SlideShare uma empresa Scribd logo
1 de 33
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्ि'। काव्य को पढ़ने या
सुनने से ब्िस आनन्ि की अनुभूति होिी है, उसे 'रस'
कहा िािा है।
• पाठक या श्रोिा के हृिय में ब्थर्ि थर्ायीभाव ही
ववभावादि से संयुक्ि होकर रस के रूप में पररणि हो
िािा है।
• रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण ित्व' माना िािा
है।
क्रम ांक रस क प्रक र
1. शंगार रस
2. हाथय रस
3. करुण रस
4. रौद्र रस
5. वीर रस
6. भयानक रस
7. वीभत्स रस
8. अद्भुि रस
9. शांि रस
• शांग र रस को रसराि या रसपति कहा गया है। मुख्यि: संयोग िर्ा
ववप्रलंभ या ववयोग के नाम से िो भागों में ववभाब्िि ककया िािा है,
ककं िु धनंिय आदि कु छ ववद्वान् ववप्रलंभ के पूवाथनुराग भेि को
संयोग-ववप्रलंभ-ववरदहि पूवाथवथर्ा मानकर अयोग की संज्ञा िेिे हैं िर्ा
शेष ववप्रयोग िर्ा संभोग नाम से िो भेि और करिे हैं। संयोग की
अनेक पररब्थर्तियों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे के वल
आश्रय भेि से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के
ववचार से प्रच्छन्न िर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्ि िर्ा
प्रकाशनप्रकार के ववचार से संक्षिप्ि, संकीणथ, संपन्निर िर्ा
समद्धधमान नामक भेि ककए िािे हैं िर्ा ववप्रलंभ के पूवाथनुराग या
अभभलाषहेिुक, मान या ईश्र्याहेिुक, प्रवास, ववरह िर्ा करुण वप्रलंभ
नामक भेि ककए गए हैं। शंगार रस के अंिगथि
नातयकालंकार, ऋिु िर्ा प्रकति का भी वणथन ककया िािा है।
उद हरण
• संयोग शंगार
बिरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय।
सौंह करे, भौंहतन हँसै, िैन कहै, नदट िाय।
-बबहारी लाल
• ववयोग शंगार (ववप्रलंभ शंगार)
तनभसदिन बरसि नयन हमारे,
सिा रहति पावस ऋिु हम पै िब िे थयाम भसधारे॥
-सूरिास
शांग र रस
• भारिीय काव्याचायों ने रसों की संख्या प्राय: नौ ही
मानी है ब्िनमें से ह स्य रस प्रमुख रस है।
• िैसे ब्िह्वा के आथवाि के छह रस प्रभसद्ध हैं उसी
प्रकार हृिय के आथवाि के नौ रस प्रभसद्ध हैं।
ब्िह्वा के आथवाि को लौककक आनंि की कोदट में
रखा गया है क्योंकक उसका सीधा संबंध लौककक
वथिुओं से है। हृिय के आथवाि को अलौककक
आनंि की कोदट में माना िािा है क्योंकक उसका
सीधा संबंध वथिुओं से नहीं ककं िु भावानुभूतियों से
है। भावानुभूति और भावानुभूति के आथवाि में अंिर
है।
उद हरण
• िंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रिाप, साि भमले पंद्रह
भमनट घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोिा, धीरे-धीरे
खखसक चुके र्े सारे श्रोिा। (काका हार्रसी)
3. करुण रस
• भरतमुनि के ‘ि ट्यश स्र’ में प्रनतप ददत आठ ि ट्यरसों
में शांग र और ह स्य के अिन्तर तथ रौद्र से पूर्व करुण रस की
गणि की गई है। ‘रौद्र त्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्तत्त
'रौद्र रस' से म िी गई है और उसक र्णव कपोत के सदृश
है तथ देर्त यमर ज बत ये गये हैं भरत िे ही करुण रस क
त्तर्शेष त्तर्र्रण देते हुए उसके स्थ यी भ र् क ि म ‘शोक’ ददय
हैI और उसकी उत्पत्तत्त श पजन्य क्लेश त्तर्निप त, इष्टजि-त्तर्प्रयोग,
त्तर्भर् ि श, र्ध, बन्धि, त्तर्द्रर् अथ वत पल यि, अपघ त, व्यसि
अथ वत आपत्तत्त आदद त्तर्भ र्ों के सांयोग से स्र्ीक र की है। स थ ही
करुण रस के अभभिय में अश्रुप ति, पररदेर्ि अथ वत् त्तर्ल प,
मुखशोषण, र्ैर्र्णयव, रस्त ग रत , नि:श्र् स, स्मनतत्तर्लोप आदद
अिुभ र्ों के प्रयोग क निदेश भी कह गय है। फिर निर्ेद, ग्ल नि,
चिन्त , औत्सुक्य, आर्ेग, मोह, श्रम, भय, त्तर्ष द, दैन्य, व्य चध,
जड़त , उन्म द, अपस्म र, र स, आलस्य, मरण, स्तम्भ, र्ेपथु,
र्ेर्र्णयव, अश्रु, स्र्रभेद आदद की व्यभभि री य सांि री भ र् के रूप में
पररगणणत फकय है I
उद हरण
• सोक बबकल सब रोवदहं रानी। रूपु सीलु बलु िेिु
बखानी॥
करदहं ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहं भूभम िल
