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एक कु त्ता और
एक मैना
- ह ज़ा री प्र सा द दद वे दी
हजारीप्रसाद ददवेदी
इनका जन्म सन 1907 में गाांव आरत दुबे का छपरा, जजला
बललया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने उच्च लशक्षा काशी दहन्दू
ववश्वववधालय से प्राप्त की तथा शाजन्त ननके तन, काशी दहन्दू
ववश्वववधालय एवां पांजाब ववश्वववधालय में अध्यापन कायय
ककया।
प्रमुख कायय
कृ नतयााँ - अशोक के फू ल, कु टज, कल्पलता, बाणभट्ट की
आत्मकथा, पुननयवा, दहांदी सादहत्य के उद्भव और ववकास,
दहांदी सादहत्य की भूलमका, कबीर।
पुरस्कार - सादहत्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण।
यह ननबांध 'गुरुदेव' रवीन्रनाथ टैगोर जी की व्यजततव को
उजागर करते हुए ललखा गया है। लेखक ने अपने और गुरुदेव
के बीच के बातचीत द्वारा उनके स्वभाव में ववद्यमान
गुणों का पररचय ददया है। इसमें रवीन्रनाथ की कववताओां और
उनसे जुड़ी स्मृनतयों के ज़ररए गुरुदेव की सांवेदनशीलता,
आांतररक ववराटता और सहजता के चचत्र तो उके रे ही गए हैं
तथा पशु-पक्षक्षयों के सांवेदनशील जीवन का भी बहुत सूक्ष्म
ननरीक्षण है। इस पाठ में न के वल पशु-पक्षक्षयों के प्रनत मानवीय
प्रेम प्रदलशयत है, बजल्क पशु-पक्षक्षयों से लमलने वाले प्रेम, भजतत,
ववनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का भी ववस्तार है।
यह ननबांध हमें जीव-जांतुओां से प्रेम और स्नेह करने की
प्रेरणा देता है।
रववन्द्र नाथ टैगोर-पररचय
 रववन्र नाथ टैगोर (रवीन्रनाथ ठाकु र,
रोबबन्रोनाथ ठाकु र) (7 मई, 1861-7
अगस्त,1941) को गुरुदेव के नाम से भी
जाना जाता है। वे ववश्वववख्यात कवव,
सादहत्यकार, दाशयननक और भारतीय
सादहत्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार
(1913) ववजेता हैं। बाांग्ला सादहत्य के
माध्यम से भारतीय साांस्कृ नतक चेतना में
नयी जान फूाँ कने वाले युगदृष्टा थे। वे
एलशया के प्रथम नोबेल पुरस्कार
सम्माननत व्यजतत है। वे एकमात्र कवव हैं
जजसकी दो रचनाएाँ दो देशों का राष्रगान
बनीां। भारत का राष्र.गान जन गण मन
और बाांग्लादेश का राष्रीय गान आमार
सोनार बाांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएाँ हैं।
 रवीन्रनाथ ठाकु र का जन्म
देवेंरनाथ टैगोर और शारदा देवी के
सांतान के रूप में कोलकाता के
जोड़ासााँको ठाकु रबाड़ी में हुआ। उनकी
स्कू ल की पढ़ाई प्रनतजष्ठत सेंट
जेववयर स्कू ल में हुई। टैगोर ने
बैररस्टर बनने की चाहत में 1878 में
इांग्लैंड के बिजटोन में पजललक स्कू ल
में नाम दजय कराया। उन्होंने लांदन
कालेज ववश्वववद्यालय में कानून का
अध्ययन ककया लेककन 1880 में बबना
डडग्री हालसल ककए ही वापस आ गए।
उनका 1883 में मृणाललनी देवी के
साथ वववाह हुआ।
रववन्द्र नाथ टैगोर का बचपन
