलफोन कम्पिनयों को पुराना रवैया छोड़ कर खुल कर स्वीकार कर लेना चािहये िक सेलफ रेिडयेशन मानव समेत समस्त प्र, वनस्पित जगत और पयार्वरण के िलए बह�त बड़ा खतरा है। तभी हम िमल कर इसस बचने के तरीके ढ़�ँढ़ पायेंगे।
  • 8. 8 | P a g e डॉ. काल� महान अनुसंधानकतार डॉ. जॉजर् काल� पीए.डी., एम.एस., जे.डी. वै�ािनक, सलाहकार, अिभव�ा, अनुसंधान और िवकास िनद�शक, संस्थाप, साइंस एण्ड पिब्लक पॉिलसी इंिस्टट् पूवर् अध्, सेल्यूलर टेलीफोन इंडस्ट्री ऐसोिसय(CTIA) अध्य, वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) टी.वी. कायर्क्- सी.बी.एस. न्यू, सी.एन.एन., फोक्स न्य, वल्डर् न्यूज टून, एम.एस.एन.बी.सी. 1992 में फ्लो�रडा के उद्योगपित डेिवड रेनाडर33 वष�य पित्न सुज़ान ऐलेन क� एस्ट्रोसाइटोमा नामक मिस्तष्क कैंसर से मृत्यु हो गई थी और उन्होंने सेलफोन एन.ई.सी. और जी.टी.ए. मोबाइलनेट के िव�द्ध अदालत में दावा ठोक िदया थ21 जनवरी, 1993 को डेिवड ने लैरी िकं ग लाइव शो नामक टी.वी. कायर्क्रम में सेल कम्पनी को जम कर कोसा और लोगों को सुजान के एक्सरे िदखाये िजसमें कान पास कै ंसर क� गांठ साफ िदखाई दे रही थ, जहाँ फोन लगा कर सुजान रोजाना घन्टो बात िकया करती थी। दूसरे िदन इस के स को लेकर मीिडया में काफ� हल्ला ह�आ औ सेलफोन कम्पिनयों के शेयरों में भारी िगरभी देखी गई। बेहताश सेल्यूलर टेलीफोन इंडस्ट्री ऐसोिसये( CTIA) ने आनन-फानन में अपने बचाव हेतु झूंठा बयान जारी कर िदया िक सेलफोन के खतरों पर काफ� शोध ह�ई है और सेलफोन पूरी तरह सुरि�त माने गये हैं तभी सरकार ने सेल फो को मंजूरी दी है। उस समय अमे�रका में सेलफोन के डेढ़ करोड़ उपभो�ा थे और मीिडया शोध क� �रपोटर् सावर्िजक करने क मांग उठा रहा था, लेिकन वास्तिवकता यह थी िक कोई शोध ह�ई ही नहीं थी। आिखरकार मीिडया के भारी दबाव के कारण सी.टी.आई.ए. (CTIA) को सेलफोन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों और उनसे बचने के उपायों को खोजने हेतु वाय टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) गिठत करना पड़ा और इसके िलए सेलफोन कम्पिनयों न2.85 करोड़ डॉलर क� धनरािश देने क� बात कही। बह�चिचर्त ड. जॉजर् काल� को इस प�रयोजना का अध्य� बनाया गया डॉ. काल� स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� जा रही शोध पर भी नजर बनाये ह�ए थे। शु� में तो-ठाक रहा लेिकन जब उन्हें ऐस संके त िमले िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का खतरा बह�त है तो उन्होंने कई सेलफोन कम्पिनयों को पत्र िलखे और , लेिकन कम्पिनयां ये सब बातें दबा देना चाहती थी। कोई उनके सुझावों को मानना ही नहीं चाहता था इस कारण कम्पिनयों स उनके �रश्ते भी खराब होने लगे। एक बार सेलफोन कम्पिनयों ने उन्हे कई महीनों तक पैसा ही नहीं िदया और उलटा उन्हे करना शु� कर िदया िक उनके मन में कुछ पाप है तथा वे शोध को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। इस तरह कई पंगे ह�ए और उनके िखल कई षड़यंत्र रचे गये। आिखरकार फरवर1999 में काल� FDA और CTIA के अिधका�रयों से िमल, उन्हे CTIA द्वारा क� ग