बारदहं बारा॥(िुलसीिास)
4. वीर रसशांग र के स थ स्पध व करिे र् ल र्ीर रस है। शांग र, रौद्र तथ र्ीभत्स के स थ
र्ीर को भी भरत मुनि िे मूल रसों में पररगणणत फकय है। र्ीर रस से
ही अदभुत रस की उत्पत्तत्त बतल ई गई है। र्ीर रस क 'र्णव' 'स्र्णव' अथर्
'गौर' तथ देर्त इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकनत र् लो से सम्बद्ध है
तथ इसक स्थ यी भ र् ‘उत्स ह’ है - ‘अथ र्ीरो ि म
उत्तमप्रकनतरुत्स हत्मक:’। भ िुदत्त के अिुस र, पूणवतय पररस्िु ट ‘उत्स ह’
अथर् सम्पूणव इन्द्न्द्रयों क प्रहषव य उत्िु ल्लत र्ीर रस है - ‘पररपूणव
उत्स ह: सर्ेन्द्न्द्रय ण ां प्रहषो र् र्ीर:।’
दहन्दी के आि यव सोमि थ िे र्ीर रस की पररभ ष की है -
‘जब कत्तर्त्त में सुित ही व्यांग्य होय उत्स ह। तह ाँ र्ीर रस समणियो िौबबचध के
कत्तर्ि ह।’ स म न्यत: रौद्र एर्ां र्ीर रसों की पहि ि में कदठि ई होती है।
इसक क रण यह है फक दोिों के उप द ि बहुध एक - दूसरे से भमलते-जुलते
हैं। दोिों के आलम्बि शरु तथ उद्दीपि उिकी िेष्ट एाँ हैं। दोिों
के व्यभभि ररयों तथ अिुभ र्ों में भी स दृश्य हैं। कभी-कभी रौद्रत में र्ीरत्र्
तथ र्ीरत में रौद्रर्त क आभ स भमलत है। इि क रणों से कु छ त्तर्द्र् ि
रौद्र क अन्तभ वर् र्ीर में और कु छ र्ीर क अन्तभ वर् रौद्र में करिे के
अिुमोदक हैं, लेफकि रौद्र रस के स्थ यी भ र् क्रोध तथ र्ीर रस के स्थ यी
भ र् उत्स ह में अन्तर स्पष्ट है।
उिाहरण
• र्ीर तुम बढे िलो, धीर तुम बढे िलो।
स मिे पह ड़ हो फक भसांह की दह ड़ हो।
तुम कभी रुको िहीां, तुम कभी िुको िहीां॥
(द्र् ररक प्रस द म हेश्र्री)
वीर रस
5. रौद्र रस
काव्यगि रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान
है। भरि ने ‘नाट्यशाथर’ में शंगार,
रौद्र, वीर िर्ा वीभत्स, इन चार रसों को ही
प्रधान माना है, अि: इन्हीं से अन्य रसों की
उत्पवि बिायी है, यर्ा-
‘िेषामुत्पविहेिवच्ित्वारो रसा: शंगारो रौद्रो
वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की
उत्पवि बिािे हुए भरि कहिे हैं कक ‘रौद्रथयैव
च यत्कमथ स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का
कमथ ही करुण रस का िनक होिा हैI
उिाहरण
• श्रीकष्ण के सुन वचन अिुथन िोभ से िलने
लगे।
सब शील अपना भूल कर करिल युगल मलने
लगे॥
संसार िेखे अब हमारे शरु रण में मि पडे।
करिे हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खडे॥
• (मैधर्लीशरण गुप्ि)
6.भयानक रस
भयानक रस दहन्िी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक
है। भानुिि के अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा
‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का वविोभ’ भयानक रस है। अर्ाथि
भयोत्पािक वथिुओं के िशथन या श्रवण से अर्वा शरु
इत्यादि के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, िब वहाँ
भयानक रस होिा है। दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने
‘रसपीयूषतनधध’ में भयानक रस की तनम्न पररभाषा
िी है-
‘सुतन कववि में व्यंधग भय िब ही परगट होय। िहीं
भयानक रस बरतन कहै सबै कवव लोय’।
उिाहरण
• उधर गरििी भसंधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों सी।
चली आ रहीं फे न उगलिी फन फै लाये व्यालों - सी॥
(ियशंकर प्रसाि)
भयानक रस
7. बीभत्स रस
बीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना ववभशष्ट
थर्ान रखिा है। इसकी ब्थर्ति िु:खात्मक रसों में
मानी िािी है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक
िर्ा रौद्र, ये िीन रस इसके सहयोगी या सहचर
भसद्ध होिे हैं। शान्ि रस से भी इसकी तनकटिा
मान्य है, क्योंकक बहुधा बीभत्सिा का िशथन वैराग्य
की प्रेरणा िेिा है और अन्िि: शान्ि रस के थर्ायी
भाव शम का पोषण करिा है।
उिाहरण
• भसर पर बैठ्यो काग आँख िोउ खाि तनकारि।
खींचि िीभदहं थयार अतिदह आनंि उर धारि॥
गीध िांतघ को खोदि-खोदि कै माँस उपारि।
थवान आंगुररन कादट-कादट कै खाि वविारि॥