 रवीन्रनाथ ठाकु र का जन्म
देवेंरनाथ टैगोर और शारदा देवी के
सांतान के रूप में कोलकाता के
जोड़ासााँको ठाकु रबाड़ी में हुआ।
उनकी स्कू ल की पढ़ाई प्रनतजष्ठत
सेंट जेववयर स्कू ल में हुई। टैगोर ने
बैररस्टर बनने की चाहत में 1878
में इांग्लैंड के बिजटोन में पजललक
स्कू ल में नाम दजय कराया। उन्होंने
लांदन कालेज ववश्वववद्यालय में
कानून का अध्ययन ककया लेककन
1880 में बबना डडग्री हालसल ककए
ही वापस आ गए। उनका 1883 में
मृणाललनी देवी के साथ वववाह
हुआ।
रववन्द्र नाथ टैगोर का सादहत्ययक सफ़र
 बचपन से ही उनकी कववताए छन्द और
भाषा में अद्भुत प्रनतभा का आभास लोगों
को लमलने लगा था। उन्होंने पहली कववता
आठ साल की उम्र में ललखी थी और 1877
में के वल सोलह साल की उम्र में उनकी
लघुकथा प्रकालशत हुई थी। भारतीय
साांस्कृ नतक चेतना में नई जान फूां कने वाले
युगदृष्टा टैगोर के सृजन सांसार में
गीताांजलल, पूरबी प्रवादहनी, लशशु भोलानाथ,
महुआ, वनवाणी, पररशेष, पुनश्च, वीचथका
शेषलेखा, चोखेरबाली, कणणका, नैवेद्य मायेर
खेला और क्षणणका आदद शालमल हैं। देश
और ववदेश के सारे सादहत्य, दशयन, सांस्कृ नत
आदद उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर
लसमट ललए थे।
रववन्द्र नाथ टैगोर और आध्यायम
उनके वपता िाह्म धमय के होने के कारण वे भी
िाह्म थे। पर अपनी रचनाओां व कमय के द्वारा
उन्होने सनातन धमय को भी आगे बढ़ाया। मनुष्य
और ईश्वर के बीच जो चचरस्थायी सम्पकय है,
उनकी रचनाओ के अन्दर वह अलग अलग रूपों
में उभर आता है। सादहत्य की शायद ही ऐसी
कोई शाखा है, जजनमें उनकी रचना न हो कववता,
गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, लशल्पकला
- सभी ववधाओां में उन्होंने रचना की। उनकी
प्रकालशत कृ नतयों में - गीताांजली, गीताली,
गीनतमाल्य, कथा ओ कहानी, लशशु, लशशु
भोलानाथ, कणणका, क्षणणका, खेया आदद प्रमुख
हैं। उन्होने कु छ पुस्तकों का अांग्रेजी में अनुवाद
भी ककया। अाँग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रनतभा
पूरे ववश्व में फै ली।
रववन्द्र नाथ टैगोर का प्रकृ ति प्रेम
टैगोर को बचपन से ही प्रकृ नत
का साजन्नध्य बहुत भाता था। वह
हमेशा सोचा करते थे कक प्रकृ नत
के साननध्य में ही ववद्याचथययों को
अध्ययन करना चादहए। इसी सोच
को मूतयरूप देने के ललए वह 1901
में लसयालदह छोड़कर आश्रम की
स्थापना करने के ललए
शाांनतननके तन आ गए। प्रकृ नत के
साजन्नध्य में पेड़ों, बगीचों और
एक लाइिेरी के साथ टैगोर ने
शाांनतननके तन की स्थापना की।
रववन्द्र नाथ टैगोर और संगीि
टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की
रचना की। रवीांर सांगीत बाांग्ला
सांस्कृ नत का अलभन्न दहस्सा है। टैगोर
के सांगीत को उनके सादहत्य से अलग
नहीां ककया जा सकता। उनकी
अचधकतर रचनाएां तो अब उनके गीतों