  • 9. 9 | P a g e िनष्प� शोध के बारे में बतलाया औCTIA के वािषर्क सम्मेलन में सेलफोन से होने वाले मिस्तष्क कैंसर और अन्य खतरों में अपना प्रितवेदन पढ़ कर सबकों चौंका िदया। काल� ने िनम्न िबन्दुओं पर सबका ध्यान आकिषर् • सेलफोन को कान से लगा कर बात करने वालों में मिस्तष्क कैंसर के कारण मृत्युदर उन प्रयो�ाओं से अिधक पाई ग सेलफोन को िसर से दूर रख कर बात करते थे यािन हेडसेट या स्पीकर फोन से बात करते थे। • सेलफोन के एंटीना के चारों ओर7-8 इंच के दायरे में तीव्र िवद्युत चुम्बक�य तरंगें कोमल और संवेदनशील मिस टॉिक्स, मु� कण, घातक रसायन, जीवाणु, िवषाणु आिद क� घुसपेठ को रोकने के िलए बने चुंगी नाके ( Blood Brain Barrier) को खोल देती है, और टॉिक्सन और घातक मु-कण (Free Radicals) मिस्तष्क में प्रवेश करने लगत • 6 वषर् या ज्यादा समय तक सेलफोन का उपभोग करने वाले व्यि�यों में एकॉिस्टक न्(श्रवण नाड़ी क� गा) का जोिखम 50% से अिधक पाया गया है। • सेलफोन प्रयो�ाओं में मिस्तष्क के बाहरी िहस्से में दुलर्भ न्यूरोइपीथीिलयोमा ट्यूमर 50% अिधक पाया गया है। डॉ. कोल� ने इस बात जोर देकर कहा िक सेलफोन कम्पिनयों ने आरंभ से ही उपभो�ाओं क� सुर�ा के िलए समुिचत कदम नह उठाये है। कोल� ने बतलाया िक कम्पिनयों को सेलफोन के संभािवत खतरों के बारे में-बार आगाह करने पर भी वे उन्हें अनदेख करती रही, राजनीित करती रही, लोगों के गुमराह करती रह, झूंटे दावे करती रही िक सेलफोन बच्चों समेत सभी उपभो�ाओं क िलए पूणर्तया सुरि�त है और यह कहते रहे िक िफर भी लोगों क� सुर�ा हेतु वे अनुसंधान जारी रखेंगे काल� ने मानवता के िलए अपना फजर् पूरा करते ह�ए िनभ�कतापूवर्क सच्चाई दुिनया के सामने , लेिकन इसके बदले में सेलफोन कम्पिनयोद्वा उन्हें धमकाया ग, उन पर गुंडों द्वारा हमला करव, उन्हें बदनाम िकया गया और रहस्यमय ढंग से उनका घर फायर-िब्रगेड द्वारा जला कर खाक कर िदया गया। ये घटनाएं उस देश में घटी जो खुद को दुिनया का सबसे बड़ा लोकता देश बतलाता है और अपने माथे पर स्टेचू ऑफ िलबट� का टेटू िचपकाकर घूमता है। मुझ पर िव�ास न हो तो गूगल के गिलयारों मे झांक लीिजये आपको सारे सा�य िमल जायेंगे। इसके बाद कोल� ने “सेलफोन् इनिविजबल हेजाड्र्स ऑफ द वायरलेस ऐ ” नामक पुस्तक प्रकािशत, िजसमें उन्होंने अप कटु अनुभवों और सेलफोन के खतरों के बारे में िलखा है। काल� ने अमरीक� सरकार को अपनी �रपोटर् भी पेश क� थी िज उन्होंने िलखा था ि2010 में सेलफोन के कारण500,000 अमरीक� मिस्तष् कै ंसर से पीिड़त होंगे औ2014 में25% आबादी कै ंसर क� िगरफ्त में होगी। यूरोप कई अनुसंधानकतार् भी काल� से सहमत थे। एल. लॉयड मोरगन अमे�रका क� बायोइलेक्ट्रोमेग्नेिटक्स सोसाइटी के सेवाि इलेक्ट्रोिनक इंिजिनयर ह1995 में इन्हें इलेक्ट्रोमेगनेिटक रेिडयेशन के कार ट्यूमर हो गया था। इलाज पूरा होते ही िज�ासा वश इन्होंने.