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कश्मीर
(कश्मीरी : कोशूर) भारतीय उपमहाद्वीप का एक हहस्सा है
जिसके अलग-अलग भागों पर भारत तथा पाककस्तान का
अधिपत्य है। भारतीय कश्मीर जम्मू और कश्मीर प्रान्त
का एक खण्ड है। पाककस्तान इसपर भारत का अधिकार
नहीीं मानता और इसे अधिकृ त करना चाहता है। कश्मीर
एक मुजस्लमबहुल प्रदेश है। आि ये आतींकवाद से िूझ रहा
है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है।
िम्मू और कश्मीर के बाकी दो खण्ड
हैं िम्मू और लद्दाख़। पाककस्तान के कब्जे में राज्य के दो
अन्य खण्ड हैं : शुमाली इलाके और तथाकधथतआजाद
कश्मीर। चीन के कब्जे में लद्दाख़ का अक्साई
धचन इलाका आता है।
•1 भूगोल
•2 इततहास
2.1 प्राचीन कथा
•3 प्रससद्ि उत्पाद
•4 कश्मीरी लोग
•5 सींस्कृ तत
•6 मौसम
•7 वववाद
•8 भारतीय पक्ष
•9 पाककस्तानी पक्ष
•10 आतींकवाद
•11 कश्मीर और िवाहरलाल नेहरू
11.1 महारािा से कटु सम्बींि
11.2 कश्मीररयत की भावना
11.3 महारािा की भारत-वप्रयता
11.4 पीं॰ नेहरू की भयींकर भूलें
अनुक्रम
भूगोल
ये ख़ूबसूरत भूभाग मुख्यतः झेलम नदी की घाटी (वादी) में बसा है।
भारतीय कश्मीर घाटी में छः जजले
हैं : श्रीनगर,बड़गाम, अनन्तनाग, पुलवामा,बारामुला और कु पवाड़ा।
कश्मीर हहमालय पववती क्षेत्र का भाग है। िम्मू खण्ड से और
पाककस्तान से इसे पीर-पाींिाल पववत-श्रेणी अलग करती है। यहााँ कई
सुन्दर सरोवर हैं, िैसेडल, वुलर और नगीन। यहााँ का मौसम गसमवयों
में सुहावना और सहदवयों में बर्फ़ीला होता है। इस प्रदेश को िरती का
स्वगव कहा गया है। एक नहीीं कई कववयों ने बार बार कहा है :
गर कर्फदौस बर रुए जमीन अस्त, हमीीं अस्त, हमीीं अस्त, हमीीं
अस्त। (र्फारसी में मुगल बादशाह िहााँगीर के शब्द)
अगर इस िरती पर कहीीं स्वगव है, (तो वो) यहीीं है, यहीीं है, यहीीं
है।
इततहास
मुख्य लेख : कश्मीर का इततहास
प्राचीनकाल में कश्मीर हहन्दू और बौद्ि सींस्कृ ततयों का पालना
रहा है। माना िाता है कक यहााँ पर भगवान सशव की पत्नी
देवी सती रहा करती थीीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से
ढकी हुई थी। यहााँ एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे
वैहदक ऋवष कश्यप और देवी सती ने समलकर हरा हदया और
ज़्यादातर पानी ववतस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा हदया। इस
तरह इस िगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे
अधिक तकव सींगत प्रसींग यह है कक इसका वास्तववक नाम
कश्यपमर (अथवा कछु ओीं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम
तनकला।
कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इततहास कल्हण के
ग्रींथ राितरींधगणी से (और बाद के अन्य लेखकों से) समलता है।
प्राचीन काल में यहााँ हहन्दू आयव रािाओीं का राि था।
मौयव सम्राट अशोक और कु षाण सम्राट कननष्क के समय कश्मीर