में शालमल हो चुकी हैं। दहांदुस्तानी
शास्त्रीय सांगीत की ठु मरी शैली से
प्रभाववत ये गीत मानवीय भावनाओां
के अलग.अलग रांग प्रस्तुत करते हैं।
अलग.अलग रागों में गुरुदेव के गीत
यह आभास कराते हैं मानो उनकी
रचना उस राग ववशेष के ललए ही की
गई थी।
रववन्द्र नाथ टैगोर और चचत्रकारी
गुरुदेव ने जीवन के
अांनतम ददनों में चचत्र
बनाना शुरू ककया।
इसमें युग का सांशय,
मोह, तलाांनत और
ननराशा के स्वर
प्रकट हुए हैं। मनुष्य
और ईश्वर के बीच
जो चचरस्थायी सांपकय
है उनकी रचनाओां में
वह अलग-अलग रूपों
में उभरकर सामने
आया।
रववन्द्र नाथ टैगोर और महायमा गांधी
टैगोर और महात्मा गाांधी के बीच
राष्रीयता और मानवता को लेकर
हमेशा वैचाररक मतभेद रहा। जहाां
गाांधी पहले पायदान पर राष्रवाद को
रखते थे, वहीां टैगोर मानवता को
राष्रवाद से अचधक महत्व देते थे।
लेककन दोनों एक दूसरे का बहुत
अचधक सम्मान करते थे, टैगोर ने
गाांधीजी को महात्मा का ववशेषण
ददया था। एक समय था जब
शाांनतननके तन आचथयक कमी से जूझ
रहा था और गुरुदेव देश भर में
नाटकों का मांचन करके धन सांग्रह
कर रहे थे। उस वतत गाांधी ने टैगोर
को 60 हजार रुपये के अनुदान का
चेक ददया था।
रववन्द्र नाथ टैगोर की अत्न्द्िम इच्छा
जीवन के अांनतम समय 7 अगस्त 1941
के कु छ समय पहले इलाज के ललए जब
उन्हें शाांनतननके तन से कोलकाता ले जाया
जा रहा था तो उनकी नानतन ने कहा कक
आपको मालूम है हमारे यहाां नया पावर
हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने
कहा कक हाां पुराना आलोक चला जाएगा
नए का आगमन होगा।जीवन के आखरी 4
साल उनके जीवन के 4 आखरी साल
उनके ललए बहुत दुखभरे थे उन्हें काकफ
सारर बबमाररया हो गई थी जजस वजह से
वह हमें 7 अगस्त 1941 को ही छोड़ कर
चले गए। उन्होने कु छ 2000 गीत ललखे
और कई अलग-अलग तरीके के नाटक
बनाए।
रववन्द्र नाथ टैगोर की अत्न्द्िम इच्छा
 जीवन के अांनतम समय 7 अगस्त 1941 के
कु छ समय पहले इलाज के ललए जब उन्हें
शाांनतननके तन से कोलकाता ले जाया जा रहा था
तो उनकी नानतन ने कहा कक आपको मालूम है
हमारे यहाां नया पावर हाउस बन रहा है। इसके
जवाब में उन्होंने कहा कक हाां पुराना आलोक चला
जाएगा नए का आगमन होगा।जीवन के आखरी 4
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 उनके जीवन के 4 आखरी साल उनके ललए
बहुत दुखभरे थे उन्हें काकफ सारर बबमाररया हो
गई थी जजस वजह से वह हमें 7 अगस्त 1941
को ही छोड़ कर चले गए। उन्होने कु छ 2000
गीत ललखे और कई अलग-अलग तरीके के
नाटक बनाए।
टेगोर ने कु छ 8 ककताबे ललखी,और
कु छ नाटक भी बनाए..उनमे से कु छ
ककताबे यह है:-
1.गोरा
2.चतुरानगा
3.चार ओधय
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
1. गुरुदेव ने शाांनतननके तन को छोड़ कहीां ओर रहने का मन तयों बनाया ?