(भारिेन्िु)
बीभत्स रस
8. अद्भुि रस
अद्भुि रस ‘ववथमयथय सम्यक्समद्धधरद्भुि:
सवेब्न्द्रयाणां िाटथ्यं या’। अर्ाथि ववथमय की
सम्यक समद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की िटथर्िा
अिभुि रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब
ककसी रचना में ववथमय 'थर्ायी भाव' इस प्रकार
पूणथिया प्रथफु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे
अभभभाववि होकर तनश्चेष्ट बन िाएँ, िब वहाँ
अद्भुि रस की तनष्पवि होिी है।
उिाहरण
• अखखल भुवन चर- अचर सब, हरर मुख में लखख मािु।
चककि भई गद्गद् वचन, ववकभसि दृग पुलकािु॥
(सेनापति)
अद्भुि रस
9. शांि रस
शान्ि रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्िम रस
माना िािा है - "शान्िोऽवप नवमो रस:।" इसका
कारण यह है कक भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो
रस वववेचन का आदि स्रोि है, नाट्य रसों के रूप में
के वल आठ रसों का ही वणथन भमलिा है। शान्ि के
उस रूप में भरिमुतन ने मान्यिा प्रिान नहीं की,
ब्िस रूप में शंगार, वीर आदि रसों की, और न उसके
ववभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा थपष्ट
तनरूपण ककया।
उिाहरण
• मन रे िन कागि का पुिला।
लागै बूँि बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इिना॥
(कबीर)
शांि रस
10. वात्सल्य रस
• वात्सल्य रस का थर्ायी भाव है। मािा-वपिा का अपने पुरादि पर िो नैसधगथक थनेह होिा है,
उसे ‘वात्सल्य’ कहिे हैं। मैकडुगल आदि मनथित्त्ववविों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों
में पररगखणि ककया है, व्यावहाररक अनुभव भी यह बिािा है कक अपत्य-थनेह िाम्पत्य रस से
र्ोडी ही कम प्रभववष्णुिावाला मनोभाव है।
• संथकि के प्राचीन आचायों ने िेवादिववषयक रति को के वल ‘भाव’ ठहराया है िर्ा वात्सल्य
को इसी प्रकार की ‘रति’ माना है, िो थर्ायी भाव के िुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीं है
• सोमेश्वर भब्क्ि एवं वात्सल्य को ‘रति’ के ही ववशेष रूप मानिे हैं - ‘थनेहो
भब्क्िवाथत्सल्यभमति रिेरेव ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटिा, आथवािनीयिा,
पुरुषार्ोपयोधगिा इत्यादि गुणों पर ववचार करने से प्रिीि होिा है कक वात्सल्य एक थविंर
प्रधान भाव है, िो थर्ायी ही समझा िाना चादहए।
• भोि इत्यादि कतिपय आचायों ने इसकी सिा का प्राधान्य थवीकार ककया है।
• ववश्वनार् ने प्रथफु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थविंर अब्थित्व तनरूवपि कर
‘वत्सलिा-थनेह’ को इसका थर्ायी भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ायी वत्सलिा-थनेह:
पुरार्ालम्बनं मिम्’।
• हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशंका इत्यादि वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उिाहरण -
• ‘चलि िेखख िसुमति सुख पावै।
ठु मुकक ठु मुकक पग धरनी रेंगि, िननी िेखख दिखावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यंब्िि है,
थर्ायी का पररथफु टन नहीं हुआ है।
उिाहरण
• ककलकि कान्ह घुटरुवन आवि।
मतनमय कनक नंि के आंगन बबम्ब पकररवे
घावि॥
(सूरिास)
11. भब्क्ि रस
भरिमुतन से लेकर पब्डडिराि िगन्नार् िक संथकि के ककसी
प्रमुख काव्याचायथ ने ‘भब्क्ि रस’ को रसशाथर के अन्िगथि
मान्यिा प्रिान नहीं की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यं रसात्मकं
काव्यम् के भसद्धान्ि का प्रतिपािन ककया और ‘मुतन-वचन’ का
उल्लघंन करिे हुए वात्सल्य को नव रसों के समकि सांगोपांग
थर्ावपि ककया, उन्होंने भी 'भब्क्ि' को रस नहीं माना। भब्क्ि
रस की भसद्धध का वाथिववक स्रोि काव्यशाथर न होकर
भब्क्िशाथर है, ब्िसमें मुख्यिया ‘गीिा’, ‘भागवि’, ‘शाब्डडल्य
भब्क्िसूर’, ‘नारि भब्क्िसूर’, ‘भब्क्ि रसायन’ िर्ा
‘हररभब्क्िरसामिभसन्धु’ प्रभूति ग्रन्र्ों की गणना की िा सकिी
है।
उिाहरण
• राम िपु, राम िपु, राम
िपु बावरे।
घोर भव नीर- तनधध,
नाम तनि नाव रे॥
PPt on Ras Hindi grammer