बौद्ि िमव और सींस्कृ तत का मुख्य के न्र बन गया। पूवव-मध्ययुग में
यहााँ के चक्रवती सम्राट लललतादित्य ने एक ववशाल साम्राज्य कायम
कर सलया था। कश्मीर सींस्कृ त ववद्या का ववख्यात के न्र रहा।[1]
कश्मीर शैवदशवनभी यहीीं पैदा हुआ और पनपा। यहाीं के महान
मनीषीयों
में पतञ्िसल, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दविवन, असभनवगुप्त, कल्हण
, क्षेमराि आहद हैं। यह िारणा है कक ववष्णुिमोत्तर पुराण एवीं योग
वाससष्ठ यहीीं सलखे
प्राचीन कथा
स्थानीय लोगों का ववश्वास है कक इस ववस्तृत घाटी के स्थान पर
कभी मनोरम झील थी जिसके तट पर देवताओीं का वास था। एक
बार इस झील में ही एक असुर कहीीं से आकर बस गया और वह
देवताओीं को सताने लगा। त्रस्त देवताओीं ने ऋवष कश्यप से प्राथवना
की कक वह असुर का ववनाश करें। देवताओीं के आग्रह पर ऋवष ने
उस झील को अपने तप के बल से ररक्त कर हदया। इसके साथ ही
उस असुर का अींत हो गया और उस स्थान पर घाटी बन गई। कश्यप
ऋवष द्वारा असुर को मारने के कारण ही घाटी को कश्यप मार कहा
िाने लगा। यही नाम समयाींतर में कश्मीर हो गया। तनलमत पुराण
में भी ऐसी ही एक कथा का उल्लेख है। कश्मीर के प्राचीन इततहास
और यहाीं के सौंदयव का वणवन कल्हण रधचत राि तरींधगनी में बहुत
सुींदर ढींग से ककया गया है। वैसे इततहास के लींबे कालखींड में
यहाीं मौयव, कु षाण, हूण, करकोटा,
लोहरा, मुगल, अफगान, ससख और डोगरा रािाओीं का राि रहा है।
कश्मीर सहदयों तक एसशया में सींस्कृ तत एवीं दशवन शास्त्र का एक
महत्वपूणव कें र रहा और सूफी सींतों का दशवन यहाीं की साींस्कृ ततक
ववरासत का महत्वपूणव हहस्सा रहा है।
मध्ययुग में मुजस्लम आक्रान्ता कश्मीर पर काबबज हो गये। कु छ
मुसल्मान शाह और राज्यपाल (िैसे शाह जैन-उल-अबबदीन)
हहन्दुओीं से अच्छा व्यवहार करते थे पर कई (िैसे सुल्तान ससकन्दर
बुतसशकन) ने यहााँ के मूल कश्मीरी हहन्दुओीं को मुसल्मान बनने
पर, या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मिबूर कर हदया। कु छ ही
सहदयों में कश्मीर घाटी में मुजस्लम बहुमत हो गया। मुसल्मान
शाहों में ये बारी बारी से अर्फगान, कश्मीरी मुसल्मान, मुगल आहद
वींशों के पास गया। मुगल सल्तनत धगरने के बाद से ससख महारािा
रणिीत ससींह के राज्य में शासमल हो गया। कु छ समय बाद िम्मू के
हहन्दू डोगरा रािा गुलाब ससींह डोगरा ने बिहटश लोगों के साथ सजन्ि
करके िम्मू के साथ साथ कश्मीर पर भी अधिकार कर सलया (जिसे
कु छ लोग कहते हैं कक कश्मीर को ख़रीद सलया)। डोगरा वींश भारत
की आजादी तक कायम रहा।
प्रससद्ि उत्पाद
कश्मीर से कु छ यादगार वस्तुएीं ले िानी हों तो यहाीं कई
सरकारी एींपोररयम हैं। अखरोट की लकडी के हस्तसशल्प,
पेपरमेशी के शो-पीस, लेदर की वस्तुएीं, कालीन, पश्मीना
एवीं िामावार शाल, के सर, कक्रके ट बैट और सूखे मेवे आहद
पयवटकों की खरीदारी की खास वस्तुएीं हैं। लाल चौक क्षेत्र में