उत्तर
गुरुदेव ने शाांनतननके तन को छोड़ कहीां ओर रहने का मन इसललए बनाया
तयोंकक उनका स्वास््य अच्छा न था। वे स्वास्थय लाभ लेने के ललए
श्रीननके तन चले गए।
2. मूक प्राणी भी मनुष्य से कम सांवेदनशील नहीां होते पाठ के आधार पर
स्पष्ट कीजजए।
उत्तर
मूक प्राणी भी सांवेदनशील होते हैं, उन्हें भी स्नेह की अनूभूनत होती है। पाठ में
रववन्रनाथ जी के कु त्ते के कु छ प्रसांगों से यह बात स्पष्ट हो जाती है -
1. जब कु त्ता रववन्रनाथ के स्पशय को आाँखे बांद करके अनुभव करता है, तब
ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पशय ने तृजप्त लमल गई हो।
2. रववन्रनाथ कक मृत्यु पर उनके चचता भस्म के कलश के सामने वह
चुपचाप बैठा रहा तथा अन्य आश्रमवालसयों के साथ गांभीर भाव से उत्तरायण
तक गया।
3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके ललखी कववता के ममय को लेखक कब समझ पाया ?
उत्तर
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके ललखी कववता के ममय को लेखक तब समझ पाए जब
रववन्रनाथ के कहने पर लेखक ने मैना को ध्यानपूवयक देखा।
4. प्रस्तुत पाठ एक ननबांध है। ननबांध गद्य-सादहत्य की उत्कृ ष्ट ववधा है, जजसमें लेखक
अपने भावों और ववचारों को कलात्मक और लाललत्यपूणय शैली में अलभव्यतत करता है। इस
ननबांध में उपयुयतत ववशेषताएाँ कहााँ झलकती हैं ? ककन्हीां चार का उल्लेख कीजजए।
उत्तर
(1) प्रनतददन प्रात:काल यह भतत कु त्ता स्तलध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है,
जब तक अपने हाथों के स्पशय से मैं इसका सांग स्वीकार नहीां करता। इतनी सी स्वीकृ नत
पाकर ही उसके अांग-अांग में आनांद का प्रवाह बह उठता है।
(2) इस बेचारी को ऐसा कु छ भी शौक नहीां है, इसके जीवन में कहााँ गााँठ पड़ी है, यह सोच
रहा हूाँ।
(3) उस समय भी न जाने ककस सहज बोध के बल पर वह कु त्ता आश्रम के द्वार तक
आया और चचताभस्म के साथ गांभीर भाव से उत्तरायण तक गया।
(4) रोज़ फु दकती है ठीक यहीां आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव ददखाई देता है।
१.पूवय जसवाल
२.सक्षम शमाय
३.शायना ठाकु र
४.शवव शमाय
५.ववक्ाांत ठाकु र
धन्यवाद

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ek kutta or ek maina

  • 1. एक कु त्ता और एक मैना - ह ज़ा री प्र सा द दद वे दी
  • 2. हजारीप्रसाद ददवेदी इनका जन्म सन 1907 में गाांव आरत दुबे का छपरा, जजला बललया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने उच्च लशक्षा काशी दहन्दू ववश्वववधालय से प्राप्त की तथा शाजन्त ननके तन, काशी दहन्दू ववश्वववधालय एवां पांजाब ववश्वववधालय में अध्यापन कायय ककया। प्रमुख कायय कृ नतयााँ - अशोक के फू ल, कु टज, कल्पलता, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुननयवा, दहांदी सादहत्य के उद्भव और ववकास, दहांदी सादहत्य की भूलमका, कबीर। पुरस्कार - सादहत्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण।