Mais conteúdo relacionado

Mais procurados (20)

Hindi रस
Hindi रसHindi रस
Hindi रस
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
Hindi grammar
Hindi grammarHindi grammar
Hindi grammar
 
Vaaky rachna ppt
Vaaky rachna pptVaaky rachna ppt
Vaaky rachna ppt
 
रस
रसरस
रस
 
Vachya
VachyaVachya
Vachya
 
समास
समाससमास
समास
 
हिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनामहिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनाम
 
Hindi ppt
Hindi pptHindi ppt
Hindi ppt
 
ALANKAR.pptx
ALANKAR.pptxALANKAR.pptx
ALANKAR.pptx
 
hindi project for class 10
hindi project for class 10hindi project for class 10
hindi project for class 10
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
Shabd vichar
Shabd vicharShabd vichar
Shabd vichar
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
upsarg
upsargupsarg
upsarg
 
Karak ppt
Karak ppt Karak ppt
Karak ppt
 
व्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammerव्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammer
 
पद परिचय
पद परिचयपद परिचय
पद परिचय
 
Viram chinh 13
Viram chinh 13Viram chinh 13
Viram chinh 13
 
Hindi presentation on ras
Hindi presentation on rasHindi presentation on ras
Hindi presentation on ras
 

Destaque (20)

रस,
रस,रस,
रस,
 
Ras Ppt
Ras PptRas Ppt
Ras Ppt
 
adjectives ppt in hindi
adjectives ppt in hindiadjectives ppt in hindi
adjectives ppt in hindi
 
Nouns in Hindi- SNGYA
Nouns in Hindi- SNGYANouns in Hindi- SNGYA
Nouns in Hindi- SNGYA
 
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
 
Pad parichay
Pad parichayPad parichay
Pad parichay
 
Hindi ppt kriya visheshan
Hindi ppt kriya visheshanHindi ppt kriya visheshan
Hindi ppt kriya visheshan
 
Hindi nature ppt
Hindi nature pptHindi nature ppt
Hindi nature ppt
 
Sangya
SangyaSangya
Sangya
 
Vakya parichay
Vakya parichayVakya parichay
Vakya parichay
 
हिंदी व्याकरण- क्रिया
हिंदी व्याकरण- क्रियाहिंदी व्याकरण- क्रिया
हिंदी व्याकरण- क्रिया
 
समास(samas)
समास(samas)समास(samas)
समास(samas)
 