एम. रेिडयेशन पर इलेिक्ट्रक पावर �रसचर् इिन्स्टट्यूट द्वारा क� गई शोध का ध्यान से अध और जाना िक इससे मिस्तष्क कैंसर और ल्यूक�िमया का जोिखम बह�त रहता इसके बाद इन्होंनसेलफोन के खतरों पर अनुसंधान करना ही जीवन क� ध्येय बन िलया और न्यूरो ओंकोलोजी सोसाइट, अमे�रकन ऐके डेमी ऑफ एनवायरमेंटल मेडीिसन और ब्रेन ट्यूमर इपीडेिमयोलोजी कन्सोिटर्यम संस्थाओं से जुड़े रह
  • 10. 10 | P a g e इन्टरफोन स्टड- पूरी दाल ही काली है इन्टरफोन स्टडी मिस्तष्क कैंसर और सेलफोन के बारे में दुिनया का सबसे बड़ा अध, िजसमें1999 से 2004 तक सेलफोन से ब्रेन ट्यूमर के खतरों पर शोध ह�ई है। इसमें सेलफोन कम्पिनयों3 करोड़ डॉलर से ज्यादा खचर् ह�आ है औ48 वै�ािनकों ने 13 देशों (Australia,Canada, Denmark, Finland, France, Germany, Israel, Italy, Japan, New Zealand, Norway, Sweden और UK) के 14,000 व्यि�यों पर शोध क� है। आँकड़े एकित्रत करने का काम2004 में पूरा हो गया था लेिकन इसक� �रपोटर् जारी करने में जानबूझ कर देरी क� जा रही थी और यूरोप के देशों द्वारा भारी दबाव डालने पर बड़ी मुिश् कुछ समय पहले ही 2010 में इसक� �रपोटर् जारी क� है �रपोटर् के नतीजों में मुख्य बात यह है िक सेलफोन हमें मि कै ंसर से बचाता है। लेिकन यह बात िकसी के भी गले नहीं उत रही है। सेलफोन कम्पिनयों द्वारा डेनमाकर् में करवाई गई ह इन्टरफोन स्टडी के नतीजे भी यही कह रहे थे िक सेलफोन क प्रयोग हमें ब्रेन कैंसर से बचाता है। इनके अलावा अन्य िज अध्ययन सेलफोन कम्पिनयों द्वारा करवाय, उन सभी के नतीजे यही कह रहे थे िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का कोई खतरा नहीं क्या यह मात्र संयोग ??? यिद यह सत्य है िक सेलफोन हमें ब् कै ंसर से बचाता है तो नोिकय, मोटोरोला और ब्लेकबैरी जैसी कम्पिनयां अपने मेनुअल में यह क्यों िलखती हैं िक सेलफो बात करते समय उसे िसर से 2.5 सै.मी. दूर रखें। इसिलए एल. लॉयड मोरगन ने अपने सहयोगी अनुसंधानकतार्ओं के साथ िमल कर जब इन्टरफोन स्टडी द्वारा जारी �रपोटर् क बारीक� से अध्ययन िकया तो उन्हें लगा िक इस शोध में ज�र कोई भारी गड़बड़ है। इन्होंने अपने कुछ सहयोिगयों के साथ पूरा अनुसंधान करके सेलफोन और मिस्तष्क कैंसर के संबन्ध में एक महत्वपूणर् प्रितवेदन जारी िकया है। इसम15 अहम िचंताजनक पहलुओंको उजागर िकया है, िजन्हें सरक, मीिडया तथा आम जनता को समझना चािहये और समुिचत कदम उठाने चािहये। इसमें इन्होंने दूरसंचार उद्योग और स्वतंत्रसंस्थाओं द्वारा क� गई शोध के प�रणामों क� भी व्याख्या क� है। मुख्य उद्देश्य पत्रकारों और सरकार को स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� गई शोध से सामने आये सेलफोन के