  • 3. यह ननबांध 'गुरुदेव' रवीन्रनाथ टैगोर जी की व्यजततव को उजागर करते हुए ललखा गया है। लेखक ने अपने और गुरुदेव के बीच के बातचीत द्वारा उनके स्वभाव में ववद्यमान गुणों का पररचय ददया है। इसमें रवीन्रनाथ की कववताओां और उनसे जुड़ी स्मृनतयों के ज़ररए गुरुदेव की सांवेदनशीलता, आांतररक ववराटता और सहजता के चचत्र तो उके रे ही गए हैं तथा पशु-पक्षक्षयों के सांवेदनशील जीवन का भी बहुत सूक्ष्म ननरीक्षण है। इस पाठ में न के वल पशु-पक्षक्षयों के प्रनत मानवीय प्रेम प्रदलशयत है, बजल्क पशु-पक्षक्षयों से लमलने वाले प्रेम, भजतत, ववनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का भी ववस्तार है। यह ननबांध हमें जीव-जांतुओां से प्रेम और स्नेह करने की प्रेरणा देता है।
  • 4. रववन्द्र नाथ टैगोर-पररचय  रववन्र नाथ टैगोर (रवीन्रनाथ ठाकु र, रोबबन्रोनाथ ठाकु र) (7 मई, 1861-7 अगस्त,1941) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे ववश्वववख्यात कवव, सादहत्यकार, दाशयननक और भारतीय सादहत्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार (1913) ववजेता हैं। बाांग्ला सादहत्य के माध्यम से भारतीय साांस्कृ नतक चेतना में नयी जान फूाँ कने वाले युगदृष्टा थे। वे एलशया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्माननत व्यजतत है। वे एकमात्र कवव हैं जजसकी दो रचनाएाँ दो देशों का राष्रगान बनीां। भारत का राष्र.गान जन गण मन और बाांग्लादेश का राष्रीय गान आमार सोनार बाांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएाँ हैं।
  • 5.  रवीन्रनाथ ठाकु र का जन्म देवेंरनाथ टैगोर और शारदा देवी के सांतान के रूप में कोलकाता के जोड़ासााँको ठाकु रबाड़ी में हुआ। उनकी स्कू ल की पढ़ाई प्रनतजष्ठत सेंट जेववयर स्कू ल में हुई। टैगोर ने बैररस्टर बनने की चाहत में 1878 में इांग्लैंड के बिजटोन में पजललक स्कू ल में नाम दजय कराया। उन्होंने लांदन कालेज ववश्वववद्यालय में कानून का अध्ययन ककया लेककन 1880 में बबना डडग्री हालसल ककए ही वापस आ गए। उनका 1883 में मृणाललनी देवी के साथ वववाह हुआ।
  • 6. रववन्द्र नाथ टैगोर का बचपन  रवीन्रनाथ ठाकु र का जन्म देवेंरनाथ टैगोर और शारदा देवी के सांतान के रूप में कोलकाता के जोड़ासााँको ठाकु रबाड़ी में हुआ। उनकी स्कू ल की पढ़ाई प्रनतजष्ठत सेंट जेववयर स्कू ल में हुई। टैगोर ने बैररस्टर बनने की चाहत में 1878 में इांग्लैंड के बिजटोन में पजललक स्कू ल में नाम दजय कराया। उन्होंने लांदन कालेज ववश्वववद्यालय में कानून का अध्ययन ककया लेककन 1880 में बबना डडग्री हालसल ककए ही वापस आ गए। उनका 1883 में मृणाललनी देवी के साथ वववाह हुआ।
  • 7. रववन्द्र नाथ टैगोर का सादहत्ययक सफ़र  बचपन से ही उनकी कववताए छन्द और भाषा में अद्भुत प्रनतभा का आभास लोगों को लमलने लगा था। उन्होंने पहली कववता आठ साल की उम्र में ललखी थी और 1877 में के वल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकालशत हुई थी। भारतीय साांस्कृ नतक चेतना में नई जान फूां कने वाले युगदृष्टा टैगोर के सृजन सांसार में गीताांजलल, पूरबी प्रवादहनी, लशशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, पररशेष, पुनश्च, वीचथका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणणका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणणका आदद शालमल हैं। देश और ववदेश के सारे सादहत्य, दशयन, सांस्कृ नत आदद उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर लसमट ललए थे।