Ppt
PptPpt
Ppt
 
Hindi pad parichay
Hindi pad parichayHindi pad parichay
Hindi pad parichay
 
Adjectives HINDI
Adjectives HINDIAdjectives HINDI
Adjectives HINDI
 
Kriya aur karak
Kriya aur karakKriya aur karak
Kriya aur karak
 
Hindi power point presentation
Hindi power point presentationHindi power point presentation
Hindi power point presentation
 
ppt on visheshan
ppt on visheshanppt on visheshan
ppt on visheshan
 
Hindi presentation
Hindi presentationHindi presentation
Hindi presentation
 
Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi
 

Semelhante a PPt on Ras Hindi grammer

हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10Chintan Patel
 
हिन्दी व्याकरण
हिन्दी व्याकरणहिन्दी व्याकरण
हिन्दी व्याकरणChintan Patel
 
वाच्य एवं रस
 वाच्य एवं रस  वाच्य एवं रस
वाच्य एवं रस shivsundarsahoo
 
रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)Nand Lal Bagda
 
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfNeerajOjha17
 
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Neelam Sharma
 
Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxUdhavBhandare
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणAdvetya Pillai
 
Gunsthan 1 - 2
Gunsthan 1 - 2Gunsthan 1 - 2
Gunsthan 1 - 2Jainkosh
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya MargnaJainkosh
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...VaidyaSonaliSharma
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language Education
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language EducationCTET Hindi Pedagogy related to Hindi language Education
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language EducationSavitaShinde5
 
Hindi file grammar
Hindi file grammarHindi file grammar
Hindi file grammarshabanappt
 
Hi introduction of_quran
Hi introduction of_quranHi introduction of_quran
Hi introduction of_quranLoveofpeople
 
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्षअनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्षExcellentHindisahith
 

Semelhante a PPt on Ras Hindi grammer (20)

हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10
 
हिन्दी व्याकरण
हिन्दी व्याकरणहिन्दी व्याकरण
हिन्दी व्याकरण
 
वाच्य एवं रस
 वाच्य एवं रस  वाच्य एवं रस
वाच्य एवं रस
 
रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)
 
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
 
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
 
Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptx
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरण
 
Gunsthan 1 - 2
Gunsthan 1 - 2Gunsthan 1 - 2
Gunsthan 1 - 2
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya Margna
 
Aalankar
Aalankar Aalankar
Aalankar
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
 
Samas
SamasSamas
Samas
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language Education
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language EducationCTET Hindi Pedagogy related to Hindi language Education
CTET Hindi Pedagogy related to Hindi language Education
 
Hindi file grammar
Hindi file grammarHindi file grammar
Hindi file grammar
 
Hi introduction of_quran
Hi introduction of_quranHi introduction of_quran
Hi introduction of_quran
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्षअनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष
अनामिका की कविता में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष
 