हर तरह के शॉवपींग कें र है। खानपान के शौकीन पयवटक
कश्मीरी भोिन का स्वाद िरूर लेना चाहेंगे। बािवान
कश्मीरी भोिन का एक खास अींदाि है। इसमें कई कोसव
होते है जिनमें रोगन िोश, तबकमाि, मेथी, गुस्तान आहद
डडश शासमल होती है। स्वीट डडश के रूप में कफरनी प्रस्तुत
की िाती है। अींत में कहवा अथावत कश्मीरी चाय के साथ
वािवान पूणव होता है
कश्मीरी लोग
भारत की आजादी के समय कश्मीर की वादी में
लगभग 15 % हहन्दू थे और बाकी मुसल्मान।
आतींकवाद शुरु होने के बाद आि कश्मीर में
ससर्फव 4 % हहन्दू बाकी रह गये हैं, यातन कक
वादी में 96 % मुजस्लम बहुमत है। ज़्यादातर
मुसल्मानों और हहन्दुओीं का आपसी बतावव
भाईचारे वाला ही होता है। कश्मीरी लोग ख़ुद
कार्फी ख़ूबसूरत मान
सींस्कृ तत
यहााँ की सूर्फी-परम्परा बहुत ववख्यात है, िो कश्मीरी इस्लाम को
परम्परागत सशया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हहन्दुओीं
के प्रतत सहहष्णु बना देती है। कश्मीरी हहन्दुओीं को कश्मीरी पींडडत
कहा िाता है और वो सभीिाह्मण माने िाते हैं। सभी कश्मीररयों को
कश्मीर की सींस्कृ तत, यातन कक कश्मीररयत पर बहुत नाज है। वादी-
ए-कश्मीर अपने धचनार के पेड़ों, कश्मीरी सेब, के सर (जार्फरान,
जिसे सींस्कृ त में काश्मीरम ्भी कहा िाता है), पश्मीना ऊन और
शॉलों पर की गयी कढाई, गलीचों और देसी चाय (कहवा) के सलये
दुतनया भर में मशहूर है। यहााँ का सन्तूर भी बहुत प्रससद्ि है।
आतींकवाद से बशक इन सभी को और कश्मीररयों की खुशहाली को
बहद िक्का लगा है। कश्मीरी व्यींिन भारत भर में बहुत ही लजीज
माने िाते हैं। नोट करें कक ज़्यादातर कश्मीरी पींडडत माींस खाते हैं।
कश्मीरी पींडडतों के माींसाहारी व्यींिन हैं : नेनी (बकरे के गोश्त का)
कसलया, नेनी रोगन िोश, नेनी यखख़यन (यख़नी), मच्छ
(मछली), इत्याहद। कश्मीरी पींडडतों के शाकाहारी व्यींिन हैं :
चमनी कसलया, वेथ चमन, दम ओलुव (आलू दम), राज़्मा
गोआग्िी, चोएक वींगन (बैंगन), इत्याहद। कश्मीरी
मुसल्मानों के (माींसाहारी) व्यींिन हैं : कई तरह के कबाब
और कोफ़्ते, ररश्ताबा, गोश्ताबा, इत्याहद। परम्परागत
कश्मीरी दावत को वाज़वान कहा िाता है। कहते हैं कक हर
कश्मीरी की ये ख़्वाहहश होती है कक जजन्दगी में एक बार,
कम से कम, अपने दोस्तों के सलये वो वाजवान परोसे। कु ल
समलाकर कहा िये तो कश्मीर हहन्दू और मुजस्लम
सींस्कृ ततयों का अनूठा समश्रण है।
मौसम
िरती का स्वगव कहा िाने वाला कश्मीर ग्रेट हहमालयन रेंि और
पीर पींिाल पववत श्रृींखला के मध्य जस्थत है। यहाीं की नैसधगवक छटा
हर मौसम में एक अलग रूप सलए निर आती है। गमी में यहाीं
हररयाली का आींचल फै ला हदखता है, तो सेबों का मौसम आते ही
लाल सेब बागान में झूलते निर आने लगते हैं। सहदवयों में हर तरफ
बफव की चादर फै लने लगती है और पतझड शुरू होते ही िदव धचनार
का सुनहरा सौंदयव मन मोहने लगता है। पयवटकों को सम्मोहहत