खतरों और के प्रा�प में स्वाथर्वश जानबूझ कर रखी गई खािमयों के बारे में आगाह, िजससे मिस्तष्क कैंसर के जोिखम का स आंकलन नहीं हो सका। स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� ग दूसरी तरफ स्वतंत्र और िनष्प� संस्थाओं द्वारा िजतनी भी शोध ह�ई है सबके नतीजे कुछ और कहानी कह रहे हैं। जै • सेलफोन का कु ल प्रयोग िजतने अिधक घन्टे िकया जाता है कैंसर का खतरा उतना ही अिधक रहता • सेलफोन िजतने ज्यादा वष� तक प्रयोग में िलया जाता है खतरा उतना ही ज्यादा होता • सेलफोन से िनकलने वाले िविकरण क� मात्रा िजतनी अिधक होती है खतरा उतना ही ज्यादा होता ह • सेलफोन का प्रयोग िजतनी कम उम्र में शु� होगा खतरा उतना ही ज्यादा होता है। जो िकशोरावस्था या उससे प सेलफोन प्रयोग करना शु� कर देते हैं उन्हें कैंसर का420% तक बढ़ जाता है।
  • 11. 11 | P a g e इन्टरफोन स्टडी के मूल प्रा�प में ही थी अनेक खा आिखर कुछ सोच-समझ कर ही सेलफोन कम्पिनयों ने इन्टरफोन स्टडी के िलए इतनी अपा-रािश उपलब्ध करवाई थी। वे चाहती थी िक शोध के नतीजे ऐसे हों िक उनके दाग भी धुल जायें और उनके व्यवसाय पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़े। उ शोध का मूल प्रा�(Protocol) में जान बूझ कर बड़ी चतुराई से ऐसी खािमयां रखी िक शोध के नतीजे वैसे ही हो जैसे वे चाहते हैं कुछ मुख्य खािमयां िनम्न है • लॉयड मोरगन ने अपने प्रितवेदन में स्प� िलखा है िक इन्टरफोन स्टडी में िसफर् तीन तरह के ब्रेन कैंसर ऐकॉि, ग्लायोमा और मेिनिन्जयोमा शािमल िकये गये जबिक अन्य कैंसर जैसे ब्रेन ि, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद को शोध के दायरे से बाहर रखा गया। • वे लोग भी अध्ययन से बाहर रखे गये जो ब्रेन कैंसर से मर गये थे या बह�त बीमार होने के कारण सा�ातकार में शािमल नह सकते थे। बच्च, िकशोरों और बूढ़ों को इस शोध से बाहर रखा गया था जब िक इन्हें कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा रहत • इस अध्ययन में ग्रामीण �े त्र के लोगों को भी शािमल नहीं िकया गया जबिक कमजोर िसगनल होने के कारण वहाँ ज्यादा तेज रेिडयेशन छोड़ते हैं • जो लोग 6 महीने या ज्यादा अविध तक स�ाह में िसफर् एक बार सेलफोन सेलफोन करते हैं उन्हे सेलफोन प्रयो�ा के प�रभािषत िकया गया जबिक सेलफोन प्रयोग नहीं करने वाले व्यि� अनएक्सपोज्ड माने गये भले वे कोडर्लेस फोन प् करते हो, िविदत रहे िक कोडर्लेस भी सेलफोन क� तरह ही .एम. रेिडयेशन के द्वारा कायर् करता ह • शोध में रेिडयेशन एक्सपोजर क� अिधकतम अवि10 वषर् रखी गई है जब िक ब्रेन कैंसर होने में अक्सर इससे भी समय लगता है। शोध के प्रा�प में रखी गई किमयों को पढ़ कर आप कम्पिनयों क� नीयत समझ गये आिखर मोबाइल का यह मैला व्यवयाय आिखर चालीस खरब डॉलर (4 Trillion Dollars) का है। क्या करेगंदा है पर धंधा है ये। सेलफोन के खतरों से बचने के उपा यहाँ मैं आपको