PPt on Ras Hindi grammer

  • 1.
  • 2. रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्ि'। काव्य को पढ़ने या सुनने से ब्िस आनन्ि की अनुभूति होिी है, उसे 'रस' कहा िािा है। • पाठक या श्रोिा के हृिय में ब्थर्ि थर्ायीभाव ही ववभावादि से संयुक्ि होकर रस के रूप में पररणि हो िािा है। • रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण ित्व' माना िािा है।
  • 3. क्रम ांक रस क प्रक र 1. शंगार रस 2. हाथय रस 3. करुण रस 4. रौद्र रस 5. वीर रस 6. भयानक रस 7. वीभत्स रस 8. अद्भुि रस 9. शांि रस
  • 4. • शांग र रस को रसराि या रसपति कहा गया है। मुख्यि: संयोग िर्ा ववप्रलंभ या ववयोग के नाम से िो भागों में ववभाब्िि ककया िािा है, ककं िु धनंिय आदि कु छ ववद्वान् ववप्रलंभ के पूवाथनुराग भेि को संयोग-ववप्रलंभ-ववरदहि पूवाथवथर्ा मानकर अयोग की संज्ञा िेिे हैं िर्ा शेष ववप्रयोग िर्ा संभोग नाम से िो भेि और करिे हैं। संयोग की अनेक पररब्थर्तियों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे के वल आश्रय भेि से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के ववचार से प्रच्छन्न िर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्ि िर्ा प्रकाशनप्रकार के ववचार से संक्षिप्ि, संकीणथ, संपन्निर िर्ा समद्धधमान नामक भेि ककए िािे हैं िर्ा ववप्रलंभ के पूवाथनुराग या अभभलाषहेिुक, मान या ईश्र्याहेिुक, प्रवास, ववरह िर्ा करुण वप्रलंभ नामक भेि ककए गए हैं। शंगार रस के अंिगथि नातयकालंकार, ऋिु िर्ा प्रकति का भी वणथन ककया िािा है।
  • 5. उद हरण • संयोग शंगार बिरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय। सौंह करे, भौंहतन हँसै, िैन कहै, नदट िाय। -बबहारी लाल • ववयोग शंगार (ववप्रलंभ शंगार) तनभसदिन बरसि नयन हमारे, सिा रहति पावस ऋिु हम पै िब िे थयाम भसधारे॥ -सूरिास
  • 7. • भारिीय काव्याचायों ने रसों की संख्या प्राय: नौ ही मानी है ब्िनमें से ह स्य रस प्रमुख रस है। • िैसे ब्िह्वा के आथवाि के छह रस प्रभसद्ध हैं उसी प्रकार हृिय के आथवाि के नौ रस प्रभसद्ध हैं। ब्िह्वा के आथवाि को लौककक आनंि की कोदट में रखा गया है क्योंकक उसका सीधा संबंध लौककक वथिुओं से है। हृिय के आथवाि को अलौककक आनंि की कोदट में माना िािा है क्योंकक उसका सीधा संबंध वथिुओं से नहीं ककं िु भावानुभूतियों से है। भावानुभूति और भावानुभूति के आथवाि में अंिर है।
  • 8. उद हरण • िंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रिाप, साि भमले पंद्रह भमनट घंटा भर आलाप। घंटा भर आलाप, राग में मारा गोिा, धीरे-धीरे खखसक चुके र्े सारे श्रोिा। (काका हार्रसी)
  • 9.
  • 10. 3. करुण रस • भरतमुनि के ‘ि ट्यश स्र’ में प्रनतप ददत आठ ि ट्यरसों में शांग र और ह स्य के अिन्तर तथ रौद्र से पूर्व करुण रस की गणि की गई है। ‘रौद्र त्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्तत्त 'रौद्र रस' से म िी गई है और उसक र्णव कपोत के सदृश है तथ देर्त यमर ज बत ये गये हैं भरत िे ही करुण रस क त्तर्शेष त्तर्र्रण देते हुए उसके स्थ यी भ र् क ि म ‘शोक’ ददय हैI और उसकी उत्पत्तत्त श पजन्य क्लेश त्तर्निप त, इष्टजि-त्तर्प्रयोग, त्तर्भर् ि श, र्ध, बन्धि, त्तर्द्रर् अथ वत पल यि, अपघ त, व्यसि अथ वत आपत्तत्त आदद त्तर्भ र्ों के सांयोग से स्र्ीक र की है। स थ ही करुण रस के अभभिय में अश्रुप ति, पररदेर्ि अथ वत् त्तर्ल प, मुखशोषण, र्ैर्र्णयव, रस्त ग रत , नि:श्र् स, स्मनतत्तर्लोप आदद अिुभ र्ों के प्रयोग क निदेश भी कह गय है। फिर निर्ेद, ग्ल नि, चिन्त , औत्सुक्य, आर्ेग, मोह, श्रम, भय, त्तर्ष द, दैन्य, व्य चध, जड़त , उन्म द, अपस्म र, र स, आलस्य, मरण, स्तम्भ, र्ेपथु, र्ेर्र्णयव, अश्रु, स्र्रभेद आदद की व्यभभि री य सांि री भ र् के रूप में पररगणणत फकय है I
  • 11. उद हरण • सोक बबकल सब रोवदहं रानी। रूपु सीलु बलु िेिु बखानी॥ करदहं ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहं भूभम िल बारदहं बारा॥(िुलसीिास)