करने के सलए यहाीं बहुत कु छ है। शायद इसी कारण देश-ववदेश के
पयवटक यहाीं खखींचे चले आते हैं। वैसे प्रससद्ि लेखक थॉमस मूर की
पुस्तक लैला रूख ने कश्मीर की ऐसी ही खूबबयों का पररचय पूरे
ववश्व से कराया था।
वववाद
भारत की स्वतन्त्रता के समय हहन्दू रािा हरर ससींह यहााँ के शासक
थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुजस्लम कॉन्रें स (बाद में नेश्नल
कॉन्रें स) उस समय कश्मीर की मुख्य रािनैततक पाटी थी। कश्मीरी
पींडडत, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का
भारत में ही ववलय चाहते थे। पर पाककस्तान को ये बदावश्त ही नहीीं
था कक कोई मुजस्लम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-
राष्र ससद्िान्त को ठेस लगती थी)। सो 1947-48 में पाककस्तान ने
कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया
और कार्फी हहस्सा हधथया सलया। उस समय
प्रिानमन्त्री िवाहरलाल नेहरु ने मोहम्मद अली जिन्ना से वववाद
िनमत-सींग्रह से सुलझाने की पेशकश की, जिसे जिन्ना ने उस
समय ठु करा हदया क्योंकक उनको अपनी सैतनक कारववाई पर पूरा
भरोसा था। महारािा ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमतत से भारत में कु छ
शतों के तहत ववलय कर हदया। िब भारतीय सेना ने राज्य का
कार्फी हहस्सा बचा सलया और ये वववाद सींयुक्त राष्र में ले िाया
गया तो सींयुक्तराष्र महासभा ने दो करारदाद (सींकल्प) पाररत
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  • 3. (कश्मीरी : कोशूर) भारतीय उपमहाद्वीप का एक हहस्सा है जिसके अलग-अलग भागों पर भारत तथा पाककस्तान का अधिपत्य है। भारतीय कश्मीर जम्मू और कश्मीर प्रान्त का एक खण्ड है। पाककस्तान इसपर भारत का अधिकार नहीीं मानता और इसे अधिकृ त करना चाहता है। कश्मीर एक मुजस्लमबहुल प्रदेश है। आि ये आतींकवाद से िूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। िम्मू और कश्मीर के बाकी दो खण्ड हैं िम्मू और लद्दाख़। पाककस्तान के कब्जे में राज्य के दो अन्य खण्ड हैं : शुमाली इलाके और तथाकधथतआजाद कश्मीर। चीन के कब्जे में लद्दाख़ का अक्साई धचन इलाका आता है।
  • 4. •1 भूगोल •2 इततहास 2.1 प्राचीन कथा •3 प्रससद्ि उत्पाद •4 कश्मीरी लोग •5 सींस्कृ तत •6 मौसम •7 वववाद •8 भारतीय पक्ष •9 पाककस्तानी पक्ष •10 आतींकवाद •11 कश्मीर और िवाहरलाल नेहरू 11.1 महारािा से कटु सम्बींि 11.2 कश्मीररयत की भावना 11.3 महारािा की भारत-वप्रयता 11.4 पीं॰ नेहरू की भयींकर भूलें अनुक्रम