  • 8. रववन्द्र नाथ टैगोर और आध्यायम उनके वपता िाह्म धमय के होने के कारण वे भी िाह्म थे। पर अपनी रचनाओां व कमय के द्वारा उन्होने सनातन धमय को भी आगे बढ़ाया। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चचरस्थायी सम्पकय है, उनकी रचनाओ के अन्दर वह अलग अलग रूपों में उभर आता है। सादहत्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा है, जजनमें उनकी रचना न हो कववता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, लशल्पकला - सभी ववधाओां में उन्होंने रचना की। उनकी प्रकालशत कृ नतयों में - गीताांजली, गीताली, गीनतमाल्य, कथा ओ कहानी, लशशु, लशशु भोलानाथ, कणणका, क्षणणका, खेया आदद प्रमुख हैं। उन्होने कु छ पुस्तकों का अांग्रेजी में अनुवाद भी ककया। अाँग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रनतभा पूरे ववश्व में फै ली।
  • 9. रववन्द्र नाथ टैगोर का प्रकृ ति प्रेम टैगोर को बचपन से ही प्रकृ नत का साजन्नध्य बहुत भाता था। वह हमेशा सोचा करते थे कक प्रकृ नत के साननध्य में ही ववद्याचथययों को अध्ययन करना चादहए। इसी सोच को मूतयरूप देने के ललए वह 1901 में लसयालदह छोड़कर आश्रम की स्थापना करने के ललए शाांनतननके तन आ गए। प्रकृ नत के साजन्नध्य में पेड़ों, बगीचों और एक लाइिेरी के साथ टैगोर ने शाांनतननके तन की स्थापना की।
  • 10. रववन्द्र नाथ टैगोर और संगीि टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवीांर सांगीत बाांग्ला सांस्कृ नत का अलभन्न दहस्सा है। टैगोर के सांगीत को उनके सादहत्य से अलग नहीां ककया जा सकता। उनकी अचधकतर रचनाएां तो अब उनके गीतों में शालमल हो चुकी हैं। दहांदुस्तानी शास्त्रीय सांगीत की ठु मरी शैली से प्रभाववत ये गीत मानवीय भावनाओां के अलग.अलग रांग प्रस्तुत करते हैं। अलग.अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग ववशेष के ललए ही की गई थी।
  • 11. रववन्द्र नाथ टैगोर और चचत्रकारी गुरुदेव ने जीवन के अांनतम ददनों में चचत्र बनाना शुरू ककया। इसमें युग का सांशय, मोह, तलाांनत और ननराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चचरस्थायी सांपकय है उनकी रचनाओां में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया।
  • 12. रववन्द्र नाथ टैगोर और महायमा गांधी टैगोर और महात्मा गाांधी के बीच राष्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचाररक मतभेद रहा। जहाां गाांधी पहले पायदान पर राष्रवाद को रखते थे, वहीां टैगोर मानवता को राष्रवाद से अचधक महत्व देते थे। लेककन दोनों एक दूसरे का बहुत अचधक सम्मान करते थे, टैगोर ने गाांधीजी को महात्मा का ववशेषण ददया था। एक समय था जब शाांनतननके तन आचथयक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मांचन करके धन सांग्रह कर रहे थे। उस वतत गाांधी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक ददया था।
  • 13. रववन्द्र नाथ टैगोर की अत्न्द्िम इच्छा जीवन के अांनतम समय 7 अगस्त 1941 के कु छ समय पहले इलाज के ललए जब उन्हें शाांनतननके तन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नानतन ने कहा कक आपको मालूम है हमारे यहाां नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कक हाां पुराना आलोक चला जाएगा नए का आगमन होगा।जीवन के आखरी 4 साल उनके जीवन के 4 आखरी साल उनके ललए बहुत दुखभरे थे उन्हें काकफ सारर बबमाररया हो गई थी जजस वजह से वह हमें 7 अगस्त 1941 को ही छोड़ कर चले गए। उन्होने कु छ 2000 गीत ललखे और कई अलग-अलग तरीके के नाटक बनाए।