  • 12. 4. वीर रसशांग र के स थ स्पध व करिे र् ल र्ीर रस है। शांग र, रौद्र तथ र्ीभत्स के स थ र्ीर को भी भरत मुनि िे मूल रसों में पररगणणत फकय है। र्ीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्तत्त बतल ई गई है। र्ीर रस क 'र्णव' 'स्र्णव' अथर् 'गौर' तथ देर्त इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकनत र् लो से सम्बद्ध है तथ इसक स्थ यी भ र् ‘उत्स ह’ है - ‘अथ र्ीरो ि म उत्तमप्रकनतरुत्स हत्मक:’। भ िुदत्त के अिुस र, पूणवतय पररस्िु ट ‘उत्स ह’ अथर् सम्पूणव इन्द्न्द्रयों क प्रहषव य उत्िु ल्लत र्ीर रस है - ‘पररपूणव उत्स ह: सर्ेन्द्न्द्रय ण ां प्रहषो र् र्ीर:।’ दहन्दी के आि यव सोमि थ िे र्ीर रस की पररभ ष की है - ‘जब कत्तर्त्त में सुित ही व्यांग्य होय उत्स ह। तह ाँ र्ीर रस समणियो िौबबचध के कत्तर्ि ह।’ स म न्यत: रौद्र एर्ां र्ीर रसों की पहि ि में कदठि ई होती है। इसक क रण यह है फक दोिों के उप द ि बहुध एक - दूसरे से भमलते-जुलते हैं। दोिों के आलम्बि शरु तथ उद्दीपि उिकी िेष्ट एाँ हैं। दोिों के व्यभभि ररयों तथ अिुभ र्ों में भी स दृश्य हैं। कभी-कभी रौद्रत में र्ीरत्र् तथ र्ीरत में रौद्रर्त क आभ स भमलत है। इि क रणों से कु छ त्तर्द्र् ि रौद्र क अन्तभ वर् र्ीर में और कु छ र्ीर क अन्तभ वर् रौद्र में करिे के अिुमोदक हैं, लेफकि रौद्र रस के स्थ यी भ र् क्रोध तथ र्ीर रस के स्थ यी भ र् उत्स ह में अन्तर स्पष्ट है।
  • 13. उिाहरण • र्ीर तुम बढे िलो, धीर तुम बढे िलो। स मिे पह ड़ हो फक भसांह की दह ड़ हो। तुम कभी रुको िहीां, तुम कभी िुको िहीां॥ (द्र् ररक प्रस द म हेश्र्री)
  • 15. 5. रौद्र रस काव्यगि रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान है। भरि ने ‘नाट्यशाथर’ में शंगार, रौद्र, वीर िर्ा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अि: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पवि बिायी है, यर्ा- ‘िेषामुत्पविहेिवच्ित्वारो रसा: शंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की उत्पवि बिािे हुए भरि कहिे हैं कक ‘रौद्रथयैव च यत्कमथ स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कमथ ही करुण रस का िनक होिा हैI
  • 16. उिाहरण • श्रीकष्ण के सुन वचन अिुथन िोभ से िलने लगे। सब शील अपना भूल कर करिल युगल मलने लगे॥ संसार िेखे अब हमारे शरु रण में मि पडे। करिे हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खडे॥ • (मैधर्लीशरण गुप्ि)
  • 17. 6.भयानक रस भयानक रस दहन्िी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। भानुिि के अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा ‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का वविोभ’ भयानक रस है। अर्ाथि भयोत्पािक वथिुओं के िशथन या श्रवण से अर्वा शरु इत्यादि के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, िब वहाँ भयानक रस होिा है। दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने ‘रसपीयूषतनधध’ में भयानक रस की तनम्न पररभाषा िी है- ‘सुतन कववि में व्यंधग भय िब ही परगट होय। िहीं भयानक रस बरतन कहै सबै कवव लोय’।
  • 18. उिाहरण • उधर गरििी भसंधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों सी। चली आ रहीं फे न उगलिी फन फै लाये व्यालों - सी॥ (ियशंकर प्रसाि)
  • 20. 7. बीभत्स रस बीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना ववभशष्ट थर्ान रखिा है। इसकी ब्थर्ति िु:खात्मक रसों में मानी िािी है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक िर्ा रौद्र, ये िीन रस इसके सहयोगी या सहचर भसद्ध होिे हैं। शान्ि रस से भी इसकी तनकटिा मान्य है, क्योंकक बहुधा बीभत्सिा का िशथन वैराग्य की प्रेरणा िेिा है और अन्िि: शान्ि रस के थर्ायी भाव शम का पोषण करिा है।
  • 21. उिाहरण • भसर पर बैठ्यो काग आँख िोउ खाि तनकारि। खींचि िीभदहं थयार अतिदह आनंि उर धारि॥ गीध िांतघ को खोदि-खोदि कै माँस उपारि। थवान आंगुररन कादट-कादट कै खाि वविारि॥ (भारिेन्िु)