सेलफोन रेिडयेशन से बचने के कुछ उपाय बतलाता ह�ँ। • जब आप सेलफोन पर बात करें तो तारयु� हैडसेट का प्रयोग करें या स- फोन मोड पर बात करें। जहाँ संभव हो लघु संदेश सेवा( SMS) से काम चलायें। बेतार हैडसेट जैसे ब्ल-टूथ भी खतरे से भरा है। कई अनुसंधानकतार् तो ता-यु� हैडसेट को भी सही महीं मानते हैं। वे कहते हैं िक एयरट्यूब वाला हैडसेट प् करे, इसमें तारयु� हैडफोन से स्टेथोस्कोप जैसी ट्यूब्स जुड़ी रहती है रेिडयेशन का खतरा बह�त कम हो जाता है। • जब काम में नहीं आ रहा हो तो सेलफोन को शरीर से दूर रखें जैसे शटर् क�, पसर् में या बैल्ट में लगा कर रखें। पैंट क� जेब में कभी , शरीर का िनचले िहस्सा ज्यादा संवेदनशील होता है।
  • 12. 12 | P a g e • कार, बस, ट्र, बड़ी इमारतों या ग्रामीण �ेत्र में जहाँ िसगनल कमजोर हों सेलफोन का प्रयोग नहीं करे प�रिस्थितयों में सेलफोन बह�त तेज रेिडयेशन छोड़ता ह • जब भी संभव हो या आप घर पर हों तो लैंडलाइन फोन का प्रयोग करें। अपने कम्प्यूटर या लेपटॉप में इन्टरने वाई-फाई क� जगह तारयु� ब्रॉडबैंड कनेक्शन लें। कोडर्लेस फ प्रयोग नहीं करें।-फाई और कोडर्लेस फोन भी रेिडयो तरंगो द्वारा काम करता है। व्यवसाय या प्यार क� लम्बी बातें तो लैंडलाइन पर करने का आनंद ही कुछ और है। आपको टेलीफोन पर गाया गया “मेरे िपया गये रंगून िकया है वहाँ से टेलीफोन तुम्हारी याद सताती है िजया में आग लगाती ह ” या िदलीप कु मार और वैजंती माला पर िफल्माया गया लीडर िफल्म के इस मधुर गीत ”आजकल शौक-ए- दीदार है क्या क�ँ आपसे प्यार ” को सुनने में आज भी िकतना आनंद आता है। • बच्चो और िकशोरों को तिकये के नीचे या िबस्तर में सेलफोन रख कर सोने से मना करें। वनार् रात भर सेलफोन िवद्य-प्रदूष(Electro-Polution) देता रहेगा। सेलफोन का प्रयोग गाने सुन, मूवी देखने या गेम्स खेलने के िलए नही करना चािहये। • 18 वषर् से छोटे लड़कों को िसफर् आपातकालीन प�रिस्थितयों में ही सेलफोन प्रयोग क • मोबाइल में रेिडएशन रोधी कवर लगवाएं • मोबाइल खरीदते समय इस बात का िवशेष ख्याल रखें िक का S.A.R. (स्पेिसिफक एब्सॉप्शन ) कम हो तािक आपका मोबाइल कम रेिडयेशन छोड़े। एस.ए.आर. एक िकलो ऊतक द्वारा अवशोिषत क� जाने वाले रेिडयन क� मात्रा , बशत� आप मोबाइस को रोज िसफर ्6 िमनट ही काम में लेते है भारत में ए.ए.आर. क� अिधकतम सीमा 2 वाट /िकलो रखी गई है। अमे�रका में यह1.6 वाट/िकलो है। यिद हम 3-4 वाट/िकलो S.A.R. को भी सुरि�त मान लें तो भी हमे मोबाइल का प्रयोग रोजान18-24 िमनट से अिधक नहीं करना चािहये। लेिकन यह बात उपभो�ा को नहीं बतलाई जात है। सरकार के िलए लॉयड मोरगन और सहयोिगयों द्वारा जारी िदशािन • सेलफोन िनमार्ताओं को कड़े िनद�श देना चािहये िक वे सेलफोन में स्पी और माइक लगायें ही नहीं और उपभो�ाओं को एक बिढ़या और सुरि� हैडसेट (संभवतः एयर ट्यूब वाला) दे दें। इससे सेलफोन क�मत पर भी फकर नहीं पड़ेगा