  • 14. रववन्द्र नाथ टैगोर की अत्न्द्िम इच्छा  जीवन के अांनतम समय 7 अगस्त 1941 के कु छ समय पहले इलाज के ललए जब उन्हें शाांनतननके तन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नानतन ने कहा कक आपको मालूम है हमारे यहाां नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कक हाां पुराना आलोक चला जाएगा नए का आगमन होगा।जीवन के आखरी 4 साल  उनके जीवन के 4 आखरी साल उनके ललए बहुत दुखभरे थे उन्हें काकफ सारर बबमाररया हो गई थी जजस वजह से वह हमें 7 अगस्त 1941 को ही छोड़ कर चले गए। उन्होने कु छ 2000 गीत ललखे और कई अलग-अलग तरीके के नाटक बनाए।
  • 15. टेगोर ने कु छ 8 ककताबे ललखी,और कु छ नाटक भी बनाए..उनमे से कु छ ककताबे यह है:- 1.गोरा 2.चतुरानगा 3.चार ओधय
  • 22. 1. गुरुदेव ने शाांनतननके तन को छोड़ कहीां ओर रहने का मन तयों बनाया ? उत्तर गुरुदेव ने शाांनतननके तन को छोड़ कहीां ओर रहने का मन इसललए बनाया तयोंकक उनका स्वास््य अच्छा न था। वे स्वास्थय लाभ लेने के ललए श्रीननके तन चले गए। 2. मूक प्राणी भी मनुष्य से कम सांवेदनशील नहीां होते पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजजए। उत्तर मूक प्राणी भी सांवेदनशील होते हैं, उन्हें भी स्नेह की अनूभूनत होती है। पाठ में रववन्रनाथ जी के कु त्ते के कु छ प्रसांगों से यह बात स्पष्ट हो जाती है - 1. जब कु त्ता रववन्रनाथ के स्पशय को आाँखे बांद करके अनुभव करता है, तब ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पशय ने तृजप्त लमल गई हो। 2. रववन्रनाथ कक मृत्यु पर उनके चचता भस्म के कलश के सामने वह चुपचाप बैठा रहा तथा अन्य आश्रमवालसयों के साथ गांभीर भाव से उत्तरायण तक गया।
  • 23. 3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके ललखी कववता के ममय को लेखक कब समझ पाया ? उत्तर गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके ललखी कववता के ममय को लेखक तब समझ पाए जब रववन्रनाथ के कहने पर लेखक ने मैना को ध्यानपूवयक देखा। 4. प्रस्तुत पाठ एक ननबांध है। ननबांध गद्य-सादहत्य की उत्कृ ष्ट ववधा है, जजसमें लेखक अपने भावों और ववचारों को कलात्मक और लाललत्यपूणय शैली में अलभव्यतत करता है। इस ननबांध में उपयुयतत ववशेषताएाँ कहााँ झलकती हैं ? ककन्हीां चार का उल्लेख कीजजए। उत्तर (1) प्रनतददन प्रात:काल यह भतत कु त्ता स्तलध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पशय से मैं इसका सांग स्वीकार नहीां करता। इतनी सी स्वीकृ नत पाकर ही उसके अांग-अांग में आनांद का प्रवाह बह उठता है। (2) इस बेचारी को ऐसा कु छ भी शौक नहीां है, इसके जीवन में कहााँ गााँठ पड़ी है, यह सोच रहा हूाँ। (3) उस समय भी न जाने ककस सहज बोध के बल पर वह कु त्ता आश्रम के द्वार तक आया और चचताभस्म के साथ गांभीर भाव से उत्तरायण तक गया। (4) रोज़ फु दकती है ठीक यहीां आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव ददखाई देता है।
  • 24. १.पूवय जसवाल २.सक्षम शमाय ३.शायना ठाकु र ४.शवव शमाय ५.ववक्ाांत ठाकु र