  • 6. ये ख़ूबसूरत भूभाग मुख्यतः झेलम नदी की घाटी (वादी) में बसा है। भारतीय कश्मीर घाटी में छः जजले हैं : श्रीनगर,बड़गाम, अनन्तनाग, पुलवामा,बारामुला और कु पवाड़ा। कश्मीर हहमालय पववती क्षेत्र का भाग है। िम्मू खण्ड से और पाककस्तान से इसे पीर-पाींिाल पववत-श्रेणी अलग करती है। यहााँ कई सुन्दर सरोवर हैं, िैसेडल, वुलर और नगीन। यहााँ का मौसम गसमवयों में सुहावना और सहदवयों में बर्फ़ीला होता है। इस प्रदेश को िरती का स्वगव कहा गया है। एक नहीीं कई कववयों ने बार बार कहा है : गर कर्फदौस बर रुए जमीन अस्त, हमीीं अस्त, हमीीं अस्त, हमीीं अस्त। (र्फारसी में मुगल बादशाह िहााँगीर के शब्द) अगर इस िरती पर कहीीं स्वगव है, (तो वो) यहीीं है, यहीीं है, यहीीं है।
  • 8. मुख्य लेख : कश्मीर का इततहास प्राचीनकाल में कश्मीर हहन्दू और बौद्ि सींस्कृ ततयों का पालना रहा है। माना िाता है कक यहााँ पर भगवान सशव की पत्नी देवी सती रहा करती थीीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से ढकी हुई थी। यहााँ एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे वैहदक ऋवष कश्यप और देवी सती ने समलकर हरा हदया और ज़्यादातर पानी ववतस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा हदया। इस तरह इस िगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तकव सींगत प्रसींग यह है कक इसका वास्तववक नाम कश्यपमर (अथवा कछु ओीं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम तनकला। कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इततहास कल्हण के ग्रींथ राितरींधगणी से (और बाद के अन्य लेखकों से) समलता है। प्राचीन काल में यहााँ हहन्दू आयव रािाओीं का राि था।
  • 9. मौयव सम्राट अशोक और कु षाण सम्राट कननष्क के समय कश्मीर बौद्ि िमव और सींस्कृ तत का मुख्य के न्र बन गया। पूवव-मध्ययुग में यहााँ के चक्रवती सम्राट लललतादित्य ने एक ववशाल साम्राज्य कायम कर सलया था। कश्मीर सींस्कृ त ववद्या का ववख्यात के न्र रहा।[1] कश्मीर शैवदशवनभी यहीीं पैदा हुआ और पनपा। यहाीं के महान मनीषीयों में पतञ्िसल, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दविवन, असभनवगुप्त, कल्हण , क्षेमराि आहद हैं। यह िारणा है कक ववष्णुिमोत्तर पुराण एवीं योग वाससष्ठ यहीीं सलखे
  • 11. स्थानीय लोगों का ववश्वास है कक इस ववस्तृत घाटी के स्थान पर कभी मनोरम झील थी जिसके तट पर देवताओीं का वास था। एक बार इस झील में ही एक असुर कहीीं से आकर बस गया और वह देवताओीं को सताने लगा। त्रस्त देवताओीं ने ऋवष कश्यप से प्राथवना की कक वह असुर का ववनाश करें। देवताओीं के आग्रह पर ऋवष ने उस झील को अपने तप के बल से ररक्त कर हदया। इसके साथ ही उस असुर का अींत हो गया और उस स्थान पर घाटी बन गई। कश्यप ऋवष द्वारा असुर को मारने के कारण ही घाटी को कश्यप मार कहा िाने लगा। यही नाम समयाींतर में कश्मीर हो गया। तनलमत पुराण में भी ऐसी ही एक कथा का उल्लेख है। कश्मीर के प्राचीन इततहास और यहाीं के सौंदयव का वणवन कल्हण रधचत राि तरींधगनी में बहुत सुींदर ढींग से ककया गया है। वैसे इततहास के लींबे कालखींड में यहाीं मौयव, कु षाण, हूण, करकोटा, लोहरा, मुगल, अफगान, ससख और डोगरा रािाओीं का राि रहा है। कश्मीर सहदयों तक एसशया में सींस्कृ तत एवीं दशवन शास्त्र का एक महत्वपूणव कें र रहा और सूफी सींतों का दशवन यहाीं की साींस्कृ ततक