  • 13. 13 | P a g e • लोगो को सेलफोन के रेिडयेशन से बचने हेतु जाग�कता अिभयान कायर्क्रमों के िलए धन मुहैया करना चािह • सेलफोन कम्पिनयों को सेलफोन बेचने क� अनुमित देने के पहले उपभा�ाओं क� सुर�ा हेतु बीमा करवाना और उसक सा�य प्रस्तुत करना अिनवायर् होना चाि • सेलफोन पर संवैधािनक चेतावनी िलखी होनी चािहये िक इसके प्रयोग स ब्रेन कैंसर हो सकता ह • रेिडयेशन मानक नये िसरे से िनधार्�रत करने चािहये। • सेलफोन रेिडयेशन के दूरगामी खतरों पर अनुसंधान हेतु िनष्प� औ स्वतंत्र संस्थाएं गिठत करना चािहये और पयार्� धन उपलब्ध क चािहये। • सरकार को िवद्युत चुम्बक�य िविकरण क� मात्रा और िस् बारे मे हर साल प्रितवेदन जारी करना चािहये • प्रदेश में उच्च वोल्टेज िबजली क� , सेलफोन टॉवर, टेलीफोन और रेिडयो के एंटीना से िनकलने वाले रेिडयेशन को दशार्ने वाले नक्शे जार करने चािहये। । • बच्चों को सेलफोन बेचने हेतु बने लुभावने िव�ापन तुरन्त प्रितबंिधत चािहये। • स्क ूल में पढ़ने वाले बच्चों को सेलफोन के खतरों से बचाने हेतु कड़ें िनद�श जारी करने चािहये िक बच्चे स्कूल मे लेकर नहीं आय । सेलफोन, वाई-फाई, माइक्रोवेव ओवन आ के खतरों के बारे में उन्हें पढ़ाया जाना चािहये जाग�कता हेतु स्क ूल में बेनर लगावाने चािहये। सेलफोन टॉवर भी स्कूल से दूर लगाये जाने के िनद�श िदयें जा • वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) को िनद�श देना चािहये िक वे इंटरसेलफोन स्टडी में रही किमयों को दूर, एकित्रत आंकड़ों का नये िसरे से िव�ेषण करें और िनष्प� प्रितवेदन जारी http://nehawilcom.blogspot.in/2012/01/blogpost.html?showComment=1339433566847#c1091 752892557178834 http://mtgf.blogspot.in/2010/02/biological-effects-of-electromagnetic.html
  • 14. 14 | P a g e रेिडयेशन से होने वाले रोग में बह�त कारगर है अलस 2002 में ऐडीले, दि�णी आस्ट्रेिलया क� सुश्री ऐलेक्स सीले अपनी इमारत क� छत पर अक्स करती थी जहाँ मोबाइल क� टावर लगी ह�ई थी। बस वहीं वह रेिडयेशन क� चपेट में आ गई। इससे उस हमेशा िसर में ददर् और जलन रहने लगा। उसे ऐसा लगता था जैस िकसी ने उसके िसर में िकसी ने जलती ह�ई वेिल्डंग क� रोडघुसा दी हो। यिद वह दो िमनट भी मोबाइल पर बात करती या माइक्रोवेव ऑवन के पा जाती तो तकलीफ और बढ़ जाती थी। आस्ट्रेिलया के डाक्टर उसका उपचार नहीं कर पा रहे थे। लगत उनके पास इस रोग का कोई उपचार था ही नहीं। िफर िकसी ने उसे बतलाया क� अलसी के तेल का प्रय करने से उनके ठीक हो सकती है। अलसी के तेल को शु� के दो स�ाह में तो उसक� तकलीफ बढ़ी लेिकन िफर धीरे – धीरे आराम आने लगा। साथ में उसने ऐलोवेरा ज्यूस भी लेना शु� कर िदया था। यह प्रिति स्वयं ऐलेक्(सेंड़) ने यूट्यूब पर मेरे वीिडयो पर दी है, िजसक� िलंक है। । http://www.youtube.com/watch?v=4uDd_dh90tA&feature=g-all-u ऐसी चमत्कारी है अलसी मां।