  • 23. 8. अद्भुि रस अद्भुि रस ‘ववथमयथय सम्यक्समद्धधरद्भुि: सवेब्न्द्रयाणां िाटथ्यं या’। अर्ाथि ववथमय की सम्यक समद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की िटथर्िा अिभुि रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब ककसी रचना में ववथमय 'थर्ायी भाव' इस प्रकार पूणथिया प्रथफु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे अभभभाववि होकर तनश्चेष्ट बन िाएँ, िब वहाँ अद्भुि रस की तनष्पवि होिी है।
  • 24. उिाहरण • अखखल भुवन चर- अचर सब, हरर मुख में लखख मािु। चककि भई गद्गद् वचन, ववकभसि दृग पुलकािु॥ (सेनापति)
  • 26. 9. शांि रस शान्ि रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्िम रस माना िािा है - "शान्िोऽवप नवमो रस:।" इसका कारण यह है कक भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो रस वववेचन का आदि स्रोि है, नाट्य रसों के रूप में के वल आठ रसों का ही वणथन भमलिा है। शान्ि के उस रूप में भरिमुतन ने मान्यिा प्रिान नहीं की, ब्िस रूप में शंगार, वीर आदि रसों की, और न उसके ववभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा थपष्ट तनरूपण ककया।
  • 27. उिाहरण • मन रे िन कागि का पुिला। लागै बूँि बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इिना॥ (कबीर)
  • 29. 10. वात्सल्य रस • वात्सल्य रस का थर्ायी भाव है। मािा-वपिा का अपने पुरादि पर िो नैसधगथक थनेह होिा है, उसे ‘वात्सल्य’ कहिे हैं। मैकडुगल आदि मनथित्त्ववविों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों में पररगखणि ककया है, व्यावहाररक अनुभव भी यह बिािा है कक अपत्य-थनेह िाम्पत्य रस से र्ोडी ही कम प्रभववष्णुिावाला मनोभाव है। • संथकि के प्राचीन आचायों ने िेवादिववषयक रति को के वल ‘भाव’ ठहराया है िर्ा वात्सल्य को इसी प्रकार की ‘रति’ माना है, िो थर्ायी भाव के िुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीं है • सोमेश्वर भब्क्ि एवं वात्सल्य को ‘रति’ के ही ववशेष रूप मानिे हैं - ‘थनेहो भब्क्िवाथत्सल्यभमति रिेरेव ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटिा, आथवािनीयिा, पुरुषार्ोपयोधगिा इत्यादि गुणों पर ववचार करने से प्रिीि होिा है कक वात्सल्य एक थविंर प्रधान भाव है, िो थर्ायी ही समझा िाना चादहए। • भोि इत्यादि कतिपय आचायों ने इसकी सिा का प्राधान्य थवीकार ककया है। • ववश्वनार् ने प्रथफु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थविंर अब्थित्व तनरूवपि कर ‘वत्सलिा-थनेह’ को इसका थर्ायी भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ायी वत्सलिा-थनेह: पुरार्ालम्बनं मिम्’। • हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशंका इत्यादि वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उिाहरण - • ‘चलि िेखख िसुमति सुख पावै। ठु मुकक ठु मुकक पग धरनी रेंगि, िननी िेखख दिखावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यंब्िि है, थर्ायी का पररथफु टन नहीं हुआ है।
  • 30. उिाहरण • ककलकि कान्ह घुटरुवन आवि। मतनमय कनक नंि के आंगन बबम्ब पकररवे घावि॥ (सूरिास)
  • 31. 11. भब्क्ि रस भरिमुतन से लेकर पब्डडिराि िगन्नार् िक संथकि के ककसी प्रमुख काव्याचायथ ने ‘भब्क्ि रस’ को रसशाथर के अन्िगथि मान्यिा प्रिान नहीं की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यं रसात्मकं काव्यम् के भसद्धान्ि का प्रतिपािन ककया और ‘मुतन-वचन’ का उल्लघंन करिे हुए वात्सल्य को नव रसों के समकि सांगोपांग थर्ावपि ककया, उन्होंने भी 'भब्क्ि' को रस नहीं माना। भब्क्ि रस की भसद्धध का वाथिववक स्रोि काव्यशाथर न होकर भब्क्िशाथर है, ब्िसमें मुख्यिया ‘गीिा’, ‘भागवि’, ‘शाब्डडल्य भब्क्िसूर’, ‘नारि भब्क्िसूर’, ‘भब्क्ि रसायन’ िर्ा ‘हररभब्क्िरसामिभसन्धु’ प्रभूति ग्रन्र्ों की गणना की िा सकिी है।
  • 32. उिाहरण • राम िपु, राम िपु, राम िपु बावरे। घोर भव नीर- तनधध, नाम तनि नाव रे॥