  • 12. ववरासत का महत्वपूणव हहस्सा रहा है। मध्ययुग में मुजस्लम आक्रान्ता कश्मीर पर काबबज हो गये। कु छ मुसल्मान शाह और राज्यपाल (िैसे शाह जैन-उल-अबबदीन) हहन्दुओीं से अच्छा व्यवहार करते थे पर कई (िैसे सुल्तान ससकन्दर बुतसशकन) ने यहााँ के मूल कश्मीरी हहन्दुओीं को मुसल्मान बनने पर, या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मिबूर कर हदया। कु छ ही सहदयों में कश्मीर घाटी में मुजस्लम बहुमत हो गया। मुसल्मान शाहों में ये बारी बारी से अर्फगान, कश्मीरी मुसल्मान, मुगल आहद वींशों के पास गया। मुगल सल्तनत धगरने के बाद से ससख महारािा रणिीत ससींह के राज्य में शासमल हो गया। कु छ समय बाद िम्मू के हहन्दू डोगरा रािा गुलाब ससींह डोगरा ने बिहटश लोगों के साथ सजन्ि करके िम्मू के साथ साथ कश्मीर पर भी अधिकार कर सलया (जिसे कु छ लोग कहते हैं कक कश्मीर को ख़रीद सलया)। डोगरा वींश भारत की आजादी तक कायम रहा।
  • 14. कश्मीर से कु छ यादगार वस्तुएीं ले िानी हों तो यहाीं कई सरकारी एींपोररयम हैं। अखरोट की लकडी के हस्तसशल्प, पेपरमेशी के शो-पीस, लेदर की वस्तुएीं, कालीन, पश्मीना एवीं िामावार शाल, के सर, कक्रके ट बैट और सूखे मेवे आहद पयवटकों की खरीदारी की खास वस्तुएीं हैं। लाल चौक क्षेत्र में हर तरह के शॉवपींग कें र है। खानपान के शौकीन पयवटक कश्मीरी भोिन का स्वाद िरूर लेना चाहेंगे। बािवान कश्मीरी भोिन का एक खास अींदाि है। इसमें कई कोसव होते है जिनमें रोगन िोश, तबकमाि, मेथी, गुस्तान आहद डडश शासमल होती है। स्वीट डडश के रूप में कफरनी प्रस्तुत की िाती है। अींत में कहवा अथावत कश्मीरी चाय के साथ वािवान पूणव होता है
  • 16. भारत की आजादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हहन्दू थे और बाकी मुसल्मान। आतींकवाद शुरु होने के बाद आि कश्मीर में ससर्फव 4 % हहन्दू बाकी रह गये हैं, यातन कक वादी में 96 % मुजस्लम बहुमत है। ज़्यादातर मुसल्मानों और हहन्दुओीं का आपसी बतावव भाईचारे वाला ही होता है। कश्मीरी लोग ख़ुद कार्फी ख़ूबसूरत मान
  • 18. यहााँ की सूर्फी-परम्परा बहुत ववख्यात है, िो कश्मीरी इस्लाम को परम्परागत सशया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हहन्दुओीं के प्रतत सहहष्णु बना देती है। कश्मीरी हहन्दुओीं को कश्मीरी पींडडत कहा िाता है और वो सभीिाह्मण माने िाते हैं। सभी कश्मीररयों को कश्मीर की सींस्कृ तत, यातन कक कश्मीररयत पर बहुत नाज है। वादी- ए-कश्मीर अपने धचनार के पेड़ों, कश्मीरी सेब, के सर (जार्फरान, जिसे सींस्कृ त में काश्मीरम ्भी कहा िाता है), पश्मीना ऊन और शॉलों पर की गयी कढाई, गलीचों और देसी चाय (कहवा) के सलये दुतनया भर में मशहूर है। यहााँ का सन्तूर भी बहुत प्रससद्ि है। आतींकवाद से बशक इन सभी को और कश्मीररयों की खुशहाली को बहद िक्का लगा है। कश्मीरी व्यींिन भारत भर में बहुत ही लजीज माने िाते हैं। नोट करें कक ज़्यादातर कश्मीरी पींडडत माींस खाते हैं। कश्मीरी पींडडतों के माींसाहारी व्यींिन हैं : नेनी (बकरे के गोश्त का)
  • 19. कसलया, नेनी रोगन िोश, नेनी यखख़यन (यख़नी), मच्छ (मछली), इत्याहद। कश्मीरी पींडडतों के शाकाहारी व्यींिन हैं : चमनी कसलया, वेथ चमन, दम ओलुव (आलू दम), राज़्मा गोआग्िी, चोएक वींगन (बैंगन), इत्याहद। कश्मीरी मुसल्मानों के (माींसाहारी) व्यींिन हैं : कई तरह के कबाब और कोफ़्ते, ररश्ताबा, गोश्ताबा, इत्याहद। परम्परागत कश्मीरी दावत को वाज़वान कहा िाता है। कहते हैं कक हर कश्मीरी की ये ख़्वाहहश होती है कक जजन्दगी में एक बार, कम से कम, अपने दोस्तों के सलये वो वाजवान परोसे। कु ल समलाकर कहा िये तो कश्मीर हहन्दू और मुजस्लम सींस्कृ ततयों का अनूठा समश्रण है।
  • 21. िरती का स्वगव कहा िाने वाला कश्मीर ग्रेट हहमालयन रेंि और पीर पींिाल पववत श्रृींखला के मध्य जस्थत है। यहाीं की नैसधगवक छटा हर मौसम में एक अलग रूप सलए निर आती है। गमी में यहाीं हररयाली का आींचल फै ला हदखता है, तो सेबों का मौसम आते ही लाल सेब बागान में झूलते निर आने लगते हैं। सहदवयों में हर तरफ बफव की चादर फै लने लगती है और पतझड शुरू होते ही िदव धचनार का सुनहरा सौंदयव मन मोहने लगता है। पयवटकों को सम्मोहहत करने के सलए यहाीं बहुत कु छ है। शायद इसी कारण देश-ववदेश के पयवटक यहाीं खखींचे चले आते हैं। वैसे प्रससद्ि लेखक थॉमस मूर की पुस्तक लैला रूख ने कश्मीर की ऐसी ही खूबबयों का पररचय पूरे ववश्व से कराया था।
  • 23. भारत की स्वतन्त्रता के समय हहन्दू रािा हरर ससींह यहााँ के शासक थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुजस्लम कॉन्रें स (बाद में नेश्नल कॉन्रें स) उस समय कश्मीर की मुख्य रािनैततक पाटी थी। कश्मीरी पींडडत, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही ववलय चाहते थे। पर पाककस्तान को ये बदावश्त ही नहीीं था कक कोई मुजस्लम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो- राष्र ससद्िान्त को ठेस लगती थी)। सो 1947-48 में पाककस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और कार्फी हहस्सा हधथया सलया। उस समय प्रिानमन्त्री िवाहरलाल नेहरु ने मोहम्मद अली जिन्ना से वववाद िनमत-सींग्रह से सुलझाने की पेशकश की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठु करा हदया क्योंकक उनको अपनी सैतनक कारववाई पर पूरा भरोसा था। महारािा ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमतत से भारत में कु छ शतों के तहत ववलय कर हदया। िब भारतीय सेना ने राज्य का कार्फी हहस्सा बचा सलया और ये वववाद सींयुक्त राष्र में ले िाया गया तो सींयुक्तराष्र महासभा ने दो करारदाद (सींकल्प) पाररत